Sep १४, २०२० १६:५९ Asia/Kolkata

दोस्तो आज भी हम ईरान के एक महान बुद्धिजीवी नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी से आपको परिचित करायेंगे।

नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी नवीं हिजरी क़मरी अर्थात 15वीं ईसवी शताब्दी के शायर, लेखक, विचारक और अपने समय के विख्यात भाषणकर्ता थे।

दोस्तो जैसाकि हमने पिछले कार्यक्रम में कहा था कि नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी नवीं हिजरी क़मरी अर्थात 15वीं ईसवी शताब्दी के लेखक, शायर और प्रसिद्ध भाषणकर्ता थे। वह 817 हिजरी कमरी बराबर 1414 ईसवी में खुरासान प्रांत के विलायते जामे जम क्षेत्र में पैदा हुए थे। उनके पूर्वज इस्फहान नगर में रहते थे जो इस्फहान से खुरासान चले गये थे और खुरासान प्रांत के ख़रजेर्द जाम क्षेत्र में रहने लगे। नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी के पैदा होने से कुछ साल पहले उनके पिता अपने परिवार के साथ हेरात चले गये थे और वहीं बस गये। जामी ने आरंभिक शिक्षा ख़रजेर्द जाम में हासिल की। ख़रजेर्द जाम हेरात प्रांत का एक क्षेत्र था। नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी ने फारसी साहित्य और अरबी साहित्य के सर्फ व नह्वो जैसे विषयों का ज्ञान अपने पिता से हासिल किया। इसी प्रकार नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी ने हेरात और समरक़न्द के मदरसों में शिक्षा ग्रहण की। हेरात और समरक़न्द अपने समय में शैक्षिक व साहित्यिक केन्द्र समझे जाते थे। नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी ने अरबी, फारसी, तर्कशास्त्र, गणित और धार्मिक शिक्षा प्राप्त करके अपने समय के प्रसिद्ध व्यक्ति बन गये। उसके बाद उन्हें परिज्ञान व रहस्यवाद से रुचि हो गयी जिसके बाद वह तरीक़त नक्शबंदियां मत के अनुयाइ बन गये। नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी चूंकि अपने समय के महान विद्वान हो गये थे और उनका जो रहस्यवादी व्यवहार था उसके कारण समय के शासकों के निकट भी उनका विशेष स्थान था और अपने शैक्षिक एवं साहित्यिक ज्ञान और आध्यात्म के कारण बुढ़ापा आने से पहले ही उस समय उसमानी साम्राज्य से लेकर भारतीय उपमहाद्वीप के जिन जिन क्षेत्रों में फारसी भाषा बोली जाती थी वहां वह बहुत मशहूर हो गये थे और लोगों में उन्हें विशेष सम्मान प्राप्त था।

नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी का 18 मोहर्रम 898 हिजरी क़मरी अर्थात 1492 ईसवी शताब्दी में 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया और उस समय के खुरासान प्रांत के हेरात शहर में उन्हें उनके उस्ताद सादुद्दीन काशग़री की कब्र के बगल में दफ्न कर दिया गया। इस समय हेरात में नुरूद्दीन अब्दुर्रहमान जामी की कब्र तख्त मज़ार के नाम से प्रसिद्ध है।   

 

दोस्तो आपको अवश्य याद होगा कि पिछले कार्यक्रम में हमने यह भी कहा था कि जामी की एक किताब का नाम “नफ़हातुल उन्स” है जिसे तबक़ातुस्सूफीया किताब की एक दूसरी कापी कहा जा सकता है। इस किताब में अब्दुर्रहमान जामी ने हुजवेरी की “कश्फुल महजूब”, अबू सईद अबूल ख़ैर की “असरारुत्तौहीद” और इज़्ज़ुद्दीन काशानी की “मनाक़िबे अफ़लाकी और मिसबाहुल हिदाया जैसी किताबों से लाभ उठाया है। अब्दुर्रहमान जामी ने अपनी किताब “नफ़हातुल उन्स” की प्रस्तावना में ही लिख दिया है कि उन्होंने तबक़ातुस्सूफ़िया से लाभ उठाया है और यह भी लिखा है कि वह तबक़ातुस्सूफ़िया की विषयवस्तु को समय की प्रचलित भाषा में लिखना चाहते थे। जामी को आशा थी कि वह महत्वपूर्ण रहस्यवादियों की जीवनी लिखकर पढ़ने वालों से उनका अच्छा परिचय करा सकेंगे। जामी ने अपनी किताब में अधिकतर इन महान हस्तियों व रहस्यवादियों के विदित आचरण पर ध्यान दिया है और उनकी अध्यात्मिक विशेषताओं का बहुत कम उल्लेख किया है। “नफ़हातुल उन्स” में अब्दुर्रहमान जामी की शैली इन्साइक्लोपीडिया जैसी है। तबक़ातुस्सुफ़िया में जिन 120 लोगों की जीवनी बयान की गयी है उसका भी वर्णन जामी ने अपनी किताब में किया है और इसके अलावा भी उन 484 दूसरी हस्तियों की जीवनी बयान की है जिनका उल्लेख तबक़ातुस्सुफ़िया में नहीं था। कुल मिलाकर अब्दुर्रहमान जामी ने अपनी किताब “नफ़हातुल उन्स” में अपने समय तक की 614 हस्तियों की जीवनी बयान की है। जामी ने जीवनी को श्रेणीबद्ध रूप से बयान किया है। महिलाओं और पुरूषों की जीवनी अलग- अलग बयान की है। इसी प्रकार जामी ने जिन लोगों की जीवनी बयान की है उसे समय के लेहाज़ से लिखा और वर्गीकृत किया है।

इसी प्रकार जीमी ने तीन दीवान और "हफ्त औरंग" नामक एक मसनवी भी लिखी है। तीनों दीवानों में क़सीदे, ग़ज़लें और चौपाइ आदि हैं जबकि "हफ़्त औरंग" मसनवी से विशेष है। "हफ्त औरंग" में सात मसनवियां हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं सिलसिलतुज़्हब, सलामान व अबसाल, सब्हतुल अबरार, तोहफतुल अबरार, यूसुफ़ व ज़ुलैखा, लैला व मजनून, ख़ेरदनामये इस्कन्दरी।

उस्ताद ज़बीहुल्लाह सफ़ा का मानना है कि जामी ने अपने शेरों में अपने से पहले के उस्तादों की जानकारियों से लाभ उठाया है और इसी कारण उनके शेरों में परिज्ञान व रहस्यवाद की झलक दिखाई देती है। वास्तव में यह मसनवी अपनी जानकारी का कौशल दिखाने के लिए जामी के रणक्षेत्र में बदल गयी है। पवित्र कुरआन की आयतें, हदीसें, कहावतें और विभिन्न प्रकार की जानकारियां दक्ष शायर जामी के हाथ में मोम की भांति हैं और वह बड़ी आसानी से उन्हें शेर का रूप दे देते हैं और यह चीज़ उनकी दक्षता व क्षमता को बयान करती है। जामी ने इन मसनवियों को कहने में अपने से पहली की रचनाओं को ध्यान में रखा है और उनसे बहुत लाभ उठाया है। बहुत से साहित्यिक आलोचकों का मानना है कि जामी की “लैला व मजनू” नाम की जो मसनवी है उसे उन्होंने प्रसिद्ध शायर नेज़ामी और अमीर ख़ुसरू देहलवी का अनुसरण करके कहा है। जामी की “सिलसिलतुज़्हब” नाम की जो मसनवी है उसे उन्होंने प्रसिद्ध शायर सनाई की मसनवी हदीक़ा और औहदी की जामे जम मसनवी का अनुसरण करके कहा है। जामी की सिलसिलतुज़्हब नाम की जो मसनवी है उसमें तीन भाग हैं और तीनों के नाम जामी के समय के तीन बादशाहों के नाम पर हैं और तीनों में अलग- अलग विषयों के बारे में मसनवियां हैं। संगीत

महान व प्रसिद्ध ईरानी दार्शनिक इब्ने सीना की एक किताब का नाम इशारात है और ख़ाजा नसीरुद्दीन तूसी ने इस किताब की दो व्याख्याएं लिखी हैं। जामी की सलामान और अबसाल नामकी जो मसनवियां हैं उसे कहने में उन्होंने शैख़ नसीरूद्दीन तूसी की व्याख्याओं से लाभ उठाया है और वास्तव में सलामान और अबसाल की जो कहानी है जामी ने उसे थोड़ा परिवर्तित कर दिया है।

जामी की एक मसनवी सबहतुल अबरार है। यह ताज़ा और नई मसनवी है। जामी से पहले किसी भी शायर ने इस तरह की मसनवी नहीं कही है और इसी दृष्टि से यह ताज़ा और नई मसनवी है। जामी की एक मसनवी तोहफुल अहरार है और इसे उन्होंने प्रसिद्ध शायर नेज़ामी की “मख़ज़नुल असरार” की शैली में कहा है। जामी की यूसुफ व ज़ुलैख़ा नाम की जो मसनवी है उसमें उन्होंने पवित्र कुरआन की आयतों को आधार बनाया है। अलबत्ता अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि जामी ने इस मसनवी में कुछ गैर इस्लामी स्रोतों से भी लाभ उठाया है। जामी की एक मसनवी का नाम “ख़ेरदनामये इस्कन्दरी” है। इसे उन्होंने प्रसिद्ध शायर नेज़ामी गंजवी की इस्कन्दर नामे मसनवी की शैली में कही है। 

नैतिक व प्रशिक्षण के विषय जामी के पसंदीदा विषय हैं। वह अपनी हर मसनवी के आरंभ में या उसके किसी भाग में अपने बेटे को संबोधित करते और प्रशिक्षा के बिन्दुओं को बयान करते हैं।

जामी को पवित्र कुरआन का अच्छा ज्ञान था। वह पवित्र कुरआन की बहुत सी आयतों की व्याख्या शेर के माध्यम से करते हैं। उनका यह कार्य इस बात का सूचक है कि पवित्र कुरआन पर उनकी अच्छी पकड़ और गहरी नज़र है और वह ईश्वरीय ग्रंथ से लगाव रखते हैं। पवित्र कुरआन की आयतों और उसके विषयों ने चमकते तारों की भांति जामी की शायराना प्रवृत्ति के आसमान को चमका दिया है। जामी ने अपनी दो मसनवी सिलसिलतुज़्ज़ह और यूसुफ़ व ज़ुलैखा में इतना अधिक पवित्र कुरआन की आयतों से लाभ उठाया है कि वह अपने शिखर पर पहुंच गयी है। अब्दुर्रहमान जामी ने यूसुफ़ व ज़ुलैख़ा मसनवी में पवित्र कुरआन की लगभग 50 आयतों का अनुवाद शेर में किया है। जामी का मानना है कि पवित्र कुरआन की आयतों और उसके आसमानी अर्थों ने उनकी प्रवृत्ति एवं योग्यता को निखार दिया है।

जामी की मसनवी की एक विशेषता यह है कि उन्होंने अपने विचारों को बयान करने के लिए कहानियों और कहावतों आदि का बहुत प्रयोग किया है। जामी की सातों मसनवी को देखकर यह कहा जा सकता है कि जामी कहानियों को बयान किये बिना अपनी बातों को अधूरा समझते हैं। इसी प्रकार जामी उन स्रोतों की ओर इशारा नहीं करते हैं जिनसे उन्होंने लाभ उठाया है परंतु उन्होंने अरुज़ी शायर के चार लेखों और सनाई की "हदीक़ा" सहित विभिन्न स्रोतों से लाभ उठाया है।

जामी की "हफ्त औरंग" किताब की एक विशेषता यह है कि इसमें जामी ने परिज्ञान, रहस्यवाद और सूफियाना परिभाषाओं की व्याख्या की है। इसका कारण यह है कि जामी जिस समय थे उस समय शायरों की शैली रहस्यवादी बिन्दुओं को बयान करना थी और जामी ने भी इस संबंध में किताब लिखने के अलावा अपनी मसनवी में भी परिज्ञान और रहस्यवाद की परिभाषाओं की व्याख्या की है।  

जामी के काल में ईरानी परिज्ञान व रहस्यवाद पतन की ओर बढ़ रहा था परंतु जामी ने उसे उसके आधार व मापदंड पर बाकी रखा और इस तरह से वह फारसी भाषा के बड़े लेखकों, शायरों, रहस्यवादियों और सूफियों की पंक्ति में शामिल हो सके।

साथ ही जामी परिज्ञान व रहस्यवाद में अकेले रहने को प्राथमिकता देते थे। साथ ही उनका मानना था कि लोगों से भी संबंध रखना और उनसे मिलना- जुलना चाहिये। शायद लोगों और महान हस्तियों के मध्य उनकी प्रसिद्धि व लोकप्रियता का कारण वही उनकी जीवन शैली थी जिसने आध्यात्मिक और भौतिक जीवन को एक साथ मिश्रित कर रखा था।

जामी के लिए एकेश्वरवाद और महान ईश्वर की उपासना हर चीज़ थी और वह महान ईश्वर के अलावा किसी को दृष्टि में नहीं रखते थे और वह केवल महान ईश्वर को ही नज़र में रखते थे। एकेश्रवाद पर आस्था, जामी की आइडियालोजी और उनके विचारों का आधार थी और इस चीज़ ने उनके शेरों को अर्थ प्रदान कर रखा था।

 

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