Apr २६, २०१६ १६:०७ Asia/Kolkata
  • बेहबहान

बेहबहान ज़िला ख़ूज़िस्तान प्रांत के केन्द्र अहवाज़ से 225 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और बेहबहान शहर की समुद्र तल से ऊंचाई 320 मीटर है।

बहबहान गर्म क्षेत्र है और इसकी जलवायु अर्ध मरुस्थलीय है। यही कारण है गर्मी बहुत पड़ती है। बेहबहान ज़िला चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। बेहबहान के उत्तरी मैदानी इलाक़े में ख़ाईज़ पहाड़ श्रंख्ला के पहाड़ और हातिम पहाड़ है। हातिम पहाड़ 2100 मीटर से ज़्यादा ऊंचा है जबकि ख़ाईज़ पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी 1885 मीटर की है। बेहबहान के मैदानी इलाक़े के दक्षिण में पाज़नान और दरीज़े पहाड़ स्थित हैं। पश्चिम में आले कूह ज़र्द पहाड़ जबकि पूरब में रमेचर पहाड़ स्थित है। मारून और ख़ैराबाद, बेहबहान ज़िले की दो अहम नदियां हैं। दोनों नदियां बेहबहान के कुछ भाग को सीचने के साथ ही फ़ार्स की खाड़ी में गिरती हैं।

 

 

बेहबहान में हस्तकला और मशीन पर आधारित उद्योग प्रचलित हैं। खाद्य पदार्थ, लकड़ी और परिवहन हल्के मशीनी उद्योग हैं जबकि तेल, खान और इमारत में प्रयोग होने वाले पत्थर से जुड़े उद्योग भारी मशीनी उद्योग हैं। सिमेंट, ईंट, मेलामाइन, अलम्यूनियम, कैबिनेट और शकर की मिल, इस इलाक़े के अहम कारख़ाने हैं। तेल, चूना, खड़िया, चिकनी मिट्टी, रेत और सिमेंट के उत्पादन के लिए कच्चे माल, ये सब भूमिगत स्रोत हैं जो इस इलाक़े में पाए जाते हैं। खेती के लिए उपजाऊ ज़मीन, पशुपालन के लिए पर्याप्त संभावनाएं, भूमिगत स्रोत, हलकी और भारी मशीनी तथा हस्तकला उद्योग वे तत्व हैं जिनका बेहबहान की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका है। इस इलाक़े में कुछ बड़े उद्योगपति भी हैं। बेहबहान ज़िला खेति के विस्तार के लिए बराबर संभावनाओं से सपन्न है। जैसे गर्म इलाक़े की जलवायु, नदियों का वजूद और उपजाऊ ज़मीन इत्यादि। बेहबहान में औद्योगिक कृषि उत्पाद और खाद्य कृषि उत्पाद की पैदावार होती है। गेहूं, जौ, चावल, रूई, चुक़न्दर, तिल, तरकारियां, संतरा, ख़ूबानी, अंगूर, सेब, शहतूत, ज़ैतून इत्यादि इस ज़िले के अहम उत्पाद हैं।

 

 

बेहबहान में पशुपालन का भी रवाज है जो पारंपरिक ढंग से काया जाता है। आम तौर पर कोहकीलूए इलाक़े में बंजारा और तुर्क क़शक़ाई क़बीले पशुपालन करते हैं। ये क़बीले ठंडी के मौसम में बेहबहान में रहते हैं और प्राचीन समय से बेहबहान, बंजारा क़बीलों के बीच लेन-देन का केन्द्र रहा है। बेहबहान ख़ूज़िस्तान, कोहकीलूए व बुऐर अहमद तथा फ़ार्स प्रांतों के बीच में स्थित होने के मद्देनज़र रणनैतिक दृष्टि से भी बहुत अहम है। खेती की नज़र से भी इस प्रांत की स्थिति बहुत अहम है इसलिए यह हमेशा लोगों के ध्यान का केन्द्र रहा है। इस प्रांत में अनेक ऐतिहासिक इमारतें और अवशेष भी हैं।

 

 

बेहबहान के इतिहास के बारे में इस बिन्दु का उल्लेख ज़रूरी लगता है कि यह शहर विगत में एक छोटा गांव था जो सासानी काल में फ़ार्स प्रांत के एक बड़े शहर अरजान से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित था। अरजान के बर्बाद होने के बाद, बेहबहान आबाद हुआ है। अस्तख़री, इब्ने हौक़ल, मुक़द्देसी और नासिर ख़ुसरों क़ुबादयानी ने अपनी किताबों में अरजान और इसकी स्ट्रेटिजिक स्थिति का उल्लेख किया है। मुक़द्देसी ने अरजान को फ़ार्स और इराक़ का ख़ज़ाना और ख़ूज़िस्तान तथा इस्फ़हान की गोदी कहा है।

 

 

बेहबहान के इतिहास के मद्देनज़र इसकी शहरी संरचना और वास्तुकला आज की शैलियों से बहुत अलग है। बेहबहान की ज़्यादातर पुरानी इमारतें पारंपरिक व इस्लामी शहर निर्माण एवं वास्तुकला शैली से प्रेरणा लेकर बनायी गयी हैं। बेहबहान के पुराने मुहल्लों की गलियां भी गर्म जलवायु वाले शहरों की तरह पतली व घुमावदार हैं। बेहबहान के मैदानों में मस्जिद, इमामबाड़े, दुकानें और हम्माम जैसे सार्वजनिक इस्तेमाल व उपयोगिता वाली चीज़ें प्राचीन शैली में बनी हुयी हैं जिनसे शहर के मुहल्ले सुंदर व आकर्षक लगते हैं।

 

 

बेहबहान में घर पारंपरिक वास्तुकला के अनुसार बने हुए हैं। घर के बीच आंगन होता है जिसके चारों ओर कमरे बने होते हैं। घरों में विशाल बरामदे होते हैं और उनके दोनों ओर प्लास्टर आफ़ पेरिस के काम से सजे बड़े खंबे होते हैं। ज़्यादातर घरों के बीच में पानी का बड़ा हौज़ होता है। इसी प्रकार ज़्यादातर घरों में भूमिगत कमरे बने होते हैं जिन्हें गर्मी में रहने के लिए इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि यह गर्मी के मौसम में ठंडे होते हैं।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि वास्तुकला में उपयोग सभी शैलियां धार्मिक, सामाजिक, भौगोलिक एवं सैन्य दृष्टि से ज़रूरतों के मद्देनज़र अपनायी गयी हैं इनमें से हर एक का उल्लेख आज के कार्यक्रम में मुमकिन नहीं है। आज बेहबहान के कुछ भाग में आधुनिक डिज़ाइनों के अनुसार घर बन रहे हैं।

 

 

आपके लिए यह जानना भी लाभदायक होगा कि अरजान शहर के पुरातात्विक अवशेष बेहबहान के 5 किलोमीटर पश्चिमोत्तर में स्थित हैं जो इस इलाक़े के ऐतिहासिक आकर्षण समझे जाते हैं। 1982 में अरजान के एक भाग से ईलामी जाति के एक व्यक्ति के मक़बरे का पता चला जो सातवीं शताब्दी ईसापूर्व का है। यह सांस्कृतिक और कलात्मक दृष्टि से बहुत अहमियत रखता है। बहबहान में सासानी शासन काल की ऐतिहासिक इमारतें बाक़ी हैं जिनमें चार ताक़ वाला अग्निकुंड, अरजान पुल और बांध और बुकान हम्माम इत्यादि। अश्कानी काल का तंगे सरूक अर्थात पत्थर पर बनी तस्वीरें, सफ़वी काल का ख़ैराबाद मदरसा, अरगान क़िला और नजफ़ ख़ान का घर, बेहबहान के अन्य ऐतिहासिक अवशेष हैं।

तंगे सरूक नामक पत्थर पर बनी तस्वीरें बेहबहान से 50 किलोमीटर पश्चिमोत्तर में स्थित हैं। पत्थर की चट्टान पर राजा, शिकरा, अग्निकुन्ड सहित और बहुत से चित्र बने हैं। बेहबहान का रास्ते बाज़ार इस शहर का सबसे पुराना बज़ार है और यह बाज़ार राष्ट्रीय धरोहरों की सूचि में शामिल है। रास्ते बाज़ार ऐसे बाज़ार को कहते हैं जो छतदार तथा मेहराबी आकार में होता है। विगत में यह बाज़ार इस शहर और इसके आस-पास के इलाक़े का मुख्य व्यापारिक केन्द्र था। यह क़ाजारी दौर का बाज़ार है जिसमें कई रास्ते थे। हर रास्ते किसी विशेष व्यवसाय के लिए था। इस वक़्त सिर्फ़ एक रास्ता बचा है जिसकी दीवार पर दो शिलालेख मौजूद हैं। इस बाज़ार की विशेषता इसकी गुंबद रूपी छत है।

 

 

 

आपको यह भी बताते चलें कि बेहबहान प्राचीन धार्मिक शहरों में से एक है। इस शहर के लोग भले कर्म के लिए मशहूर हैं। बेहबहान में 80 मस्जिदें और इमामबाड़े, सैकड़ों गुंबद, पारंपरिक इस्लामी वास्तुकला का सुंदर नमूना हैं। बेहबहान के गांवों में सत्तर से ज़्यादा मस्जिदें हैं जो इस इलाक़े के लोगों में धर्मपरायणता का पता देती हैं।

बेहबहान की सबसे पुरानी मस्जिद इस शहर की जामा मस्जिद है। यह मस्जिद इस शहर की सबसे पुरानी जामा मस्जिद है। यह मस्जिद ७८२ हिजरी क़मरी में बनी है। यह मस्जिद लगभग २ हज़ार वर्गमीटर के क्षेत्रफल पर बनी है। इस मस्जिद में एक पत्थर लगा हुआ है जिस पर टैक्स से संबंधित उद्घोषणा लिखी हुयी है। इस पत्थर से पता चलता है कि मस्जिद में राजनैतिक मामलों के निपटारे किए जाते थे।

 

     

कार्यक्रम के इस भाग में आपको बेहबहान की बहुत सुंदर प्रकृति के बारे में भी बताते चलें। नर्गिस, सूरजमुखी, गुलाब और बबूने वे फूल हैं जो ख़ूज़िस्तान के इस हरे भरे इलाक़े में उगते हैं।

 

बेहबहान से तीन किलोमीटर की दूरी पर दिसंबर से फ़रवरी के बीच कई हेक्टर के क्षेत्रफल पर हज़ारों की तादाद में नर्गिस का फूल उगता है। उन दिनों बेहबहान का पूरा उत्तरी मैदानी इलाक़ा नर्गिस की विभिन्न प्रजातियों के फूलों से भरा हुआ होता है। ऐसा लगता है मानो इस पूरे इलाक़े ने सफ़ेद चादर ओढ़ ली है। दूर से ही नर्गिस के फूलों की ख़ुशबू आने लगती है। हर साल बड़ी संख्या में नर्गिस के फूलों की ईरान के अन्य शहरों में आपूर्ति की जाती है। यह प्राकृतिक इलाक़ा विगत में ७०० हेक्टर के क्षेत्रफल पर फैला हुआ था। ब्रितानी इतिहासकार व पर्यटक हेनरी लियार्ड ने क़ाजारी शासक मोहम्मद शाह के दौर में अपने यात्रावृत्तांत में नर्गिस के फूलों के सम्मोहित करने वाले चमन से सजे बेहबहान की बहुत प्रशंसा की है।

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