Jul २०, २०२० १३:५९ Asia/Kolkata

आधुनिक संसार में प्रचलित मानसिक बीमारियों में अवसाद, सबसे अधिक प्रचलित बीमारी है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सन २०१७ में अवसाद को विश्व स्वास्थ्य दिवस का मुख्य मुद्दा घोषित किया था।

डबूल एच ओ की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान समय में संसार में ३०० मिलयन से अधिक लोग उदासीनता का शिकार है जिनमें से अधिकांश पश्चिमी देशों में रहते हैं।

इस मानसिक विकार का कारण अलग अलग देशों में भिन्न है। अवसाद जैसी मानसिक बीमारी की गंभीरत को देखते हुए इसे आगामी दशकों के लिए एक चेतावनी के रूप में पेश किया जा रहा है।

 

पदार्थों के प्रयोग जैसे कारक औद्योगिक जीवन के दुषपरिणाम हैं जिसके नतीजे में उदासीनता और स्ट्रेस जन्म लेता है। दैनिक जीवन में स्ट्रेस बढ़ाने का एक अन्य कारक सामाजिक संपर्कों का कम होना है।

उदासीनता और निराशा के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सन २०१७ में अवसाद को विश्व स्वास्थ्य दिवस का मुख्य मुद्दा घोषित किया था।

अलग थलग रहना और सामाजिक संपर्कों के कम होने को आज पश्चिमी समाजों मं जीवनशैली के रूप में स्वीकार किया जा चुका है और यह सोच दिन प्रतिदिन प्रचलित होती जा रही है।

 

लोगों के बीच वे संपर्क जो आमने सामने होते हैं उनका महत्व होता है और वे भावनाओं को स्थानांतरित करते हैं। इस सतय अज सक लौब पूरा दहन रख़ानें, कार्यालयों, कंपनियों और अन्य प्रकार के कार्यस्थलों पर रहकर थक जाते हैं।

पश्चिम में रहने वाले बहुत से लोगों के भीतर बहुत लंबे समय तक चिंता, असंतोष, निराशा और घबराहट की भावना रहती है जो कभी कभी सप्ताहों और महीनों तक चलता रहता है। कभी कभी यह प्रक्रिया , वर्षों तक रह सकती है। यह स्थिति बहुत ख़तरनाक होती है। यदि यह स्थिति चलती रहे तो नींद न आने की मुश्किल पेश आती है। स्टीफ़न एलड्री का मानना है कि इस बीमारी का उपचार दपा नहीं बल्कि

जीवनशैली में परिवर्तन लाना है।

डाक्टरों का कहना है कि ८ घण्टे से कम की नींद, उदासीनता का कारण बनकर अवसाद में परिवर्तित हो सकती है। अमरीकी स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार अमरीका में प्रतिवर्ष लगभग ८० मिलयन लोग पूरी नींद नीहं सो पाते। यही विषय उनके भीतर अवसाद का कारण बनता है जिसमें महिलाओं कीसंख्या अधिक है। एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया है कि अमरीका  एक तिहाई आबादी, एसा दवाओं का प्रयोग करती है जिनसे अवसाद का ख़तरा बना रहता है।

 

संसार के विकसित देशों में अमरीका और ब्रिटन एसे देश हैं जहां पर अवसादग्रस्त लोगों की संख्या अधिक है। अमरीका के स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार इस देश में प्रतिवर्ष ५६ मिलयन लोग अवसाद का शिकार हो रहे हैं। हालांकि इससे मुक़ाबले के लिए कोशिश की जा रही हैं किंतु इच्छित परिणाम अभी सामने नीहं आए हैं। ब्रिटेन में किये गए नए सर्वेक्षणों के अनुसार इस देश में अवसाद के मरीज़ों की संख्या में वृद्वि होती जा रही है।

ब्रिटेन में सन २०१६ में अवसाद के उपचार के लिए लगभग ६४ मिलयन नुस्ख़े लिखे गए थे। विशेष बात यह है कि पिछले १० वर्षों की तुलना में इस संख्या में १०० प्रतिशत वृद्वि हुए है। बताया जाता है कि पश्चिमी जगत में ब्रिटेन एसा देश है जहां पर कई प्रकार की सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं के कारण वहां के लोग अवसाद का शिकार होते हैं।

उत्तरी यूरोप के वे देश जिनको बहुत से सर्वेक्षणों और रिपोर्टों में संसार के प्रसन्न देशों की सूचि में रखा जाता था, वहां भी अब यह मुश्किल पहुंच गई है। इन देशों में बहुत से लोग विशेषकर जवान और महिलाएं अवसाद की ओर बढ़ रहे हैं । अध्धथ्यनों से यह पता चलता है कि यूरोपीय देशों में रहने वाले युवाओं के भीतर चिंता, उदासीनता, असंतोष र एंटी डिप्रेशन दवाओं के प्रयोग ने भी उनके भीतर मानसिक स्वास्थ्य संबन्धी समस्याओं को जन्म दिया है।

 

उत्तरी यूरोप में युवाओं के अतिरिक्त प्रौढ़ लोगों मं तनाहाई या अकेलापन भी, मानसिक समस्या का एक कारण है।

इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले माइकल बेरकेजी का मनना है कि पश्चिमी युवाओं के बीच उदासीनता और अकेलेपन की समस्या, दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान यह प्रक्रिया तेज़ी से बढ़ी है। वे कहते हैं कि अकेलेपन और मानसिक दबाव वे कारक है जो इन युवाओं में लगातार बढ़ते जा रहे हैं।

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