Sep ०७, २०२० १७:१३ Asia/Kolkata

ईरानी वैज्ञानिकों ने एसा डामर बनाया है जो प्रदूषण करने वाले तत्वों को आक्सीजन में बदल देता है।

हाड्रड्रो कार्बन प्रदूषक तत्वों को आक्सीजन में बदलने वाले डमर के उत्पादन की प्रौद्योगिकी, पहली बार ईरान में अहवाज़ की निजी सेक्टर की यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इस्तेमाल की।

इस प्रोजेक्ट के मैनेजर डाक्टर ड़ाक्टर पनाहपूर कहते हैः इस प्रौद्योगिकी को खोद कर निकाली गयी मिट्टी के भीतर मौजूर प्रदूषक तत्वों पर इस्तेमाल किया गया।

 

पर्यावरण विदों के दृष्टिकोण के आधार पर इस प्रोजेक्ट को लागू किया जा सकता है। अगर इस प्रोजेक्ट को लागू किया जाए तो हर वर्ग मीटर डामर पर अंतिम लागत लगभग २००० तूमान आएगी ।

ईरान की मशहद यूनिवर्सिटी के मेडिकल साइंस के वैस्कुलर सर्जरी अध्ययन केन्द्र के प्रमुख डाक्टर रावरी ने बताया कि स्टेम सेल के ज़रिए लोवर लिंब्स की रगों को बंद होने से रोका जा रहा है।

 

डाक्टर रावरी के अनुसार, यह प्रतजेक्ट दुनिया में बिल्कुल नया है, क्योंकि इस प्रोजेक्टर के ज़रिए हम उन रोगियों के दिल की रगों के दुबारा बंद होने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं जिनकी एंजोप्लास्टी होती है।

ईरानी वैज्ञानिकों ने घर में आक्सीजन बनाने वाली मशीन का निर्माण किया है। यह मशीन चिकित्सा उपकरण बनाने के लिए विशाल राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी योजना के तहत बनायी गयी है।

 

सांस के मरीज़ों को आक्सीजन की ज़रूरत के मद्देनज़र आक्सीजन बनाने वाली मशीन की ज़रूरत होती है। अगर यह सुविधा उनके पास न हो तो उनकी जान ख़तरे में पड़ सकती है।

इस मशीन का निर्माण , इस तरह के विदेशी नमूनों की वैज्ञानिक समीक्षा के बाद, स्वदेशीकरण और प्रौद्योगिकी के निर्माण की प्रक्रिया के तहत शुरु हुआ।

ईरानी वैज्ञानिकों ने एसी मशीन बनायी है जो खिलाड़ियों का फ़िटनेस टेस्ट आनलाइन चेक करके बता सकती है।

 

इस प्रोजेक्ट के मैनेजर मोहम्मद हैदरी कहते हैः इस समय इस तरह की एक विदेशी मशीन है लेकिन वह कई पैरामीटर को एक साथ आनलाइन नहीं चेक कर सकती और चूंकि विदेशी मशीन जीपीएस से चलती है इसलिए वह ढकी हुयी जगह में काम नहीं करती।

वैज्ञानिकों का कहना है कि पहली बार सेल के प्रतिरोपण में सफल हुए जो रौशनी महसेस करता है। ये सेल स्नायुतंत्र से जुड़ कर दिमाग़ को सिगनल भेजते हैं। जापानी वैज्ञानिक मीचिको मन्दाय का जो इस प्रोजेक्ट की टीम के सदस्य हैं, कहना हैः हम बहुत ही ख़ुश हुए कि इस प्रतिरोपण के ज़रिए हमने पाया कि ऊतक रौशनी पर निरंतर प्रतिक्रिया देते हैं।

 

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि अंत में रेटिना के सेल और स्टेम सेल के बीच संपर्क बढ़ेगा जिसके नतीजे में चूहे रौशनी के अलावा भी चीज़ देख सकेंगे।

उम्र के साथ साथ मैक्यूलर डिजनरेशन रेटिना को ख़राब करने वाली सबसे आम बीमारी है। पूरी दुनिया में १७ करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रस्त हैं।

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