Jul ०७, २०२० १४:५३ Asia/Kolkata

हमने ईरान के दक्षिणी और तटवर्ती नगर बंदर अब्बास की सैर की थी और इस खूबसूरत नगर के कुछ पर्यटन स्थलों को देखा था।

खूबसूरती को देखने की हमारी यह यात्रा आज भी जारी रहेगी। 

ईरान के अधिकांश नगरों में एेसी मस्जिदें हैं जो इस्लामी व ईरानी शिल्पकला का नमूना समझी जाती हैं। इस प्रकार की मस्जिदें भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। बंदर अब्बास में मौजूद धार्मिक स्थल भी  इसी प्रकार पर्यटकों को अपनी ओर खींचते हैं। इस नगर के लोग धार्मिक स्थलों को विशेष रूप से सम्मान देते हैं। बंदर अब्बास के धार्मिक स्थलों की सैर का आरंभ हम, " जामे मस्जिद" या " दिलगुशा मस्जिद" से करेंगे। यह मस्जिद बंदर अब्बास की सब से खूबसूरत और ईरान की सब से प्राचीन मस्जिद है। इस मस्जिद को बारहवीं हिजरी सदी की यादगार कहा जाता है इसी लिए इस मस्जिद को ईरान की राष्ट्रीय धरोहर के रूप में रजिस्टर्ड किया गया है। वैसे मस्जिद तो काफी पुरानी है लेकिन हालिया वर्षों में उसकी कई बार मरम्मत की गयी और कई बार पुनर्निमाण किया गया। दिलगुशा मस्जिद, एक हॅाल और दो पुराने भागों पर आधारित है। पुराने भाग में कई खंभे हैं जिनके ऊपर भाग को चूने के काम से सजाया गया है। दिलगुशा मस्जिद के निर्माण में जो ढेर सारे इस प्रकार के खंभों का प्रयोग किया गया है उसकी वजह से इस मस्जिद की खूबसूरती कई गुना बढ़ गयी है और पर्यटकों के आकर्षण की एक वजह भी यही है। 

 

बंदर अब्बास के बीचो बीच एक मस्जिद है जिसकी निर्माण शैली अन्य मस्जिदों से बिल्कुल अलग है। इस मस्जिद का नाम " मस्जिदे गल्लादारी " है। इस मस्जिद का इतिहास भी तेरवहीं सदी हिजरी क़मरी से जुड़ा है और इस मस्जिद का नाम उसके बनाने वाले के नाम पर है। इस मस्जिद को शेख अहमद गल्लेदारी ने बनवाया था। यह मस्जिद पांच दशमलव एक मीटर   ऊंचे एक चबूतरे पर बनायी गयी है। यह मस्जिद हॅाल, अज़ान स्थल और सर्दियों के लिए विशेष हॅाल पर आधारित है। 

गल्लादारी मस्जिद, बंदर अब्बास

इस मस्जिद का हॅाल चौकोर है जिसमें कुल 16 खंभे बनाए गये हैं और सारे खंभों को प्लास्टर आॅफ पेरिस से सजाया गया है। दीवार से मिला कर आधे आधे खंभे भी बनाए गये हैं। आधे और पूरे खंभे मिल कर मस्जिद की छत को रोकने वाले शहतीर को थामे रहते हैं। छत को लकड़ी के तख्तों और गारे से बनाया गया है। इस मस्जिद के निर्माण तारीख 1338 हिजरी क़मरी है। निर्माण तिथि की तख्ती, मस्जिद के मेहराब के निकट दीवार पर लगायी गयी है। गल्लेदारी मस्जिद भी  ईरान की राष्ट्रीय धरोहर की सूचि में शामिल है। 

 

गल्लेदारी मस्जिद के निकट, एक एतिहासिक हम्माम भी है जो विशेष रूप से पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। इस हम्माम को काजारी शासन काल में बनाया गया था। इस हम्माम को तेरहवी सदी हिजरी क़मरी में बनाया गया था। इस हम्माम को गल्लेदारी मस्जिद के लिए वक्फ किया गया है और इसे मस्जिद में नमाज़ पढ़ने वालों के लिए बनाकर वक्फ करने वाले का हाज शेख अहमद गल्लेदारी की कंपनी है। इस हम्माम की 30 वर्षों के दौरान दो बार मरम्मत की गयी। अगर आप हम्माम को निकट से देखें तो वहां समुद्री और स्पंज स्टोन, चूने और स्थानीय मसालों के निशान देखे जा सकते हैं। यह सब चीज़ें इस लिए प्रयोग की गयी हैं क्योंकि इस इलाक़े में हवा में नमी बहुत अधिक होती है। गल्लेदारी हम्माम को नौ दस साल पहले तक इस्तेमाल किया जाता था किंतु उसके बाद उसे संग्रहालय बना दिया गया यही वजह है कि दूर  दूर से पर्यटक इस हम्माम को देखने के लिए बंदरअब्बास जाते हैं और इस हम्माम को देख कर हुरमुज़गान प्रान्त की संस्कृति और सभ्यता की झलक देखते हैं। 

 

पुरुष  ः " यह जो जगह है इसे गल्लेदारी हम्माम कहा जाता है इसे इसी नाम के मशहूर व्यापारी ने बनवाया था। इस हम्माम को काजारी काल में बनाया गया था। ...

इस हम्माम को इस मोहल्ले की ज़रूरत के हिसाब से बनाया गया था और इसे इलाक़े के सभी लोग प्रयोग करते थे । इसे विभिन्न प्रकार के पत्थरों से बनाया गया है और इसे बनाने में जो चूने का प्रयोग किया गया है  वह " खमे" बंदरगाह से लाया गया था और इसे स्थानीय शिल्पकार ने बनाया था। इसके कई भाग हैं एक भाग वह है जहां से लोग प्रवेश करते हैं, एक भाग अपनी सफाई के लिए है और एक अन्य भाग नहाने के लिए है और इसी तरह हम्माम का एक वह है जहां नहाने के बाद लोग जाते थे। ...  यह जहां हम खड़े हैं अगर आप कैमरे से वहां दिखाएं तो वहां काउंटर था मतलब पैसे दिये जाते थे जब मैं आखिरी बार यहां आया था तो उस वक्त मैंने दो तूमान दिया था और टिप मिला कर दो तूमान पांच रियाल हुआ था। " 

बंदर अब्बास अपनी बहुत सी चीज़ों के लिए मशहूर है लेकिन सब से अधिक ख्याति इसकी बदंरगाह की वजह है क्योंकि इस बंदरगाह का इतिहास   काफी पुराना है। बंदर अब्बास की पुरानी जेट्टी नगर के ठीक बीच में स्थित है इसे आठ दशक पहले बनाया गया था। यह जेट्टी 185 मीटर लंबी और 420 मीटर चौड़ी है। इस जेट्टी से ईरानी व्यापारी बरसों तक दाल, चमड़ा, पिस्ता, कालीन और खजूर निर्यात और ईरान के लिए ज़रूरी  चीज़ों का आयात करते थे। यह जेट्टी, फार्स की खाड़ी के तटवर्ती देशों या फिर मुंबई, कराची, ओमान, अदन की बंदरगाहों या फिर जंजबार व केनिया जैसे देशों से ईरान के लिए आवश्कयक शकर, तेल, चावल, मसाले, लकड़ी आदि का आयात करते थे। 

बंदर अब्बास की पुरानी जेट्टी के निकट ही एक इमारत है जिसके " कुलाहे फरंगी" या फिरंगी टोपी कहा जाता है। यह इमारत भी बंदर अब्बास जाने वाले पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है । यह इमारत कभी बंदर अब्बास में देशी व विदेशी व्यापार का केन्द्र थी। इस इमारत को सफवी शासन काल में बनाया गया था। वैसे आप को इसके नाम की वजह भी  बता दें। इस इमारत को " कुलाहे फरंगी " फिरंगी टोपी इस लिए कहा जाता है क्योंकि इसे पश्चिमी शैली में बनाया गया है और कहते हैं कि इमारत को बनाने में युरोपीय शिल्पकला से प्रेरणा ली गयी है यही वजह है कि यह इमारत वास्तव में 16 बुर्जियों और 3 दरवाज़ों के साथ एक क़िले भी तरह है। 

तो मित्रो बंदर अब्बास में देखने को तो बहुत कुछ है और उन सब का उल्लेख हमारे लिए संभव नहीं है। इस लिए अब बंदर अब्बास की सैर को यहीं खत्म कर रहे हैं और चलते हैं उसके पड़ोसी क़िश्म द्वीप पर जो फार्स की खाड़ी में स्थिति  एक बेहद खूबसूरत द्वीप है लेकिन बंदर अब्बास से इस द्वीप तक सैर के लिए जाना आज संभव नहीं  इसके लिए आप को हमारे अगले सप्ताह के कार्यक्रम का इंतेज़ार करना पड़ेगा। तब तक के लिए अनुमति दें।