Aug ०४, २०२० ११:३४ Asia/Kolkata

हमने ख़ुर्रमशहर को आज़ाद कराने के लिए विशाल अभियान बैतुल मुक़द्दस शुरु करने हेतु सेनाओं की तय्यारी के बारे में बताया।

जिस क्षेत्र में बैतुल मुक़द्दस अभियान अंजाम पाने वाला था, वह इतना विशाल और रणनैतिक दृष्टि से ईरान और इराक़ के सद्दाम शासन दोनों के लिए इतना अहम था कि दोनों ही देश की सैन्य क्षमता का बड़ा भाग इस इलाक़े में केन्द्रित था। दक्षिणी ईरान के अतिग्रहित इलाक़ों को अपने क़ब्ज़े में बाक़ी रखने के लिए सद्दाम पूरब और पश्चिम के दो ब्लाकों के सैन्य उपकरण, उनकी आर्थिक, वित्तीय व राजनैतिक मदद पर निर्भर था। इसके विपरीत इस्लामी गणतंत्र ईरान दो बड़ी शक्तियों की ओर से लगायी गयी कठोर सैन्य व आर्थिक पाबंदियों से घिरे होने के बावजूद, ईश्वर, आस्तिक व वीर युवाओं पर निर्भर था जो ईश्वर पर भरोसे के साथ अपने देश की भूमि को आज़ाद कराने और इस्लामी क्रान्ति की पवित्र आकांक्षाओं को व्यवहारिक बनाने के लिए एक के बाद एक अमर शौर्य का प्रदर्शन कर रहे थे। बैतुल मुक़द्दस अभियान का बड़ा भाग इस्लामी क्रान्ति संरक्षक बल आईआरजीसी के कांधे पर था कि जिसकी सभी इकाइयां जनता के सभी वर्ग के आम लोगों से बनी थी। बैतुल मुक़द्दस अभियान में उसके क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और कारून नदी पर पुल बनने की ज़रूरत के मद्देनज़र, फ़त्हुल मुबीन अभियान की तुलना में बड़े पैमाने पर विशेषज्ञ स्तर की इंजीनियरिंग के काम की ज़रूरत थी।

 

पवित्र प्रतिरक्षा के काल में एक संगठन जिसका अभियान की सफलता में अहम रोल था, जेहादे साज़न्दगी नामक संगठन था। इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद, पिछले हुए गावों और शहरों के लिए ज़रूरी मूल रचनाओं के निर्माण और निर्धन इलाक़ों की जनता की मदद के लिए जेहादे साज़न्दगी संगठन की स्थापना हुयी। जेहादे साज़न्दगी संगठन ने देश पर सद्दाम के अतिक्रमण के आरंभ में ही सड़क, पुल और मोर्चे के निर्माण के लिए ज़रूरी मशीनी उपकरण की ज़रूरत के मद्देनज़र अपनी गतिविधियों का दायरा फैलाया और बिना विलंब के अपने उपकरणों के बड़े भाग को युद्ध के इलाक़ों के लिए रवाना किया। पवित्र रक्षा के साहित्य में जेहादे साज़न्दगी के कर्मचारियों को संगरसाज़ाने बी संगर की उपाधि से याद किया जाता है। जेहाद साज़न्दगी के बहुत से सदस्य पवित्र रक्षा के आठ साल के दौरान शहीद हुए।           

जेहादे साज़न्दगी संगठन ने बड़े पैमाने पर काम किया और बैतुल मुक़द्दस अभियान में भी उसने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया बल्कि इस संगठन ने इंजीनियरिंग क्षेत्र की मुख्य ज़िम्मेदारी ख़ुद संभाली। अलबत्ता आईआरजीसी और सेना की इंजीनियरिंग इकाई भी ख़ास तौर पर पुल निर्माण में सक्रिय रूप से भाग लेती थी। इंजीनियरिंग के काम में जेहादे साज़न्दगी, सेना और आईआरजीसी के संयोग से इंजीनियरिंग की नया ढांचा वजूद में आया। बैतुल मुक़द्दस अभियान में जेहादे साज़न्दगी संगठन ने इंजीनियरिंग के 100 उपकरणों और दूसरे साधनों के साथ सक्रिय रूप से भाग लिया था। इस अभियान में सेना की मिलिट्री इंजीनियरिंग की तीन बटालियन, एक इंजीनियरिंग गुट, एक फ़्लोटिंग ब्रिज अर्थात तैरते हुए पुल का निर्माण करने वाली बटालियन, सेना की जी एस पी पुल का निर्माण करने वाली बटालियन, नदी को पार करने के अभियान में मदद कर रही थी।  कुल मिलाकर इस अभियान में सेना के 63 मशीनी उपकरण और आईआरजीसी के 60 उपकरण शामिल थे। अभियान की पहली रात कारून नदी पर पी एम पी पुला के निर्माण का काम थल सेना की ज़िम्मेदारी थी। बैतुल मुक़द्दस अभियान की अहम बात कारून नदी को पार करना और अहवाज़-ख़ुर्रमशहर मार्ग पर इराक़ी सेना के पीछे पहुंचना था। अभियान की पहली रात पांच में से तीन पुल बन कर तय्यार हुए ताकि उस पर सेना गुज़र सके। अहवाज़-ख़ुर्रमशहर की ओर से अभियान के बजाए कारून नदी को पार करने की योजना, दुश्मन को अपनी योजना की भनक न लगने देने के सिद्धांत के तहत बनायी गयी। साक्ष्य दर्शाते थे दुश्मन अभियान शुरु होने से पहले इस्लामी जियालों के हमले के संबंध में कुछ हद तक सतर्क हो गया था, लेकिन समय और टैक्टिक के बारे में उसे पता नहीं था। बासी दुश्मन अपनी समीक्षा में यह सोचा था कि ईरानी जियाले उत्तरी छोर से कार्यवाही करेंगे। बासी सेना के कमान्डरों ने अपने आंकलन में सिर्फ़ एक पुल के निर्माण और हल्के हमले की कल्पना की थी। अभियान के पहले चरण के बाद, दुश्मन ने इस्लामी जियालों के अभियान के केन्द्रीय बिन्दु और उसके लक्ष्य का अंदाज़ा करने के बाद, बड़े स्तर पर जवाबी हमला किया।       

सद्दाम ने जवाबी हमला करने के लिए तय्यार फ़ौज को यह संदेश दिया थाः "वे टुकड़ियां जिनके मोर्चे हाथ से निकल गए हैं आज के दिन रात में अपने मोर्चों को फिर से वापस लें, वरना उनके ख़िलाफ़ कार्यवाही होगी।" बासी दुश्मन सेना के जवाबी हमले का लक्ष्य ईरानी सेना को अहवाज़-ख़ुर्रमशहर मार्ग के पीछे ढकेलना और फिर सरे पुल इलाक़े का सफ़ाया करना था। अहवाज़-ख़ुर्रमशहर मार्ग एकमात्र पोज़ीशन थी जिसके पीछे ईरानी सेना तैनात होकर दुश्मन के जवाबी हमले का मुक़ाबला करे। ईरानी सेना अगर पीछे हटती तो बासी दुश्मन का मुक़ाबला नहीं कर पाती क्योंकि वहां पर कोई प्राकृतिक रुकावट नहीं थी जो उसकी मदद करती। सद्दाम की बासी सेना मार्ग के हाथ से चले के बाद विघटन का शिकार हुयी और अपने पीछे पांचवीं और छठी डिविजन के ख़तरे के साथ ख़ुर्रमशहर में मौजूद अपनी टुकड़ी को नाकाबंदी में घिरा हुआ पा रही थी। इसलिए दुश्मन से सरे पुल और अहवाज़-ख़ुर्रमशहर मार्ग को फिर से अपने नियंत्रण में लेने के लिए लड़ाई और ईरानी सेना द्वारा उसकी रक्षा दोनों पक्षों की हार या जीत के अर्थ में थी। दुश्मन ने अहवाज़-ख़ुर्रमशहर मार्ग पर फिर से क़ब्ज़े के लिए अपनी दसवीं बक्तरबंद ब्रिगेड के साथ जवाबी हमला शुरु किया। जंग के शोले भड़क उठे। इस्लामी गणतंत्र ईरान के जियालों के पास न तो उपयोगी बक्तर बंद फ़ोर्से थी और न ही प्रभावी शेलिंग इकाई थी, इसलिए उन्होंने टैंक के साथ लड़ना शुरु किया। इस लड़ाई में इराक़ी टैंक मार्ग तक पहुंचने और उसके एक भाग पर क़ब्ज़ा करने में सफल हो गए। अगर टैंक मार्ग पर तैनात हो जाते तो ईरानी सेना की एकमात्र रक्षा पंक्ति छिन्न भिन्न हो जाती जिसके नतीजे में उसे पीछे हटना पड़ता और अगर ऐसा होता तो कारून नदी के आज़ाद हुए सारे पश्चिमी क्षेत्र ख़तरे में पड़ जाते। दुश्मन की सेना मार्ग पर बहुत देर तक नहीं रुक सकी। बलिदान की भावना से ओत प्रोत ईरानी जियालों की वीरता के आगे बासी सेना के टैंक नाकारा हो गए जिससे बासी का जवाबी हमला भी नाकाम हो गया।

 

 

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