ईरान भ्रमण - 42 (सुन्दर प्रान्त शीराज़)
पिछले कार्यक्रमों में हम आप को ईरान के बेहद खूबसूरत प्रान्त हुरमुज़गान की सैर करा रहे थे लेकिन आज हम आप को ईरान के एक दूसरे प्रान्त से परिचित कराना चाहते हैं।
यह प्रान्त कई अर्थों में बेहद महत्वपूर्ण है। आज हम आप को फार्स प्रान्त ले चलेंगे जो दक्षिण पश्चिमी ईरान में स्थित है और इस प्रान्त की राजधानी शीराज़ है जिसकी अपनी एक दुनिया है, एक इतिहास है एक सभ्यता है। साहित्य, कविता और संस्कृति में इतना ही मशहूर है यह नगर कि जब भारत के उत्तर प्रदेश का जौनपुर शहर संस्कृति व साहित्य का केन्द्र बना तो उसे " शीराज़े हिंद" कहा जाने लगा। शीराज़ शहर में ईरानी सभ्यता व इतिहास के अनमोल मोती बिखरे हैं। इस नगर में " तख्ते जमशेद " के महान साम्राज्य के अवशेष हैं तो " हाफिज़ व सअदी जैसे अमर कवियों पर इस नगर को नाज़ है।
बीबीसी की वरिष्ठ पत्रकार रेणू अगाल ने सन 2005 में ईरान यात्रा के बाद लिखा था कि " रवींद्रनाथ ठाकुर ने ईरान पहुँचकर अपने विचार कुछ इस तरह व्यक्त किए थे ।1932 में वे शीराज़ पहुँचे ख़्वाजाह शम्सुद्दीन मोहम्मद हाफ़िज़ शीराज़ी के मज़ार पर और उन्होंने लिखा, “मैं हाफ़िज़ की आरामगाह के पास बैठा, मुझे उनके स्पर्श का यहाँ के बग़ीचे, यहाँ के खिलते गुलाबों में अहसास हुआ” दुनिया में कविताओं को शायद ईरानियों से ज़्यादा कोई पसंद नहीं करता और शीराज़ को तो आप ईरान की काव्यात्मक राजधानी कह सकते हैं। फार्सी कविता के दो दिग्गज 13वीं सदी में शेख़ सादी और 14वीं सदी में हाफ़िज़, दोनों शीराज़ की देन हैं। सादी, तुर्की के रास्ते भारत पहुँचे थे वहीं हाफ़िज़ शीराज़ के बाहर बहुत कम निकले। हाफ़िज़ ने एक शहर से दुनिया की तस्वीर खींची तो सादी ने दुनिया को एक शहर में समेट दिया।अपने जीवन काल में ही हाफ़िज़ भारत में लोकप्रिय हो चुके थे. हैदराबाद के बहमनी राजा ने उन्हें आने का न्यौता भी दिया था पर वे तूफ़ान के चलते बंदर अब्बास तक ही पहुँच पाए । यहाँ तक कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी हाफ़िज़ ने आकृष्ट किया। "
शीराज़ की बिखरे सौन्दर्य और आकर्षण पर नज़र डालने से पहले बेहतर होगा कि हम आप को ज़रा इस शहर के अतीत में झांकने का अवसर दें। फार्स प्रान्त तो ईरान के इतिहास में हमेशा ही परशियन सभ्यता का केन्द्र समझा जाता रहा है। पासारगारद, तख्ते जमशेद, बीशापुर, शहरे गूर और फोरोज़ाबाद में अर्दशीर बाबकान का महल आदि वह जगहें हैं जिन्हें ईरान के इतिहास व सभ्यता के जगमगाते सितारों की संज्ञा दी जाती है।
यह प्रान्त ईरान के हखामनी और सासानी साम्राज्यों की राजधानी रहा है। इस्लाम के उदय से पूर्व इस इलाक़े में ईरान के दो बड़े सम्राटों, साइरस और अर्दशीर बाबकान का उदय हुआ और साइसर ने हखामनी शासन श्रंखला की नींव रखी और पासारगाद व तख्त जमशीद को अपनी राजधानी बनाया । इसी तरह अर्दशीर बाबकान ने सासानी शासन श्रंखला की नींव रखी और उसकी राजधानी फिरोज़ाबाद को बनाया। इस्लाम के उदय के बाद भी इस प्रान्त में दैलमी, अताबकान, आलेबुवैह और ज़ंदिया शासन श्रंखलाएं फली फूलीं और यह प्रान्त काजारी शासन काल में भी महत्वपूर्ण सरकारी केन्द्रों में से रहा है।
शीराज़ पर ईरान के कई शासन श्रंखलाओं का राज रहा है और वह एक दूसरे से इस इलाक़े को लेेते और गंवाते रहे हैं। उन सब के निशान, आज ईरान के इतिहास की धरोहर हैं।

यहां पर हम आप को यह बताना चाहते हैं कि ईलामी शिलालेखों में भी शीराज़ का नाम लिया गया है। ईलामी शिलालेख दो हज़ार साल ईसापूर्व से संबंध रखते हैं। इसके अलावा शीराज़ नगर के आस पास मौजूद टीलों पर जीवन और मानव सभ्यता के एेसे चिन्ह मिले हैं जिनकी प्राचीनता, 7 हज़ार साल है। हखामनी काल में शूश से तख्ते जमशीद और पासारगाद जाने का रास्ता, शीराज़ से गुज़रता था और अश्कानी शासन श्रंखला के अंतिम शासन ने इस नगर को भी अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया था। इसके अलावा सासानी काल की दो महत्वपूर्ण राजधानियों अर्थात बीशापूर और गूर नगरों का रास्ता भी शीराज ़ से ही गुज़रता था । वैसे शीराज़ से पहले " इस्तख्र" फार्स प्रान्त का सब से अधिक मशहूर नगर था जिसने सातवीं सदी में अरबों के हमलों के सामने सिर नहीं झुकाया किंतु अन्ततः अरबों ने इस नगर पर क़ब्ज़ा कर लिया जिसके बाद इस प्राचीन नगर का खंडहर ही बचा। इस नगर के तबाह होने के बाद शीराज़ मशहूर होने लगा। मंगोलों के हमले से पहले, सलजूक़ियों और ख्वारिज़म्शाह के दौर में शीराज़ उनके साम्राज्य के महत्वपूर्ण नगरों में समझा जाता था। रोचक बात यह है कि ईलखानी व तैमूरी काल में कि जब चंगेज़ खान ने ईरान पर हमले आरंभ कर दिये थे, शीराज़, तबाही से बचा रहा। मंगोलों के हमले से सुरक्षित रह जाने वाला शीराज़ चौदहवीं सदी में कला व संस्कृति से लगाव रखने वालों का केन्द्र बन गया।
हम यह तो बता ही चुके हैं कि शीराज़ हाफिज़ व सअदी सहित ईरान के कई मशहूर शायरों की भूमि है लेकिन इस स्वर्णिम काल के बाद शीराज़ ने बहुत से उतार चढ़ाव देखे हैं। अच्छे दिनों में शीराज़ की आबादी बड़ी तेज़ी से बढ़ी लेकिन जब इस शहर पर हमले आंरभ हुए तो लोगों ने शहर छोड़ कर भागना शुरु कर दिया। यह सिलसिला करीम खान जंद कीे शासन के आरंभ तक जारी रहा और जब करीम खान जंद ने शीराज़ को अपने राज की राजधानी बनाया तो शीराज़ में स्थिरता पैदा हुआ और आबादी बढ़ने और फिर नगर छोड़ कर भागने का सिलसिल रुक गया। करीम खान जंद ने शीराज़ में बहुत कुछ बनवाया लेकिन एक क़िला, एक शानदार मस्जिद और अदभुत बाज़ार आज भी उनकी यादगार के रूप में शीराज़ में मौजूद है। उनके बाद हालांकि मुहम्मद खान काजार के हमले के बाद यह नगर देश की राजधानी के बजाए, एक प्रान्त की राजधानी बन गया लेकिन फिर शीराज़ नगर का महत्व आज भी बाकी है।

यूं तो शीराज़ में जगह जगह इतिहासिक अवशेष और पुराने ज़माने की यादगारे बिखरी पड़ी हैं जिनके बारे में हम विस्तार से चर्चा करेंगे किंतु इस नगर की एक विशेष चीज़ पूरे ईरान में काफी मशहूर है। यह इस लिए भी मशहूर है कि शीराज़ जाने वाला हर यात्री सब से पहले इसी यादगार को देखता है। दरअस्ल शीराज़ नगर में घुसने से पहले ही एक बड़ा सा दरवाज़ा नज़र आता है जिसे " कु़रआन का दरवाज़ा " कहा जाता है। इस दरवाज़े का संबंध, " अज़ुद्दौला दैलमी " के काल से संबंध रखता है। अज़ुद्दौला यह चाहते थे कि शीराज़ में आने और जाने वाला हर व्यक्ति " कुरआन" के साए में इस शहर में दाखिल हो ताकि कुरआन की बरकत से उसकी रक्षा हो सके। इस द्वार को कई कालों में बार बार बनाया गया और जंदिया काल में पूरी इमारत का डिज़ाइन ही बदल दिया गया। आज जो इमारत है वह पहले की आरंभिक इमारत से बहुत अलग है क्योंकि कई बार उसकी मरम्मत की गयी। इस दरवाज़े को ईरान की राष्ट्रीय धरोहरों की सूचि में पंजीकृत किया गया है।

दरवाज़ए क़ुरआन की इमारत से दस मीटर की दूरी पर " कमालुद्दीन अबुल अता " का मक़बरा है। " ख्वाजवी किरमानी" के नाम से ईरान के बेहद मशहूर शायर आठवी सदी से संबंध रखते हैं। इस मज़ार के पास ही " रुकनाबादी" सोता भी है। बिना छत का यह मक़बरा अस्सी साल पहले बनाया गया था और तब से अब तक कई बार उसकी मरम्मत हो चुकी है। ख्वाजू के मक़बरे से थोड़ी ही दूर पर तीन गुफाएं हैं जिनमें से एक गुफा, तपस्या और उपासना के लिए थी और स्वंय ख्वाजू भी उन्ही में से एक गुफा में बरसों उपासना कर चुके हैं।
इतिहासकारों के अनुसार ख्वाजू किरमानी, सन 679 हिजरी कमरी में किरमान में पैदा हुए थे। ईरान में साहित्य के क्षेत्र में उनका बड़ा नाम है। वह सैर व सफर के लिए अपने नगर से बाहर निकले और अबीद ज़ाकानी, सलमान साओजी, एमाद फक़ीह किरमानी, ख्वाजा हाफ़िज़ शीराज़ी और मशहूर सूफी शेख अमीनुद्दीन बलयानी जैसी बड़ी बड़ी हस्तियों के संपर्क में रहे औरर सन 752 में शीराज़ नगर में उनका देहान्त हो गया। उनका मज़ार भी ईरान की सांस्कृतिक धरोहरों की सूचि में शामिल है।
ख्वाजवी किरमानी के मज़ार से थोड़ी दूर पर शीराज़ का बेहद खूबसूरत पर्यटन स्थल है जहां शीराज़ की यात्रा करने वाला हर पर्यटक ज़रूर जाता है। यह ईरान के मशहूर कवि हाफिज़ शीराज़ का मज़ार है जिसे " हाफ़िज़िया" कहा जाता है। हाफिज़िया के बारे में हम विस्तार से चर्चा अपने अगले कार्यक्रम में करेंगे।