Aug १८, २०२० १७:०७ Asia/Kolkata

मानव समाज में जो लोग सबसे अधिक प्रभावित होते हैं वे बच्चे हैं और चूंकि छोटे होते हैं और अपने अधिकारों की पूर्ति में सक्षम नहीं होते हैं इसलिए दूसरे इंसानों को उनकी हाल पर अधिक तरस आ जाता है।

पश्चिम में बच्चों के अधिकारों पर अधिक ध्यान दिये जाने का बहुत दावा किया जाता है किन्तु जो आंकड़े और रिपोर्टें हैं क्या वे इस विषय की पुष्टि करती हैं और जो बच्चे पश्चिम में रहते हैं वे खुशी और आराम से ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं? आज के कार्यक्रम में हम इस बात को बयान करेंगे कि पश्चिम इस संबंध में केवल प्रचार करता है और वह भी बच्चों के लिए स्वर्ग नहीं है।

शायद कहा जा सकता है कि पश्चिम में रहने वाले बच्चों को जिन समस्याओं का सामना है उनमें से एक नैतिक समस्या है। ब्रिटेन में बच्चों के साथ हेने वाले शोषण के बारे में समाचार पत्र गार्डियन अप्रैल 2015 को प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में लिखता हैः यूरोपीय देशों में ब्रिटेन वह देश है जहां के रहने वाले लोग बच्चों के यौन शोषण से अधिक आनंद का आभास करते हैं। साथ ही जो लोग बच्चों का यौन शोषण करते हैं उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही भी नहीं की जाती है जो ब्रिटेन में बच्चों के यौन शोषण में वृद्धि का कारण बनी है। यह समाचार पत्र आगे लिखता हैः ब्रिटेन में हर 6 बच्चे में से एक यौन शोषण का शिकार होता है जबकि यह दर बच्चियों में बच्चों से भी अधिक है इस प्रकार से कि हर चार बच्ची में से एक बच्ची का यौन शोषण होता है। इसी प्रकार समाचार पत्र गार्डियन की रिपोर्ट में आया है कि सामूहिक यौन शोषण, तस्करी और बच्चों के यौन शोषण में सरकारी अधिकारियों का भी हाथ होता है।

 

जर्मनी जैसे देश में भी बच्चों के यौन शोषण की दर बहुत अधिक है। इस देश की पुलिस ने अभूतपूर्व रिपोर्ट में बताया है कि आम तौर पर प्रतिदिन इस देश में 40 बच्चों का यौन शोषण किया जाता है। जर्मन सूत्रों की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में 14 हज़ार से अधिक बच्चों का यौन शोषण किया गया और जिन बच्चों का यौन शोषण किया गया उनमें हर दस में से एक बच्चे की उम्र 6 साल से कम थी। जर्मन पुलिस के अनुसार यौन शोषण का शिकार होने वाले बच्चों की संख्या इससे कहीं अधिक है क्योंकि अधिकांश बच्चों का यौन शोषण उनके परिवार में ही और उनके दोस्तों और निकटवर्ती लोगों द्वारा होता है और परिणाम स्वरूप उनकी शिकायत बच्चों के लिए बहुत कठिन है।

अमेरिका में भी बच्चों के यौन शौषण की स्थिति बहुत भयावह है। इस देश के स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट इस बात की सूचक है कि बच्चों की रक्षा के लिए जो संस्थाएं काम करती हैं उन्हें औसतन हर आठ मिनट पर एसे ठोस प्रमाण मिलते हैं जो इस बात के परिचायक होते हैं कि एक बच्चा यौन शोषण का शिकार हुआ है। अमेरिका में जो लोग अपराधों का निशाना बनते हैं उनमें संबंध में बनाये गये केन्द्र की ओर से प्रकाशित आंकड़े इस बात के सूचक हैं कि हर साल इस देश में 90 हज़ार बच्चे यौन शोषण का शिकार होते हैं जबिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह संख्या इससे भी अधिक है।

खेद के साथ कहना पड़ता है कि आज की दुनिया की एक समस्या बाल शोषण और उनके खिलाफ होने वाले विभिन्न अपराध हैं जिससे हर स्वतंत्र इंसान का दिल दुखी हो जाता है। विभिन्न रूपों में बच्चों के खिलाफ अपराध किये जा रहे हैं। फ्रांस में माता- पिता की ओर से बच्चों के खिलाफ जो हिंसात्मक व्यवहार होते हैं उसकी वजह से प्रतिदिन कम से कम दो बच्चों की मृत्यु हो जाती है। इस प्रकार से कि यह कार्य इस बात का कारण बना है कि फ्रांसीसी संसद ने यह कानून बना दिया है कि बच्चों को मारना- पीटना मना है। बच्चों के खिलाफ होने वाली हिंसा कुछ देशों में जातिवादी हिंसा का रूप धारण कर गयी है। अमेरिका में जिन बच्चों के खिलाफ हिंसा होती है और इस हिंसा में बहुत से बच्चों की मृत्यु हो जाती है उनमें से अधिकांश की उम्र 10 से 19 साल के बीच होती है। रोचक बात यह है कि अमेरिका में बच्चों के खिलाफ जो हिंसा होती है वह अधिकांश श्यामवर्ण के बच्चों के साथ होती है और गोरे बच्चों की तुलना में मरने वाले काले बच्चों की संख्या 19 गुना अधिक है।

सितंबर 2015 में ह्यूमन राइट्स वाच ने एक रिपोर्ट में बताया था कि अमेरिका के फ्लोरीडा राज्य में प्रतिवर्ष सैकड़ों नौजवान बच्चों पर एक बालिग़ व्यक्ति के रूप में अन्यायपूर्ण ढंग से मुकद्मा चलाया जाता है और बालिग़ व्यक्ति के रूप में इन नौजवानों को कड़ी सज़ायें दी जाती हैं। ह्यूमन राइट्स की रिपोर्ट के अनुसार 2014 के आरंभ से अब तक इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक 1500 नौजवानों पर मुक़द्मा चलाया गया जबकि उनके दोषों की अनदेखी की जा सकती थी। रिपोर्ट के अनुसार जिन 1500 नौजवानों पर मुकद्मा चलाया गया उनमें से अधिकांश का संबंध श्यामवर्ण से था। यही नहीं इन नौजवानों पर बच्चों की अदालत में मुकद्मा चलाने के बजाये बड़ों पर मुकद्मा चलाने वाली अदालत में ले जाया गया और उनमें से बहुतों को लंबी अवधि तक जेल की सज़ा भी सुनाई गयी।

पश्चिम में बच्चों और नौजवानों के अधिकारों पर जो अन्याय होता है उसकी एक वजह यह है कि वह सही तरह बालाधिकार से अवगत नहीं है। इस संबंध में यूरोपीय संघ की प्राथमिक अधिकार एजेन्सी लिखती है” हर साल 25 लाख बच्चों को किसी न किसी रूप में अदालत का सामना होता है। हो सकता है माता- पिता के अलग होने के कारण बच्चों को अदालत का सामना करना पड़ता है या यौन शोषण आदि की वजह से बच्चों को अदालत में हाज़िर होना पड़ता है परंतु चूंकि पुलिस कर्मी सही व पूरी जानकारी न होने के कारण बच्चों को उनकी हाल पर छोड़ देते हैं या उनकी अनदेखी कर देते हैं। इस आधार पर भेंट चढ़ने वालों से सही तरह से कानूनी प्रक्रिया को बयान नहीं किया जाता है।

 

लेखक और अध्ययनकर्ता एसट्राइड पोडिस्याड लोफिस्की इस संबंध में यूरो न्यूज़ से कहते हैं" जब बच्चों से पुलिस पुछगछ करती है तो वे हर चीज़ पुलिस से नहीं बताते हैं क्योंकि उन्हें नहीं बताया जाता है कि उनका आरंभिक बयान इस विषय में कितना महत्वपूर्ण है और यौन शोषण के अधिकांश मामलों में बच्चा ही एकमात्र गवाह होता है। यह रिपोर्ट समूचे यूरोप में 400 बच्चों के संबंध में किये गये अध्ययन का नतीजा है और इस रिपोर्ट से यह बात स्पष्ट हो गयी कि बच्चों को न्याय प्रक्रिया पर न तो भरोसा है और न ही उन्हें समर्थन की कोई आशा होती है।

कुछ लोग यह सोचते हैं कि निर्धनता और बच्चों की समस्या का संबंध केवल तीसरी दुनिया और विकासशील देशों से है जबकि संयुक्त राष्ट्रसंघ की बालकोष की रिपोर्ट इस बात की सूचक है कि विकसित देशों में निर्धन बच्चों की संख्या काफी अधिक है। इन देशों में अमेरिका में निर्धन बच्चों की संख्या विश्व की औसत से भी अधिक है। जर्मन सूत्रों ने इस संबंध में चेतावनी दी है और एक रिपोर्ट प्रकाशित करके कहा है कि मात्र वर्ष 2018 में इटली में 12 लाख 60 हज़ार से अधिक बच्चों ने निर्धनता का अनुभव किया। यूरो न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार निर्धनता के कारण इटली में हर सात में से एक बच्चा शिक्षा ग्रहण करने से वंचित हो जाता है। यह एसी स्थिति में है जब कहा यह जाता है कि यूरो मुद्रा प्रचलित क्षेत्रों में इटली, अर्थव्यवस्था की मज़बूती की दृष्टि से तीसरा देश है और उसकी जनसंख्या 6 करोड़ 10 लाख है। बच्चों की मुक्ति के लिए काम करने वाली संस्था की रिपोर्ट के अनुसार यूरोपीय संघ में बच्चों की निर्धनता में इटली का रिकार्ड है।

कहा जाता है कि जो बच्चे यूरोपीय संघ के सदस्य देशों में निर्धनता की ज़िन्दगी बिताते हैं उनकी औसत संख्या 20 प्रतिशत से अधिक है। फ्रांस में हर पांच बच्चे में से एक बच्चा निर्धन है जबकि SMC की रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन में लगभग 45 लाख बच्चे निर्धनता का जीवन बिता रहे हैं। ब्रिटेन के लैंकशर नगर के एक स्कूल के प्रिंसपल शेरवोन कालिंगवुड कहते हैं कि उनके स्कूल में बहुत से बच्चे भूखे हैं। बहुत से बच्चे स्कूल में आने के बाद कूड़ेदान में खाना ढूंढ़ते हैं। उनके अनुसार हमारे स्कूल में 35 एसे छात्र हैं जिनके परिवार की स्थिति बहुत दयनीय है और यह केवल वह आंकड़ा है जिसकी जानकारी स्कूल को है।

जर्मनी में केवल आर्थिक प्रगति नहीं हो रही है बल्कि निर्धन बच्चों की संख्या भी वृद्धि हो रही है। आंकलन इस बात के सूचक हैं कि हालिया वर्षों में जर्मनी में निर्धन बच्चों की संख्या में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। एक जर्मन समाचार पत्र साइटिंग्ज़ इस देश में बढ़ती निर्धनता के बारे में लिखता” जर्मनी में लगभग 20 लाख बच्चे कल्याणकारी संस्था हार्टस की सहायता पर निर्भर हैं और जर्मनी जैसे धनी देश के लिए यह संख्या अपमान की बात है। बर्टेल्ज़मेन संस्था की वर्ष 2016 में रिपोर्ट के अनुसार जर्मनी की आर्थिक स्थिति बेहतर होने के बावजूद इस देश में बहुत से बच्चे निर्धनता की ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं। इस जर्मन संस्था की समीक्षा के अनुसार पिछले वर्ष इस देश में लगभग 20 लाख बच्चे निर्धनता में बड़े हुए। बर्टेल्ज़मेन संस्था के एक विशेषज्ञ एन्टिस्टाइन का कहना है कि बच्चे जितना अधिक दिन निर्धनता में जीवन व्यतीत करते हैं उतना ही उसके परिणाम विनाशकारी होते हैं। हालिया एक दशक के दौरान होने वाली समीक्षाओं के परिणाम इस बात के सूचक हैं कि जिन परिवारों को आर्थिक समस्याओं का सामना नहीं है उनकी अपेक्षा निर्धनता में पल रहे बच्चे अलग- थलग पड़ते जाते हैं और स्वास्थ्य की दृष्टि उन्हें अधिक कठिनाइयों का सामना होता है। दोस्तो आज के कार्यक्रम को रोज़र्स विश्वविद्यालय के समाजशास्त्री प्रोफेसर डेविड पोप्नो की बात से समाप्त कर रहे हैं। आज की पीढ़ी के हमारे बच्चे इस देश के इतिहास की पहली पीढ़ी के बच्चे हैं और इसी उम्र में अपने माता- पिता की तुलना में उनके पास कम सामाजिक एवं मानसिक स्वास्थ्य है और हिंसा, आत्म हत्या, मादक पदार्थों का सेवन, बिना विवाह के बच्चे, मानसिक दबाव और अवसाद जैसी समस्याओं में चेतावनी की सीमा तक वृद्धि हो गयी है। बच्चों के जीवन की स्थिति बेहतर हो गयी है परंतु इस प्रकार की समस्याओं में वृद्धि चिंताजनक है।

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