मरयम कहती हैं कि इस्लाम, हमारे भीतर की अच्छाइयों की पुष्टि करता है और इसी प्रकार वह मनुष्य के भीतर सुधार और बुराइयों को दूर करने में सहायता करता है।
हम ऐसी घटना का ज़िक्र करने जा रहे हैं जो इस्लामी कैलेण्डर का आरंभिक बिंदु भी है और एक एतिहासिक बलिदान की महान गाथा भी। बलिदान एक भावना है। यह ऐसी सकारात्मक भावना है जो हर स्थिति में प्रशंसनीय है।
सूरए बक़रा एसा सूरा है जिसमें विभिन्न विषयों पर चर्चा की गई है। बक़रा की जिस आयत की हम चर्चा करने जा रहे हैं उसमें ईश्वरीय रंग के बारे में चर्चा की गई है।
इस लेख में हम मुसलमान होने वाले तीन आस्ट्रेलियन नागरिकों के बारे में बताएंगे। आस्ट्रेलिया के रहने वाले David Stanley डेविड स्टेंली कहते हैं कि मुसलमान होने से पहले और मुसलमान होने के बाद मैं दो अलग प्रकार का व्यक्ति बन गया।
फ़ातेमा ग्रैहम का जन्म ब्रिटेन में हुआ। उनके पति भी अब मुसलमान हो चुके हैं और दोनो स्काटलैण्ड में जीवन गुज़ार रहे हैं। यह दोनो वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। फ़ातेमा ग्रैहम का जन्म कैथोलिक इसाई परिवार में हुआ था।
इससे पहले की पोस्ट में हमने बताया था कि जब पैग़म्बरे इस्लाम को यह सूचना मिली कि एक बड़ी सेना ने मदीने की ओर कूच किया है तो उन्होंने अंसार के सभी गुटों को एकत्रित करके उनसे युद्ध में भाग लेने के बारे में पूछा।
एक ताज़ा अमरीकी मुसलमान महिला Emily Creek एमिली क्रीक का कहना है कि निश्चित रूप से परिपूर्ण होने के लिए लंबा रास्ता तै करना पड़ता है।
सूरे बक़रा पवित्र क़ुरआन का दूसरा सूरा है। यह क़ुरआन का सबसे बड़ा सूरा है। सूरे बक़रा में कई विषयों के बारे में चर्चा की गई है। इसकी आयत संख्या 89 व 90 का अनुवाद इस प्रकार हैः
इससे पहले हमने बताया कि सूरे बक़रा की आयत संख्या 62 पैग़म्बरे इस्लाम के सहाबी हज़रत सलमान फ़ारसी के बारे में है जिनका पुराना रूज़बे थे।
नई नई मुसलमान होने वाली नार्वे की "मोनिका हैंग्सलेम" इस्लाम के बारे में कहती हैं कि इस्लाम को समझने के बाद मुझे यह पता चला कि दुनिया का कोई भी धर्म औरतों को इतना सम्मान नहीं देता जितना इस्लाम देता है।