Jul १२, २०२० १९:०८ Asia/Kolkata

पिछले कुछ कार्यक्रमों में हम ईरानी क़िले और इनकी वास्तुकला की विशेषताओं से परिचित कराया।

ज़्यादातर क़िलों की इमारत की डिज़ाइन उस समय की महारत और आक्रमणकारी दुश्मन के मुक़ाबले में रक्षा के अनुभव के आधार पर तय्यार की गयी थी और हर दौर की स्थानीय परंपरा की झलक इन किलों की इंटीरियर डिज़ाइन में नज़र आती थी। इतिहास के आरंभिक दौर में ईरान में क़िलेबंदी में मेसोपोटामिया की क़िलेबंदी का प्रभाव नज़र आता है। इसके बाद शताब्दियों तक क़िले काफ़ी हद तक एक जैसे ही बनते रहे लेकिन तेरहवीं शताब्दी से योरोपीय वास्तुकला की शैली का कुछ अंदाज़ ईरानी वास्तुकला में शामिल हुआ जिससे क़िला निर्माण की शैली में बदलाव आया। लेकिन किलों का अभेद्य होना और क़िले के ऊपर से दुश्मन के हमले की संभावना को ख़त्म करना सभी दौर में क़िले निर्माण का मुख्य लक्ष्य रहा है। ईरान में क़िला ख़तरे के समय जनता की शरणस्थली हुआ करता था। यही वजह है कि क़िले में रहने वाले और आम लोगों की रक्षा के लिए राष्ट्र के सपूतों की वीरता की कहानी का ईरान में क़िले के इतिहास से गहरा संबंध है।

सबसे पहले आपको ईरान के आज़रबाइजान इलाक़े में उरूमिये झील के पूर्वी तट पर स्थित मशहूर क़िला ज़हाक से आपको परिचित करा रहे हैं। इस क़िले को आज़दहाक भी कहते हैं। यह क़िला 3000 साल से भी ज़्यादा पुराना है। यह माद जाति के महत्वपूर्ण ठिकानों में था। यह क़िला समुद्र की सतह से 2300 की ऊंचाई पर बना है।

सबसे पहले 1971 में ज़हाक क़िले की पहचान हुयी। ज़हाक क़िले के तीन ओर गहरी खायी है। इसके भीतर पत्थर के भंडार, पानी के भंडार, चक्की, हम्माम, परिषद हॉल और दसियों कमरे हैं। इस क़िले में बने आधे कमरे बिना छत के हैं और बाक़ी आधे पहाड़ में तराश कर बनाए गए हैं। इनमें से ज़्यादातर कमरों में पानी भंडारण की सुविधा है और दीवारों में छोटे-छोटे ताक़ बने हुए हैं।

ज़हाक क़िले में द्वार के दोनों ओर अर्ध बेलनाकार मीनारें बनी हुयी हैं। इन मीनारों पर क्यूबाइड आकार के पत्थर लगे हुए हैं। पत्थर की यह इमारत सासानी शासन काल में बनी है लेकिन बरामद हुए मिट्टी के बर्तनों से पता चलता है कि सातवीं और आठवीं हिजरी शताब्दी में भी लोग इस क़िले में रहते थे। पहाड़ के आंचल में मौजूद सोते से क़िले में पानी सिरामिक पाइप लाइन के ज़रिए पहुंचता था। संगीत

पश्चिमोत्तरी ईरान में और भी क़िले मौजूद हैं जिनसे पहाड़ी क्षेत्रों में जनता की रक्षा अहमियत का पता चलता है। जुम्हूर या बाबाक क़िला बाबक ख़ुर्रमदीन का ठिकाना था जिसने 10वीं ईसवी में अब्बासी शासन के ख़िलाफ़ विद्रोह किया था और लंबा समय इस क़िले में गुज़ारा था। बाबक क़िले तक पहुंचना आसान काम नहीं है। इस क़िले तक पहुंचने के लिए दुर्गम व घुमावदार रास्ते को तय करना पड़ता है। इस मज़बूत क़िले तक पहुंचने के लिए पत्थर के 200 मीटर लंबे बारीक रास्ते से गुज़रना होता है। इस रास्ते से एक दफ़ा में सिर्फ़ एक शख़्स ही गुज़र सकता है। यह क़िला समुद्र की सतह से 2700 मीटर की ऊंचाई पर बना है। इस क़िले तक पहुंचने के लिए दुर्गम रास्ता पर्यटक के लिए हैरत का कारण बनता है। क़िले के चार कोनों पर वॉच टॉवर बने हुए हैं जहां बैठक कर सैनिक निगरानी करते थे। इन मीनारों से कई किलोमीटर दूर तक हर हिलने वाले की हरकत दिखाई देती थी। यह दुर्ग तीन मंज़िला बना है। किनारे बने हुए खंबों के भीतर ज़ीने से क़िले में दाख़िल होते हैं।

बाबक क़िले में एक मुख्य हॉल है जिसके चारों ओर 7 कमरे बने हुए हैं और उन सब में ताक़ बने हुए हैं। जल भंडारण कक्ष की दीवार ऐसे मसाले से बनी है जिसमें सेंध नहीं लग सकती। इस क़िले से विभिन्न इस्लामी काल के सिक्के और नाना प्रकार के उपकरण बरादम हुए हैं। यह क़िला रणनैतिक दृष्टि से बहुत अहम था जिसे भेद करना मुमकिन नहीं था। इतिहास में है कि कभी कभी 20 लोग ही दुश्मन की 1 लाख की फ़ौज को भगाने के लिए काफ़ी होते थे। संगीत

ईरान की राष्ट्रीय धरोहर की सूचि में पंजीकृत तेहरान का ऐतिहासिक क़िला भी है। यह क़िला और इसके भीतर बनी इमारतें सफ़वी शासन काल की यादगार हैं। इस समय ये इमारतें तेहरान की ऐतिहासिक संरचना में स्थित है। तेहरान का क़िला बहुत बड़ा था। यह क़िला लगभग 45 हेक्टर के क्षेत्रफल पर फैला हुआ था। लेकिन शहर के विकास की वजह से पिछले 100 साल में इसमें बहुत बदलाव आ चुका है। क़िले के चारों ओर सड़क और नई इमारतों का निर्माण हो चुका है जिसकी वजह से इसकी संरचना बहुत हद तक बदल गयी है। विज्ञान के विषयों की पहली यूनिवर्सिटी, पहला सार्वजनिक पार्क,  पहला म्यूज़ियम, पहला सरकारी इमामबाड़ा, शमसुल इमारा नामक इमारत जो उस समय तेहरान की सबसे ऊंची इमारत थी, तेहरान क़िले के भीतर बनी है। ईरानी वास्तुकला की एक विशेषता यह भी है कि एक शहर की अहम व राष्ट्रीय इमारतें एक दूसरे के पड़ोस में बनायी जाती थीं।

तेहरान का क़िला अन्य शहरों के क़िले की तरह रक्षा प्रतिष्ठान वाला क़िला था जिसके अवशेष अभी भी मौजूद हैं। इस क़िले की इमारतें कच्ची मिट्टी की कंगूरेदार बनी हुयी है। दीवार का ऊपरी भाग रंग बिरंगी ईटों का बना है।           

तेहरान के क़िले की डीज़ाइन मशहूर ईरानी वास्तुकार ग़ुलाम रज़ा तबरीज़ी ने तय्यार की थी। यह क़िला करीम ख़ान ज़न्द के आदेश से बना था। क़िले के चारों ओर बहुत चौड़ी ख़न्दक़ खुदी हुयी थी। ख़न्दक़ को क़ाजारी शासन काल में पाट दिया गया और उसकी जगह पर नई सड़कें बन गयीं। ऐतिहासिक दस्तावेज़ से पता चलता है कि क़ाजारी शासक मोहम्मद अली शाह के शासन काल में क़िले के पिछले भाग में स्थित ज़मीन की बोली लगायी गयी और ख़रीदारों ने उसे व्यापारिक केन्द्र बना दिया।

तेहरान के क़िले में सिर्फ़ दो दरवाज़े थे और बाक़ी संपर्क मार्ग क़िले के भीतर थे। एक दरवाज़ा क़िले के उत्तर में था जिसे दरवाज़े दोलत कहते थे और दूसरा दरवाज़ा क़िले के दक्षिण में था जिसे दरवाज़े नक़्क़ार ख़ाने कहते थे। बाद के वर्षों में इस क़िले में और दरवाज़े बनाए गए, जो बाद में नगर के विकास की नई परियोजनाओं के लागू होने की वजह से स्कवाएर या इमारतों में बदल गए।

इस समय तेहरान का क़िला अपनी ऐतिहासिक शान के बावजूद सिर्फ़ कुछ इमारतों तक सीमित रह गया है। रेडियो बिल्डिंग, अदालत की इमारत, शस्त्रागार की इमारत का प्रवेश द्वार, पॉलिटेक्टनिक की इमारत, अर्क मस्जिद और कुछ दूसरी छोटी इमारतें व प्रवेश द्वार ही बचे हैं जिन्हें राष्ट्रीय धरोहर की सूचि में शामिल किया गया है। पिछले कुछ दशकों के दौरान तेहरान के क़िले का मूल स्वरूप बदल गया और जहां पर तेहरान का क़िला हुआ करता था अब वह भीड़ भाड़ वाला इलाक़ा बन गया है। तेहरान के क़िले के पास ही तेहरान का प्राचीन बाज़ार स्थित है जिससे इस इलाक़े की ऐतिहासिक व आर्थिक अहमियत का पता चलता है।

 

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