Oct ०६, २०२० १९:२४ Asia/Kolkata

पिछली चर्चा में हम बस्ताम के बारे  में और वहां के मज़ार के बारे में आप को विस्तार से बता चुके हैं।

बस्ताम से बस २३ किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है जिसका नाम है “ किले नो ख़रकान “ है। इस गांव में एक टीले है और उस टीले पर एक मज़ार है जहां एक बोर्ड नज़र आता है जिस पर अबुल हसन ख़रकानी का एक कथन दर्ज है। उस पर लिखा है।

पवित्र विचारों वाले  आध्यात्मिक गुरु शेख़ अबुल हसन ख़रकानी , बायज़ीद बस्तामी को अपना गुरु मानते थे। अबू सईद अबुलख़ैर, अबू अली सीना और नासिर ख़ुसरो जैसी बड़ी हस्तियां, उनसे मिलने गयी थी और ख्वाजा अब्दुल्लाह अंसारी उनके अनुयाइयों और शिष्यों में शामिल हैं।

इसी इलाक़े से निकट गर्मसार नाम का भी एक क्षेत्र है जो रेगिस्तानी होने के साथ ही साथ बहुत से आकर्षनों का भी केन्द्र है। दर अस्ल गर्मसार शहर ही देखने लायक है। यह नगर अश्कानी काल से संबंध रखता है। इस ख़ूबसूरत नगर के पड़ोस में ही एक विशाल रेगिस्तान, दमावंद पहाड़ और कई ऊंची ऊंची चोटियां हैं जो सब मिल कर इस शहर को एक अनोखा रूप दे देती हैं।

गर्मसार जाकर इस इलाके के निवासियों की संस्कृति से रीति रिवाजों से भी जानकारी हासिल की जा सकती है।

इसके साथ ही रेगिस्तान के नेशनल पार्क में सियाहकूह काम्पलेक्स है जिसे गर्मसार का एक मूल्यवान रत्न कहा जा सकता है। यह काम्पलेक्स , एनुर्रशीद और शाह अब्बास महलों तथा हरम सरा से मिल कर बना है जिसे स्थनीय लोग महल के नाम से जानते हैं। इस काम्पलेक्स का सब से अहम भाग शाह अब्बास का महल है। जो वास्तव में ईरानी शिल्पकला का एक उत्कृष्ट नमूना है।

सिपाह कूह नामक पहाड़ के उत्तरी आंचल में एक सराय के खेडहर हैं।  यह सराय वास्तव में सियाहकूह की महत्वपूर्ण इमारतों में से एक है। इसे लंबाई में बनाया गया है। सराय के निर्माण में पत्थर का बहुत अधिक इस्तेमाल किया गया है हालांकि कुछ भागों में ईंट का भी प्रयोग किया गया है।

इमारत के अंदर एक बड़ा सा आंगन है जिसके चारों ओर छोटे छोटे कमरे बने हैं जिनकी संख्या बीस है। एक कमरा प्लास्टर और खिड़की के बिना है।

इस इमारत की सब से ख़ास बात उसका पानी सप्लाई का सिस्टम है। इमारत की जल आपूर्ति व्यवस्था देख कर हर कोई आश्चर्य चकित हो जाता है।

सियाह कूह नामी पहाड़ से यह पानी इसी व्यवस्था की मदद से इमारत के सामने बनाये गये बड़े बड़े हौज़ों में लाया जाता और फिर वहां से इमारत में जाता । यह पूरी व्यवस्था देखने योग्य है। वैसे यह इमारत भी अपने ज़माने की असाधारण रचना है।

गर्मसार में बहराम महल काम्पलेक्स में स्थित एक सराय

इस इमारत के आस पास मिलने वाले मिट्टी के बर्तनों से पता चलता है कि तैमूरी और सफ़वी काल में यह इमारत आबाद थी।

शाहअब्बासी सराय से दो किलोमीटर की दूरी पर और नमक की झील और विशाल रेगिस्तान के बीच में “ एनुर्रशीद “ नाम की एक सराय है वहीं पर शिकार गाह के लिए एक चौकी भी बनी है, वहीं मीठे पानी का एक तालाब भी है जिससे पानी की सप्लाई के अवशेष आज भी मौजूद हैं। यह पानी महल के भीतर मौजूद बाग तक जाता  और वहां उससे सिंचाई की जाती थी। आज महल खंडहर में जंगली पेड़ पौधे उगे हैं जिन्होंने यहां मौजूद ख़ूबसूरत बाग की जगह ले ली है।

एनुर्रशीद सराय का खंडहर 

 

एनुर्रशीद सराय की इमारत बाहर से ८६ मीटर लंबी है और उसकी चौड़ाई अधिक से अधिक ४७ मीटर है। इमारत में दो बड़े बड़े बंगन हैं। मुख्य आंगन ५१ मीटर लंबा और ४७ मीटर चौड़ा है। इमारत के दोनों तरफ़ प्रवेश द्वार और दो हाल हैं और हर हल  में पांच पांच दरवाज़े आंगने में खुलते हैं। दोनों हालों की ऊंचाई पांच दशमलव २० मीटर है। पतली सी जो दालान है उस में भी दो लंबे लंबे कमरे हैं जिनसे हाल में जाने का रास्ता नहीं है इसी लिए कहा जाता  कि यह कमरे नौकरों के लिए बनाये गये थे। इसी प्रकार के कमरे आंगन के दक्षिणी भांग में भी हैं मगर उनमें से हाल में जाने का दरवाज़ा भी बना हुआ है।

 

शाह अब्बासी सराय से एक ही किलोमीटर की दूरी पर सफ़वी काल की एक और इमारत है जिसे “ हरमसरा “ महल कहा जाता है। यह वास्तव में शाहीद परिवार की यात्रा के दौरान उनकी महिलाओं के लिए विशेष रूप से यह इमारत बनायी गयी थी।

हरम सरा नाम की इस इमारत के दक्षिण पश्चिमी भाग में एक विशाल हाल है और उस हाल के उत्तर में दो बड़े दालान हैं। दालानों के उत्तर में दो कमरे बने हैं जो पहले नहीं थे मगर इमारत बनने के बाद उन्हें बनाया गया था। इस वक्त तो उत्तरी भाग के हाल पूरी तरह से तबाह हो चुके हैं और विशेषज्ञों का मानना है कि यह तबाही किसी भारी भूकंप की वजह से हुई है।  

 

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