सख़ावत का सागर इमाम हसन अलैहिस्सलाम
इस्लाम जगत के महान विद्वान शैख़ सदूक़ ने इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के हवाले से यह रवायत बयान की है कि इमाम हसन अलैहिस्सलाम अपने ज़माने के लोगों में सबसे बड़े इबादत गुज़ार, सबसे बड़े परहेज़गार और सबसे प्रतिष्ठित इंसान थे।
सन तीन हजरी के रमज़ान महीने की पंद्रह तारीख़ थी। हज़रत अली और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के विवाह को एक साल का समय पूरा हुआ था कि उनके यहां पहले बच्चे की पैदाइश का समय क़रीब आ गया। इस सादे लेकिन नूर से जगमगाते परिवार में विशेष उत्साह पैदा हो गया। जन्म का समय क़रीब आता जा रहा था और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा को अपनी मां हज़रत ख़दीजा की बहुत याद आ रही थी। आख़िरकार इंतेज़ार की घड़ियां बीतीं और पैग़म्बरे इस्लाम के पहले नवासे ने इस दुनिया में आंखें खोलीं। हज़रत अली और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने अल्लाह का शुक्र अदा किया और रसूले ख़ुदा का इंतेज़ार करने लगे कि वे आकर बच्चे का नाम चुनें। रसूले ख़ुदा ने इस प्यारे बच्चे को अपनी गोद में लिया और उसका नाम जिबरईल से पूछा। रसूले ख़ुदा ने बताया कि अल्लाह ने इस बच्चे का नाम हसन रखा है और बच्चे की कान में अज़ान दी। पैग़म्बर के ख़ानदान के महान दानी हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म दिन सारे श्रद्धालुओं को मुबारक हो।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने जीवन के शुरुआती साल साल रसूले ख़ुदा की छत्रछाया में गुज़ारे। इसके बाद तीस साल तक अपने पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम के महान मिशन में मददगार बने। इमाम हसन और इमाम हुसैन अलैहिमुस्सलाम से पैग़म्बर के ख़ास लगाव के बारे में अनेक रवायतें नक्ल हुई हैं और इन रवायतों को शीया व सुन्नी दोनों समुदायों के धर्मगुरुओं ने बयान किया है।
रसूले ख़ुदा जब भी हज़रत फ़ातेमा के इन दोनों फूल से बच्चों को देखते उन्हें गोद में ले लेते थे, उन्हें सीने से लगाते, उन्हें प्यार करते थे और कहते थे कि तुम जन्नत में जाने वालों के सरदार हो।
रवायतों में आया है कि हज़रत मुहम्मद (स.अ.) अपने सहाबियों से हमेशा कहते थे कि वे हसन व हुसैन का बहुत ख़याल रखें यह दोनों बहुत महान हैं।
अबू हुरैरा जो मुआविया के साथियों में और पैग़म्बरे इस्लाम के ख़ानदान के दुश्मनों में हैं एक जगह कहते हैं कि मैंने देखा कि रसूले ख़ुदा ने हसन व हुसैन को अपने कंधों पर सवार किया था और हमारी तरफ़ आ रहे थे। जब हमारे पास पहुंचे तो फ़रमाया कि जो भी मेरे इन दो बच्चों से मुहब्बत करे वह दर हक़ीक़त मुझसे मुहब्बत करने वाला है। जो इनसे दुश्मनी रखे वह मेरा दुश्मन है।

सुन्नी धर्मगुरु ग़ज़ाली भी इमाम हसन अलैहिस्सलाम के बारे में रसूले ख़ुदा का यह कथन नक़्ल करते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम ने इमाम की सुंदरता को देखते हुए कहा कि तुम शक्ल और अख़लाक़ में मेरे समान हो।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम शीया मत के अनुसार दूसरे इमाम हैं जिन्होंने इस्लाम धर्म और इस्लाम के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण रोल निभाया और अल्लाह के नज़दीक उनका बहुत विशेष स्थान है। क़ुरआत की ततहीर नाम की मशहूर आयत जिन लोगों के बारे में नाज़िल हुई उनमें इमाम हसन अलैहिस्सलाम भी हैं। सूरए अहज़ाब की आयत संख्या 33 में अल्लाह ने कहा है कि बेशक अल्लाह चाहता है कि आप पैग़म्बर के घर के लोगों को पाकीज़ा रखे।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम मुबाहिला की घटना में भी मौजूद रहे और मुबाहिला से संबंधित आयत उनके बारे में भी नाज़िल हुई। इस आयत में इमाम हसन और इमाम हुसैन को रसूले ख़ुदा के बेटे कहा गया है और इन दोनों इमामों के महान स्थान को चिन्हित किया गया है।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम की परवरिश उस घर में हुई जहां क़ुरआन की आयतों की छाया में संवाद होता था। इस घर के पिता हज़रत अली हैं जो पहले इंसान है जिन्होंने क़ुरआन की आयतों को एकत्रित करके किताब का रूप दिया। घर की माता हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा हैं जो सारी सृष्टि में सबसे महान महिला और क़ुरआन की आयतों पर सबसे बेहतर अंदाज़ में अमल करने वाली हस्ती हैं। इमाम हसन अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के प्रवचनों को पाबंदी से सुनने वालों में हैं। उन्होंने क़ुरआन की आयतों को ख़ुद पैग़म्बर की ज़बानी सुना और सीखा है। वे बचपन से क़ुरआनी ज्ञान से अवगत हुए और बड़ी सुंदर तिलावत करते थे।

बड़े इतिहासकार ने उनकी महत्वपूर्ण ख़ूबियों और विशेषताओं उदारता, बड़प्पन, संयमशीलता, परहेज़गारी, सत्यता, पारसाई, इबादत, क्षमाशीलता और सहृदयता का ज़िक्र विशेष रूप से किया है। सुयूती ने लिखा है कि इमाम हसन अलैहिस्सलाम के अंदर शिष्टाचारिक गुण और मानवीय विशेषताएं बहुत ज़्यादा थीं। वह महान, संयमी, प्रतिष्ठित, संजीदा, दानी और बड़े लोकप्रिय इंसान थे। इमाम हसन अलैहिस्सलाम की इतनी आकर्षक और वैभवशाली शख़्सियत थी लेकिन वे अपने अधीनस्थ लोगों, कनीज़ों और ग़ुलामों से या समाज के कमज़ोर वर्ग के लोगों से बड़ी मेहरबानी से पेश आते। दीन दुखियों के साथ उनका बर्ताव बहुत सुंदर और अनुकरणीय था।
जिस ज़माने में ग़ुलामों और कनीज़ों के साथ बड़ा सख़्त बर्ताव किया जाता था रसूले ख़ुदा का परिवार उनके साथ बहुत अच्छा सुलूक करता था जो सारे मुसलमानों और श्रद्धालुओं के लिए आदर्श था। कहते हैं कि एक दासी ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम को फूल पेश किया तो इमाम ने इसके जवाब में उससे कहा कि तुमको राहे ख़ुदा में आज़ाद करता हूं। जब एक फूल देने पर इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कनीज़ को आज़ाद कर दिया तो लोगों ने एतेराज़ किया और कहा कि आपने एक फूल के बदले कनीज़ को क्यों आज़ाद कर दिया? इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने जवाब दिया कि अल्लाह ने हमें यही सिखाया है। क़ुरआन के सूरए निसा की आयत संख्या 86 में अल्लाह ने कहा है कि जब भी तुम्हारे से कोई नेकी की जाए तो जवाब में तुम उससे बढ़कर नेकी करो। कनीज़ के तोहफ़े से बड़ी नेकी यही हो सकती थी कि उसे आज़ाद कर दिया जाए।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम समाज के केवल कमज़ोर वर्ग के साथ ही मेहरबान नहीं थे बल्कि उनके संबंध में भी बहुत संयमशील, मेहरबान और उदार रहते थे जो इमाम के साथ दुश्मनी और अपमानजनक बर्ताव करते थे। कुछ लोग थे जो मुआविया की हुकूमत के प्रभाव में आकर और धोखा खाकर इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शान में गुस्ताख़ी करते थे। इमाम ने कभी भी उनके जवाब में कठोर स्वर में बात नहीं की बल्कि उनके साथ भी बड़ी मेहरबानी से पेश आए, उन्हें भी उदारता और क्षमाशीलता दिखाई। इमाम के इस विन्रम बर्ताव को देखकर वे लोग हैरत में पड़ जाते थे और बहुत जल्द अपने किए पर शर्मिंदा नज़र आते थे। शाम के रहने वाले व्यक्ति की कहानी बहुत मशहूर है जिसने इमाम की शान में गुस्ताख़ी की तो इमाम ने बड़े संयम से उसका सामना किया और उससे बड़ी मुहब्बत से पेश आए। यह देखकर उसे अपनी बातों पर बड़ी शर्मिंदगी हुई। उसने तौबा किया और ख़ानदाने पैग़म्बर के श्रद्धालुओं में शामिल हो गया।

इमाम हसन अलैहिस्सलाम से पूछा गया कि सहनशीलता क्या है तो आपने जवाब दिया कि इसका मतलब है ग़ुस्से को पी जाना और अपने ऊपर क़ाबू रखना। यह सवाल किया गया कि बड़प्पन क्या है? तो उन्होंने जवाब दिया कि क़बीले, रिश्तेदारों और परिवार के साथ नेकी करना और उनके नुक़सान और ग़लतियों के हर्जाने में शामिल हो जाना। सवाल किया गया कि महानता क्या है? इमाम हसैन ने जवाब दिया कि धर्म की हिफ़ाज़त, स्वाभिमान की हिफ़ाज़त, नर्मी से पेश आना, अपनी कर्मों की समीक्षा करते रहना, दूसरों का हक़ा अदा करना और आम लोगों से दोस्ती का बर्ताव करना। यह सवाल भी किया गया कि उदारता और दानशीलता क्या है तो इमाम ने जवाब दिया कि मांगने से पहले प्रदान कर देना और सूखे के समय खाना खिलाना।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम अल्लाह के परहेज़गार बंदे थे। इबादत के समय उनकी वह हालत होती थी कि लगता था कि अभी उनकी रूह जिस्म से निकल जाएगी और परालौकिक ऊंचाइयों की ओर उड़ जाएगी। उनकी इबादत के बारे में बताया गया है कि जब नमाज़ का वक़्त आता था और इमाम हसन अलैहिस्सलाम वज़ू करके नमाज़ के लिए तैयार होते थे तो उनके चेहरे का रंग बदल जाता था, उनका पूरा शरीर कांपने लगता था। इमाम से पूछा गया कि उनकी यह हालत क्यों हो जाती है तो इमाम ने जवाब दिया कि यह तो स्वाभाविक है कि जब कोई अल्लाह के सामने जा रहा है तो उसके चेहरे का रंग उड़ जाए और उसका अंग अंग कांपने लगे।
इबादत के मेहराब में बैठना इमाम हसन अलैहिस्सलाम के जीवन के सबसे सुंदर लम्हे होते थे। इसीलिए वे इबादत के समय अपना सबसे अच्छा लिबास पहनते थे। किसी ने इमाम से कहा कि हे रसूल के नवासे आप नमाज़ के समय क्यों अपना सबसे अच्छा लिबास पहनते हैं? इमाम ने जवाब दिया कि अल्लाह आकर्षक है और सुंदरता को पसंद करता है। मैं भी जब अल्लाह की बारगाह में जाता हूं तो तैयार होकर जाता हूं। अल्लाह ने ख़ुद कहा है कि हर नमाज़ में अपना श्रंगार अपने साथ रखो। इसलिए मुझे यह बात पसंद है कि जब इबादत के लिए जाऊं तो मेरा सबसे अच्छा लिबास मेरे शरीर पर हो।
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