Aug ०३, २०२० १४:४६ Asia/Kolkata

हमने बूशहर की यात्रा की थी और वहां के कई दर्शनीय स्थलों की सैर की थी।

जैसा कि हमने बताया था कि बूशहर प्रान्त के पर्यटन स्थलों में विविधता बहुत अधिक पायी जाती है। गुनावे, दीलम, दीर, कंगान जैसे बंदरगाह और बराज़जान, खूरमौज, दश्तिस्तान और तंगिस्तान जैसे नगर अपनी अपनी जगह पर खास हैं और खास प्रकार के पर्यटकों को लुभाते हैं।आज हम आप को बूशहर के तंगिस्तान नगर की सैर करा रहे हैं।

 तंगिस्तान को बूशहर प्रान्त के आकर्षक पर्यटन स्थलों में गिना जाता है। इसी वजह यह है कि इस नगर में समुद्री तट भी है और जंगल भी हैं और पहाड़ भी मौजूद हैं तो फिर जहां यह तीनों चीज़ें हों वहां पर्यटकों का तांता तो बंधा ही रहता है। तंगिस्तान शहर के निवासियों की अधिकतर गतिविधियां सेवाओं पर आधारित हैं और इस नगर के लोग कृषि और शिकार भी किया करते हैं लेकिन इस क्षेत्र के निवासियों को ख्याति किसी और कारण से मिली है। इस नगर के लोग हालिया वर्षों के दौरान देश प्रेम और वीरता में प्रसिद्ध रहे हैं। इस  क्षेत्र  लोगों की वीरता की कहानी ईरान के हर क्षेत्र में सुनी और सुनायी जाती है। यहां के निवासियों ने प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन की सेना का उस समय जम कर मुक़ाबला किया जब उन्होंने ईरान के दक्षिणी क्षेत्रों और शीराज़ पर हमला किया था। तंगिस्तान में ही दिलवार बसा है। 

जब आप बूशहर से देयर बंदरगाह की ओर चलते हैं तो लगभग चालीस किलोमीटर चलने के बाद दिलवार नामक तटीय नगर पहुंच जाएंगे। इस नगर का अर्थ ही दिलेर और बहादुर है। ईरान के इतिहास में दिलवार की भूमिका काफी अहम रही है और इस क्षेत्र में निर्णायक घटनाएं घटी हैं जिनसे ईरान के इतिहास का रुख बदल गया। इस नगर के पश्चिम में फार्स की खाड़ी और पूरब में ज़ागरुस पर्वतीय  श्रंखला के पहाड़ सिर उठाए खड़े हैं। दिलवार के शहीद रईस अली दिलवारी का नाम बूशहर के से जुड़ा है।  दक्षिणी ईरान में ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध संघर्ष का नेतृत्व करने वाले रईस अली दिलवारी पूरे ईरान में वीरता व संंघर्ष का प्रतीक माने जाते हैं।  दर अस्ल प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन ने दक्षिणी ईरान पर अधिकार करने का प्रयास किया था । ऐसे समय में  रईस अली दिलवारी ने देश की रक्षा के लिए संघर्ष आरंभ और ब्रिटिश सेना के मुक़ाबले के लिए जनता का नेतृत्व किया। उन्होंने दक्षिणी ईरान की महत्वपूर्ण बूशहर बंदरगाह पर अधिकार करने के ब्रिटिश सेना के प्रयासों को कई बार विफल बनाया। यह संघर्ष 7 वर्ष तक जारी रहा। सन 1915 में ब्रिटेन के सैनिकों और स्थानीय जनता के बीच भीषण युद्ध आरंभ हुआ था। इस युद्ध के दौरान रईसअली दिलवारी ने जनता के सहयोग से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ब्रिटेन के सैनिकों और रईसअली दिलवारी के नेतृत्व में होने वाला युद्ध ईरान के इतिहास में वर्चस्ववादियों के मुक़ाबले में प्रतिरोध का उदाहरण है। 

रईसअली दिलवारी

 

दर अस्ल हुआ या था कि अगस्त सन 1915 में ब्रिटेन की सेना बिना किसी सूचना या घोषणा के बूशहर में घुस गयी। फार्स की खाड़ी पर क़ब्ज़े के बाद ब्रिटेन की नज़र बूशहर पर थी जो व्यापारिक लेन देन के लिहाज़ से एक बहुत ही महत्वपूर्ण बंदर गाह थी। लेकिन तंगिस्तान की जनता ने अली दिलवारी के नेतृत्व में ब्रिटेन के खिलाफ संघर्ष शुरु कर दिया और अन्ततः रईसअली दिलवारी अग्रेज़ों से लड़ते लड़ते शहीद हो गये। आज शहीद रईसअली दिलवारी के घर को संग्रहालय बना दिया गया है जहां स्थानीय लोगों की जीवन शैली से सैलानियों को परिचित कराया जाता है। 

यहां हम शहीद रईसली दिलवारी के घर के सामने खड़े हैं, इस घर के दरवाज़े पर आप गोलियों से होने वाले सूराख देखंगे। अस्ल में जब अग्रेज़ सैनिक दिलवार में घुसे थे तो यह पूरा शहर खाली हो चुका था इस लिए गुस्से में अग्रेज़ों ने घरों पर अंधाधुंध फायरिंग की जिसके चिन्ह आज भी देखे जा सकते हैं। .... दरवाजे से जब आप अंदर आते हैं तो आप को यह दृश्य नज़र आता है जैसे दरवाज़े के दो पट होते हैं वैसे ही इस संघर्ष के दो नेताओं की बैठकें हैं। यह सैयद अब्दुल्लाह बेलादी थे जो काजारी काल के धर्मगुरु थे उनके पास ही शहीद रइसअली दिलवारी हैं। हैदद गुलाम , गुलाम शाह हैदर, हाज हुसैन रश्ती, दो बाडी गार्ड्स भी हैं। एक बाईं तरफ , उसका नाम आलीवस , और यह दाहिनी तरफ वाले का नाम हाजीलू है। ... यह फोटो जो आप देख रहे हैं यह काजारी काल का है, यह शहीद रईसअली दिलवारी हैं। यह सैयद सुलैमान गुमारानी हैं जो नजफ व कर्बला व बसरा के धर्मुगुरुओं और सैयद रईस अली दिलवारी के बीच संपर्क का काम करते थे वह शहीद दिलवारी के खत इन धर्मगुरुओं के पास ले जाते थे। शहीद दिलवारी के ज़्यादा तर खत , हाज सैयद मोहम्मद काज़िम खुरासानी के लिए होेते थे। ....यह बंदूक शहीद रईसअली दिलवारी की थी, सरपाई नाम है इसका , यह एक इलाक़े का नाम है। ... पिस्तौल भी उनका है यह देखें उनकी की नली अलग अलग साइज़ की है । कुछ ही नली बड़ी और कुछ की छोटी है। ... यह बूशहर का मानचित्र है। अग्रेज़ों के जहाज़ बूशहर को चारों तरफ से घेर लेते हैं। ... यह दिलवार का नक्शा है। जब अग्रेज़, बूशहर में शहीद रईसअली दिलवारी से हार जाते हैं तो वह दिलवार का धावा बोल देते हैं लेकिन दिलवार, शहीद रईसअली दिलवारी के आदेश से पहले की खाली हो चुका था  और लोग पहाड़ों में शरण ले चुके थे। अग्रेज़ दिलवार पर हमला करते हैं और उस पर क़ब्ज़ा कर लेते हैं लेकिन शहीद रइसअली दिलवारी अपने साथियों के साथ रात में अग्रेज़ों पर हमला करते हैं और एक भीषण लड़ाई में उन्हें हरा देते हैं और अग्रेज़ दिलवार छो़ड़ कर भाग जाते हैं। .... यह शहीद रइस अली दिलवारी का सौगंध पत्र है जो उन्होंने हाज सैयद मोहम्मद रज़ा काज़ेरूनी  के लिए भेजा था। सैयद रज़ा काज़ेरूनी बूशहर के प्रसिद्ध व्यापारी थे। वह रइसअली दिलवारी की आर्थिक मदद करते थे। उनके नाम इस पत्र में रइसअली दिलवारी ने लिखा है कि "  हे ईश्वरीय ग्रंथ! गवाह रहना, मै क़सम खाता हूं अगर अग्रेज़ों ने बूशहर पर क़ब्ज़ा करना चाहा तो मैं उठ खड़ा हूंगा ्और अपने खून की अंतिम बूंद तक उनसे लड़ूंगा और अगर इसके अलावा कुछ हो तो मानो मैंने आप का इ्नकार किया और ईश्वर और उसके दूत मुझ से विरक्त हो जाएं। .... यह दक्षिण के बहादुर कमांडर शहीद रइसअली दिलवारी की क़ब्र है जो नजफ के वादियुस्सलाम क़ब्रिस्तान में है और इसके आस पास कई पवित्र स्थल हैं। उन्हें यहां उनकी वसीयत के अनुसार दफ्न किया गया है। " 

रइस अली दिलवारी के संग्रहालय को देखने और ईरन के इस प्रसिद्ध हस्ती से परिचित होने के बाद हम अहरम नगर का रुख करते हैं जहां कलात नामक एतिहासिक क़िला भी मौजूद हैं। अहरम तंगिस्तान का केन्द्र है और यह नगर   भी बूशहर के हरभरे क्षेत्रों में गिना जाता है । यह नगर  ऐतिहासिक, धार्मिक व प्राकृतिक दृष्टि से पर्यटन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण स्थल समझा जाता है। अहरम में विभिन्न फलों के बाग़ों और सोतों के पाये जाते हैं जिसकी वजह से इस नगर में  प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में देशी और विदेशी पर्यटन आते हैं।  इस नगर में  मौजूद दो क़िलों के अवशेष, उन लोगों की याद दिलाते हैं जिन्होंने अपने देश की रक्षा के लिए अपने प्राण  न्योछावर कर दिये। इन दोनों क़िलों के अवशेष भी ईरान की ऐतिहासिक धरोहर  हैं। यह नगर बूशहर से 54 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस नगर में कलात क़िला, ओबा गर्म सोता, मीर अहमद सोता, खाईज़ संरक्षित क्षेत्र, इमामज़ादा इब्राहीम का मज़ार, इमामज़ादा जाफर का मज़ार, अहरम डैम, क़ूचरक गर्म पानी का सोता और तंगिस्तान के हरे भरे खजूरों के बाग, सैलानियों को हमेशा तंगिस्तान आने का निमंत्रण देते हैं। 

 

कलात अहरम का क़िला काजारी काल के अंतिम समय की यादगार है। यह किला अहरम शहर के उत्तरी भग में स्थित है और कहते हैं कि इसके मालिक का नाम ज़ायर खिज़्र अहरमी था। पूरा क़िला 3400 वर्ग मीटर पर बनाया गया है । क़िले में चार बुर्जियां हैं और बीच में भी पहरे के लिए एक बुर्जी बनी है। इस क़िले में रहने वालों के लिए अपनी व्यवस्था थी। कलात क़िले के निर्माण में जिन मसालों का प्रयोग किया गया है उसमें गारा और ईंट सब से अधिक है। प्रथम विश्व युद्ध में यह क़िला, साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष करने वालों का ठिकाना था  और अग्रेज़ों के खिलाफ कई युद्ध इसी क़िले की मदद से लड़े गये। क़िले में जगह जगह आज की गोलियों के निशान हें इसी प्रकार अग्रेज़ सिपाहियों को इसी क़िले में बंदी बना कर रखा जाता था । इस क़िले को ईरान की राष्ट्रीय धरोहर में शामिल किया गया है। 

रइस अली दिलवारी के संग्रहालय

अहरम में गर्म पानी का सोता, सैलानियों के लिए बेहद आकर्षक जगह है और ईरान के कोने कोने से पर्यटक इस सोते को देखने के लिए अहरम जाते हैं । इस पानी से बहुत सी बीमारियों का भी इलाज होता है इसी लिए एक बार इस सोते को पानी से उपचार के अत्याधिक लोकप्रिय् केन्द्र का इनाम भी मिल चुका है। यह सोता, पत्थरों के बीच फूटने वाली पानी की धार से बना है और गर्म होता है इस सोते के पास दो हौज़ बनाए गये हैं एक महिलाओं के लिए और दूसरा पुरुषों के लिए। अहरम जाने वाले अपने परिचतों के लिए इस नगर से खजूर खरीदते हैं जो कई तरह की होती हैं।