विज्ञान की डगर- 5
कार्यक्रम में आंख से जुड़ी मुश्किल रिफ़्रैक्टिव एरर्ज़ में ईरान के मशहद शहर की मेडिकल यूनिवर्सिटी की उपलब्धि पर चर्चा करेंगे।
मशहद शहर की मेडिकल युनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एसी इलेक्ट्रानिक मशीन बनायी है जिससे यह पता लगाया जाता है कि व्यक् की आंख में रंग की पहचान करने की क्षमता कैसी है। इसी तरह चीज़ को थ्री डइमेन्शन से देखने की क्षमता कैसी है।
इस यूनिवर्सिटी का अध्ययन केन्द्र डिस्लेक्सिया या थ्लासीमिया से पीड़ित लोगों की आंखों की मुश्किलों या रिफ़्रैक्टिव एरर्ज़ की जांच करता है। यह केन्द्र रेफ़्रैक्टिव एरर्ज़ के महामारी के स्तर पर अध्ययन में दुनिया में लगातार तीन साल पहले से तीसरे स्थान पर रहा है। पहले से तीसरे स्थान पर अमरीका, अस्ट्रेलिया और ईरान रहे हैं।
आज कल दुनिया में स्मार्ट बोट का इस्तेमाल बढ़ रहा है। स्मार्ट बोट के ज़रिए स्थिर पानी और उसके तल की निगरानी होती है। ईरानी वैज्ञानिकों ने इस तरह की बोट बनाने में सफलता हासिल की है।
ईरान की एक और प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी अमीर कबीर यूनिवर्सिटी आफ़ टेक्नालोजी के वैज्ञानिकों ने एसा साफ़्टवेयर बनाया है जो दिल के वाल्व की निरंतर हरकत की वीडियो बनाता है। इसकोकार्डियोग्राफ़ी और सोनोग्राफ़ी में कुछ कमियां हैं। इन मशीनों की एक मुश्किल यह है कि इनसे ली गयी तस्वीरों में क्रमबद्धता नहीं होती। जैसा कि अल्ट्रासाउंड की मशीन में अधिक मेगापिक्सल की तस्वीर लेना मुमकिन नहीं होता, जिसकी वजह से दिल के वाल्व की तेज़ हरकत की स्थिति और बीमारी की सही पहचान के लिए ज़रूरी क्रमबद्धता का पता नहीं चल पाता। इन सब कमियों को ईरानी वैज्ञानिकों ने दिल के वाल्व की निरंतर तस्वीर लेने वाला साफ़्टवेयर बनाकर दूर किया है।
अब आपका ध्यान तिब्बे इस्लामी की ओर मोड़ते हैं।
इस भाग में याददाश्त कमज़ोर होने की समस्या और उसके इलाज के बारे में उस्ताद अब्बास तबरीज़ियान के विचार पेश करेंगे इस्लामी तिब की नज़र से।
ईरान की मशहद मेडिकल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने जिस्म में विभिन्न जगहों पर मौजूद छोटे ट्यूमर के इलाज की मशीन बनायी है इस मशीन को जिस्म के दूसरे हिस्सों की तरह मस्तिष्क में मौजूद ट्यूमर के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं जहां रेडियोथ्रेपी और सर्जरी नहीं हो सकती। मस्तिष्क में ट्यूमर के संवेदनशील जगह पर होने और उसका छूना बीमार के लिए ख़तरनाक होने के मद्देनज़र विशेष मशीन की ज़रूरत होती है जिससे किरणों को सिर्फ़ ट्यूमर की जगह पर सीमित रखा जाए ताकि एक ही बैठक में ट्यूमर ख़त्म हो जाए।
याददाश्त कमज़ोर होने या भूलने की बीमारी की वजह बल्ग़म का बढ़ना है। जब बदन में बल्ग़म की मात्रा बढ़ जाती है, तो यह दिमाग की ओर ख़ून के बहाव में रुकावट बनने लगता है। जब ख़ून का दिमाग़ की ओर आसानी के साथ बहाव नहीं होता, तो दिमाग़ कमज़ोर होता है और भूलने की बीमारी या याददाश्त कमज़ोर होने की समस्या पैदा होती है। इंसान बातों को भूल जाता है, चीज़ेंरख कर भूल जाता है, कोई चीज़ याद करना चाहता है तो जल्द याद नहीं होती।
दारूए हाफ़ेज़ा नाम की दवा याददाश्त मज़बूत रखने में बहुत असरदार है। इस्लामी रवायत में है कि अगर कोई इस दवा को चधजदह दिन खाए तो याददाश्त इतनी ज़्यादा मज़बूत हो जाएगी कि लोग उसे जादूकर समझने लगेंगे।
इसके अलावा जो दवा है उसमें एक कुन्दुर नामक गोंद भी है, जिसें अंग्रेज़ी में बोस्वेलिया कहते हैं। इसे पीस कर खाना चाहिए। कुन्दुर याददाश्त के लिए बहुत ही ज़्यादा फ़ायदेमंद है।
एक और दवा है अदरक का मुरब्बा जो शहद से बना हो। अदरक और शहद से मिल कर बना हुआ मुरब्बा भूलने की बीमारी और अल्ज़ायमर की बीमारी दूर करने में बहुत ज़्यादा फ़ायदेमंद है।