पश्चिमी जीवन की सच्चाई- 8
घरेलू हिंसा की समस्या केवल तीसरी दुनिया के देशों तक सीमित नहीं है बल्कि यह समस्या पश्चिमी देशों में भी मौजूद है।
५० साल से भी अधिक समय पहले पश्चिमी समाज में इस समस्या को स्पष्ट रूप से देखा जा चुका है।
फ़्रांस में हर तीसरे दिन घरेलू हिंसा का शिकार एक महिला मौत के मुंह में चली जाती है।
फ़्रांस में हर तीसरे दिन घरेलू हिंसा का शिकार एक महिला मौत के मुंह में चली जाती है। यह हिंसा, सामान्यतः पति द्वारा की जाती है। फ़्रांस के गृह मंत्रालय की ओर से जारी बयान के अनुसार सन २०१७ में देश में 100 से अधिक महिलांए घरेलू हिंसा के कारण मौत का शिकार हुई थीं।
घरेलू हिंसा का एक कारण नारीवादी विचारधारा का प्रचार व प्रसार है। फ़ैमिनिज़्म या नारीवादी विचारधारा में इस बात का भरपूर प्रयास किया जाता है कि घर के मुखिया के रूप में विचसा में पुरूष की भूमिका को हिंसा के मुख्य कारक के रूप में पेश किया जाए। यही कारण है कि इस विचारधारा में घरेलू हिंसा को रोकने का एकमात्र मार्ग, परिवार में प्रभुत्व के प्रभाव को कम करने के लिए व्यक्तिवाद की विचारधारा को फैलाना है।
पश्चिमी देशों में बढ़ती घरेलू हिंसा का एक अन्य कारण, परिवार की समस्याओं के समाधान में क़ानून की सहायता लेना है। पहली नज़र में तो यह दिखाई देता है कि क़ानून का संरक्षक प्राप्त पश्चिमी महिला, हिंसा का कम ही शिकार होती है किंतु जब इस बारे में हम पश्चिमी देशों में जारी किये जाने वाले आंकड़ों पर द्रष्टि डालते हैं तो पाते हैं कि ऐसा नहीं है जैसा हम लोग सोचते हैं बल्कि वहां पर घरेलू हिंसा ही महिलाओं के विरुद्ध हिंसा का मुख्य कारक है जिसके बाद कार्यस्थल पर भी हिंसा की घटनाएं घटती रहती हैं।
महिलाओं के समर्थन में जो विभिन्न प्रकार के क़ानून बनाए जाते हैं उनमें एक बिंदु की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। वह बिंदु यह है कि घर या परिवार में ज़रूरत प्रेम और समानुभूति की होती है न कि रूख़े क़ानूनों की। वास्तव में घर या परिवार इसके सदस्यों के लिए शांति, प्रेम और परस्पर सम्मान का केन्द्र हतता है।
परिवारों का बाक़ी रहना शांति, प्रेम और परिवार के सदस्यों के बीच आपसी सम्मान पर निर्भर करता है। समाज की मूलभूत इकाई के रूप में परिवार ही नैतिक एवं मानसिक दृष्टि से इसके सदस्यों का प्रशिक्षण स्थल है।
बहुत से जानकारों का कहना है कि घरेलू हिंसा के अतिरिक्त यौन उत्पीड़न जैसी समस्या का समाधान की बच्चे अधिक होते हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि सन २०१८ में जर्मनी में 14000 बच्चे यौन उत्पीड़न का शिकार हुए थे। इसी दौरान 4000 से अधिक बच्चे घरेलू हिंसा का शिकार हुए। जर्मनी के पुलिस प्रमुख के अनुसार यह आंकड़े उन आंकड़ों से अलग हैं जिन्हें प्रभावितों के परिजनों, उनके जानने वालों या उनसे संबन्धित लोगों ने लज्जा या पारिवारिक कलह के चलते शिकायत के रूप में नहीं पेश किये।
यहां पर ध्यान योग्य बिंदु यह है कि वे देश जो पूरे संसार में स्वयं को मानवाधिकारों विशेषकर महिलाओं और बच्चों के अधिकारों के समर्थक के रूप में दिखाते हैं, उन्हीं देशों में घरेलू हिंसा तेज़ी से बढ़ रही है।