Nov ३०, २०२० १९:०८ Asia/Kolkata
  • ईरान भ्रमण- 60(एस्फरायेन)

आज के कार्यक्रम में हम उत्तरी ख़ुरासान प्रांत के एस्फरायेन उपनगर और उसके आप- पास के क्षेत्रों की चर्चा करेंगे।

आशा है कि सदा की भांति हमारा यह प्रयास भी आपको पसंद आयेगा।

एस्फ़रायेन एक प्राचीन उपनगर है और वहां की प्रसिद्ध स्थानीय “कुश्ती बाचूखे” है जो इसके नाम से जुड़ी है। यानी जब भी इंसान एस्फ़रायेन का नाम लेता है उसके दिमाग़ में बाचूख़ा कुश्ती का नाम आ जाता है। अंगूर, रुई, ज़ीरा, कैंडी, आखरोट और पिस्ता वहां के प्रसिद्ध उपहार हैं। एस्फ़रायेन उपनगर में 230 एतिहासिक धरोहरे हैं और वहां पर बम नगर के बाद कच्ची ईंटों की दूसरी सबसे बड़ी इमारत है। इसी प्रकार इस उपनगर में सारगील और सालूक नाम के दो नेशनल पार्क हैं। इसी प्रकार इस उपनगर के पास में जो पहाड़ और हरे- भरे क्षेत्र हैं उनमें विभिन्न प्रकार के जानवर रहते हैं जिससे इस नगर की सुन्दरता में चार- चांद लग गया है और वह प्राकृतिक और चकित करने वाले दृश्यों के लिए मशहूर है।

 

एस्फ़रायेन उपनगर का इतिहास बहुत पुराना है और इस उपनगर में जो एतिहासिक अवशेष हैं वे इसकी प्राचीनता की गाथा सुनाते हैं। इसी प्रकार यह अवशेष यह बताते हैं कि उनमें से बहुतों का संबंध इतिहास के पूर्व से लेकर इस्लामी काल से है। दूसरे शब्दों में इतिहास के पहले से यह क्षेत्र सांस्कृतिक दृष्टि से एक समृद्ध इलाक़ा है। इस उपनगर के विभिन्न क्षेत्रों में इतिहास से पहले के जो अवशेष हैं जैसे अंजीरली, कई टीले और चेहलदुख्तरान, इस बात के सूचक हैं कि इतिहास से पहले भी ईरान का यह क्षेत्र समृद्ध व सक्रिय था। एस्फ़रायेन उपनगर इतिहास के विभिन्न कालों विशेषकर अश्कानी और सासानी काल में भी प्रांत का महत्वपूर्ण क्षेत्र समझा जाता था और इतिहास में बारमबार इसके नाम का उल्लेख किया गया है। अश्कानी और सासानी काल के विभिन्न अवशेषों का मौजूद होना इस बात का सूचक है कि उस काल में भी यह क्षेत्र विकसित व समृद्ध था।

पर्यटन की दृष्टि से एस्फ़रायेन, उत्तरी ख़ुरासान प्रांत का एक महत्वपूर्ण और आकर्षक उपनगर है। यह प्राचीन उपनगर पर्यटन आकर्षणों से भरा पड़ा है। इस उपनगर में बाचूख़े नाम की जो कुश्ती होती है वह इतनी मशहूर है कि उसे इस उपगर की पहचान समझा जाता है। इस प्रकार से कि इस उपनगर के प्रवेशद्वार पर ही इस कुश्ती की प्रतीमा लगी हुई है। एस्फ़रायेन उपनगर के आस- पास के टीलों की जो खुदाई की गयी है उससे जो चीज़ें बरामद हुई हैं वे इस बात की सूचक हैं कि इन चीज़ों का संबंध पांचवीं और छठी सहस्त्राब्दी ईसापूर्व से है। यहां की जलवायु में विविधता, विभिन्न कालों में लोगों के रहने का उचित स्थान रही है। इसी प्रकार यहां कई भाषायें बोली जाती हैं यहां के लोग फार्सी भाषा में दक्ष होने के अलावा कुर्दी और तुर्की में भी बात करते हैं। चूंकि बाचूखे कुश्ती को यहां के लोग बहुत पसंद करते हैं और यह यहां की यह स्थानीय कुश्ती है इस बात के दृष्टिगत हमने उचित व बेहतर समझा कि आपको भी इस कुश्ती से अवगत कराते चलें।

“बाचूख़े कुश्ती” का अतीत प्रांत में 2500 साल पुराना है। सदियों से यह कुश्ती वहां के लोगों में प्रचलित रही है और वहां के लोग इसे बहुत पसंद करते हैं इस प्रकार से कि पिछली शताब्दियों में भी लोगों के जीवन में इस कुश्ती की समीक्षा की जा सकती है। यहां की जो स्थानीय सरकारें रही हैं उनका आधार वहां के बंजारे थे और समस्त बंजारों और कब़ीलों के बाकी रहने का आधार उनके जवानों और पहलवानों की ताक़त थी। धार्मिक और राष्ट्रीय त्योहारों के अवसर पर बाचूख़े कुश्ती का आयोजन होता है। जैसे ईद और नौरोज़ के अवसर पर इस कुश्ती का आयोजन होता है। बाचूख़े कुश्ती लड़ने वाले पहलवान जो विशेष कपड़ा पहनते हैं उसे चूख़े कहते हैं। चूखे एक विशेष प्रकार का छोटा कोट होता है और चूखे कुर्दी भाषा का शब्द है। पहलवान चूखे को पहनने के बाद सफेद रंग की शाल से उसे मज़बूती से बांध लेते हैं। जब बाचूख़े कुश्ती का आयोजन होता है तो स्टेडियम का एक भाग महिलाओं से विशेष होता है और जो पहलवान कुश्ती में विजयी होते है उसे मेंढ़ा, नक़दी पैसे और दूसरी वस्तुएं उपहार स्वरूप दी जाती हैं।  

       

                                  

एस्फ़रायेन उपनगर का एक प्रसिद्ध इतिहासिक अवशेष बिलक़ीस शहर है। यहां इस बात का उल्लेख ज़रूरी है कि बिलक़ीस शहर का पंजीकरण राष्ट्रीय धरोहर के रूप में किया जा चुका है। बिलक़ीस शहर की प्राचीनता का इतिहास लगभग 4 हज़ार साल है और यह उत्तरी ख़ुरासान प्रांत के इतिहास का आइना है और यह नगर एस्फ़रायेन उपनगर के तीन किलोमीटर दक्षिण में स्थित है और प्राचीन समय से यह नगर सभ्य व विकसित नगर की संभावना से संपन्न रहा है और इसे आवासीय क्षेत्र समझा जाता है और बारमबार के युद्धों से इसे काफी क्षति पहुंची है।

 

बिलक़ीस शहर में वर्ष 1386 हिजरी शमसी से पुरातन विदों ने खुदाई का काम आरंभ किया है और अब तक खुदाई का काम जारी है। इस खुदाई का एक उद्देश्य यह पता लगाना है कि इस शहर की सीमा कहां तक थी। अब तक कि खुदाई में महत्वपूर्ण वस्तुएं प्राप्त हुई हैं जैसे मिट्टी के बर्तन, सिक्के, भट्ठी, मस्जिद के अवशेष और जलकुंड आदि। इन सब चीज़ों को मिलाकर देखें तो बिलक़ीस नगर की प्राचीनता और उसके इतिहास का एक दृश्य नज़रों में घुमने लगता है। बिलक़ीस शहर की खुदाई में जो चीज़ें प्राप्त हुई हैं उन सबको इकट्ठा करके बुजनोर्द नगर के एक बड़े संग्रहालय में लोगों को देखने के लिए रखा गया है।

इस गांव के 200 से अधिक परिवार बुनाई के काम में व्यस्त हैं और इस गांव में विशेष प्रकार की दरी भी बुनी जाती है इस प्रकार से कि यूनिस्को ने भी वहां बुनी जाने वाली चीज़ों की प्रशंसा की है। रूईन गांव में जो विशेष प्रकार की दरी बुनी जाती है वर्ष 1396 हिजरी शमसी में उसका पंजीकरण राष्ट्रीय धरोहर के रूप में कर दिया गया। इसी संबंध में रूईन गांव का जो स्नानगृह है उसे इस गांव में बुनी जाने वाली चीज़ों का संग्रहालय बना दिया गया है।

रूईन गांव की जलवायु संतुलित व पर्वतीय है और जाड़ों में ठंड और बर्फीली होती है जबकि गर्मियों में संतुलित रहती है। चूंकि गर्मी के दिनों में रूईन गांव ठंडा रहता है और आस- पास के नगरों के लोगों और यात्रियों के लिए घुमने- फिरने और विश्राम करने की अच्छी जगह है इसलिए बहुत से लोग इस गांव की सुन्दर व ठंडी जलवायु, बहते सोतों और गांव में मौजूद बागों के फलों से लाभ उठाने के लिए वहां जाते हैं। सेब, नाशपाती, अंगूर, आखरोट, आड़ू, शहद और विशेष प्रकार की दरी जैसी चीज़ें इस गांव के महत्वपूर्ण उपहार हैं।

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