विश्व कुद्स दिवस के अवसर पर विशेष कार्यक्रम
इस वर्ष विश्व कुद्स दिवस के अवसर पर जायोनियों के अपराधों में क्यों गति आ गयी है?
जायोनी मस्जिदुल अक्सा में नमाज़ियों को मारपीट रहे हैं और मस्जिदुल अक्सा का अनादर कर रहे हैं। यही नहीं इस्राईल ने इस बहाने से दक्षिणी लेबनान और गज्ज़ा पट्टी पर हमला किया कि वहां से राकेट दागे गये हैं। जायोनी शासन के अपराधों के जवाब में फिलिस्तीनी जियालों ने भी जायोनी क्षेत्रों की ओर कई राकेट फायर किये।
सवाल यह पैदा होता है कि इस वर्ष विश्व कुद्स दिवस के अवसर पर जायोनी शासन ने फिलिस्तीनियों के विरुद्ध अपने अपराधों में क्यों वृद्धि कर दी है? इसके जवाब में बहुत से जानकार हल्कों का मानना है कि कई हफ्तों से जायोनी शासन के भीतर राजनीतिक संकट जारी हैं और नेतनयाहू की सरकार और उनके अतिवादी मंत्रिमंडल के खिलाफ जो प्रदर्शन हुए हैं उससे बहुत से जायोनियों के उल्टे पलायन में तेज़ी आ गयी है और इन संकटों से आम जनमत का ध्यान हटाने के लिए जायोनी शासन ने फिलिस्तीनियों के खिलाफ अपने अपराधों में गति प्रदान कर दी है।
मस्जिदुल अक्सा के अनादर पर फिलिस्तीन के अंदर जो प्रतिक्रिया दिखाई जा रही है वह इस बात की सूचक है कि कुद्स की आज़ादी की आकांक्षा यथावत न केवल फिलिस्तीनियों बल्कि दुनिया के स्वतंत्रता व न्यायप्रेमी इंसानों के दिल में ज़िन्दा है और वह दिन अधिक दूर नहीं है जब मुसलमानों का पहला किब्ला जायोनियों के अतिग्रहण के चंगुल से स्वतंत्र हो जायेगा। फिलिस्तीनियों और जायोनी शासन के सैनिकों के बीच लड़ाई सुरक्षा परिषद की बैठक का कारण बनी और हमेशा की भांति इस बार भी अमेरिका ने इस बात का प्रयास किया कि अतिग्रहणकारी जायोनी शासन के खिलाफ कोई प्रस्ताव पारित न होने पाये।
हांलाकि राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद के जो भी प्रस्ताव अब तक जायोनी शासन के खिलाफ पारित हुए हैं उनमें से किसी एक पर भी इस्राईल ने अमल नहीं किया है और जब तक उसे बड़ी शक्तियों विशेषकर अमेरिका का व्यापक समर्थन प्राप्त रहेगा तब तक इस बात की अपेक्षा नहीं की जा सकती कि इस्राईल राष्ट्रसंघ के प्रस्तावों पर अमल करेगा। यही नहीं मानवाधिकारों की रक्षा का राग अलापने वाले दूसरे पश्चिमी व यूरोपीय देशों ने भी इस्राईल के समर्थन के संबंध में दोहरा मापदंड अपना रखा है। जायोनी शासन के अपराधों की भर्त्सना करने के बजाये यूरोपीय देशों ने फिलिस्तीनियों की प्रतिक्रिया की निंदा की और कहा कि जायोनियों को आत्म रक्षा का अधिकार है।
जो लोग और जो देश यह कहते हैं कि इस्राईल को आत्म रक्षा का अधिकार है तो उनसे पूछा जाना चाहिये कि यह अधिकार केवल अतिक्रमणकारी जायोनियों को है या हर मज़लूम इंसान को आत्म रक्षा का अधिकार है? इस्राईल का समर्थन करने वाले देशों व लोगों से पूछा जाना चाहिये कि जायोनियों ने फिलिस्तीनियों की ज़मीन पर कब्ज़ा कर रखा है या फिलिस्तीनियों ने जायोनियों की ज़मीन पर कब्ज़ा कर रखा है? कितनी विचित्र बात है कि फिलिस्तीनियों की मातृभूमि पर अवैध ढंग से कब्ज़ा करने वालों को आत्म रक्षा का अधिकार प्राप्त है मगर मज़लूम फिलिस्तीनियों को अतिक्रमणकारियों के मुकाबले में अपनी और अपनी मातृभूमि की रक्षा का अधिकार नहीं है। यह मानवाधिकार की रक्षा का दम भरने वालों का तर्क है! यही नहीं जो फिलिस्तीनी अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं उन्हें इस्राईल और उसके समर्थक आतंकवादी कहते हैं जबकि उन्हें बहुत अच्छी तरह पता है कि अस्ल आतंकवादी कौन है?
दोस्तो यहां हम यह बताना चाहते हैं कि जायोनियों ने अपने अत्याचारों का औचित्य दर्शाने के लिए एक बहुत बड़े झूठ को आधार बना रखा है और आज तक उसी झूठ को भुना रहे हैं। इस झूठ या मनगठंत कहानी का नाम होकोकास्ट है। हम यहां पर बहुत संक्षेप में होलोकास्ट की घटना का उल्लेख कर रहे हैं। आप जानते हैं कि जायोनियों ने यह मशहूर कर रखा है कि हिटलर ने 60 लाख यहूदियों को गैस की भट्टियों में ज़िन्दा जला दिया और वे बहुत मज़लूम हैं। बहुत से जानकार हल्के जायोनियों के इस दुष्प्रचार पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि उस समय पूरी दुनिया में यहूदियों की जनसंख्या ही 60 लाख नहीं थी जो हिटलर जलाता? अगर हिटलर ने यहूदियों को इतनी बड़ी संख्या में जलाकर मारा है तो इसमें फिलिस्तीनियों का क्या दोष है? अगर हिटलर ने यहूदियों व जायोनियों को मारा है तो यूरोप और जर्मनी में मारा है न कि फिलिस्तीन में। इसलिए यहूदियों को जर्मनी या यूरोप में बसाया जाना चाहिये था न कि फिलिस्तीन में। यह कौन सा न्याय है कि यहूदियों को हिटलर ने जर्मनी में मारा और उसके अपराधों की सज़ा निर्दोष फिलिस्तीनी भुगतें। अगर पश्चिमी व यूरोपीय देश मानवाधिकार की रक्षा के दावे में सच्चे हैं तो उनके अनुसार पीड़ित यहूदियों व जायोनियों को जर्मनी में बसाया जाना चाहिये। क्योंकि उनके दावे के अनुसार हिटलर ने गैस की भट्ठियों में उन्हें जर्मनी में मारा है न कि फिलिस्तीन में।
यहां एक अन्य बिन्दु का उल्लेख ज़रूरी है और वह यह है कि अगर वास्तव में हिटलर ने 60 लाख यहूदियों को गैस भी भट्टियों में ज़िन्दा जलाकर मारा है तो उसे महाआतंकवादी कहना चाहिये मगर आज तक कोई भी देश या खुद जायोनी हिटलर को आतंकवादी नहीं कहते? इसकी वजह क्या है? यह एक शोचनीय बिन्दु है जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिये और जायोनियों से यह पूछा जाना चाहिये कि अगर हिटलर ने 60 लाख यहूदियों को ज़िन्दा मारा है तो उसने यहूदियों के किस दोष में एसा किया?
अवैध अधिकृत फिलिस्तीन में जायोनी शासन के अवैध अस्तित्व की घोषणा से पहले यह क्षेत्र ब्रिटेन के अतिग्रहण में था और जायोनियों ने ब्रिटेन के समर्थन से लाखों फिलिस्तीनियों की हत्या की और उन्हें बेघर कर दिया। वास्तव में अवैध अधिकृत फिलिस्तीन में तथाकथित यहूदी देश के गठन में ब्रिटेन की महत्वपूर्ण भूमिका है और उसके कृत्यों का ही परिणाम है जो आजतक फिलिस्तीनियों पर अत्याचार हो रहा है। ब्रिटेन की ओर से प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद वर्ष 1917 में बालफोर घोषणा पत्र के जारी किये जाने को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।
दुनिया भर के यहूदियों व जायोनियों को लाकर जो अवैध अधिकृत फिलिस्तीन में बसाया गया उसका मूल लक्ष्य ब्रिटेन और कुल मिलाकर पश्चिमी व यूरोपीय देशों के हितों की रक्षा था और यही वजह से अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय व पश्चिमी देश जायोनी शासन का समर्थन करते हैं और आम तौर पर वे कभी भी फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ इस्राईल के पाश्विक हमलों की भर्त्सना तक नहीं करते।
यूरोपीय देश उनमें सर्वोपरि ब्रिटेन और बाद में अमेरिका जायोनी शासन के समस्त अपराधों में शामिल व बराबर के भागीदार हैं। यह समर्थन पश्चिमी व यूरोपीय सरकारों के लिए इतना स्ट्रैटेजिक है कि उन्होंने जायोनी शासन के समस्त अपराधों से आंखें मूद रखी हैं और इन देशों का मौन व अर्थपूर्ण समर्थन जायोनी शासन के दुस्साहस का कारण बना है और इसी वजह से वह किसी प्रकार के भय व संकोच के बिना फिलिस्तीनियों पर 73 से अधिक वर्षों से अत्याचार कर रहा है और मानवाधिकार की रक्षा का दम भरने वाले मूकदर्शक बने हुए हैं।
यही नहीं इस वर्ष भी जर्मनी की सरकार ने विश्व कुद्स दिवस की रैलियों व मार्चों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इससे पहले भी वह एसा कर चुकी है। रोचक बात यह है कि जो देश मानवाधिकार की रक्षा का दम भरते हैं उनमें जर्मनी भी है और वह इस बात को पसंद नहीं करता कि कोई भी मज़लूम फिलिस्तीनियों के समर्थन में आवाज़ बुलंद करे।
दोस्तो जैसाकि आप जानते हैं कि ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. ने क़ुद्स की आज़ादी और फिलिस्तीन के मज़लूम लोगों के समर्थन के लिए रमज़ान महीने के अंतिम शुक्रवार को विश्व कुद्स दिवस के रूप में मनाये जाने की घोषणा है और उनके इस एलान के बाद से प्रतिवर्ष दुनिया के लाखों इंसान विश्व कुद्स दिवसर पर रैलियां निकालते हैं। इस अवसर पर दुनिया के स्वतंत्रता व न्यायप्रेमी लोग जहां फिलिस्तीनियों और कुद्स के समर्थन में नारे लगाते हैं वहीं इस्राईल से बेज़ारी भी प्रकट करते हैं।
रोचक बात यह है कि आज निकाली जाने वाली रैलियों में केवल मुसलमान ही भाग नहीं ले रहे हैं बल्कि बहुत से ग़ैर मुसलमान भी शामिल हैं। आज के दिन दुनिया के विभिन्न देशों में लोगों का विश्व कुद्स दिवस की रैलियों का निकाला जाना इस बात का सूचक है कि फिलिस्तीन और कुद्स के विषय को भुलाया नहीं गया है और कोई भी यह न सोचे कि इस विषय को भुला दिया जायेगा बल्कि आज भी वह स्वतंत्र व न्यायप्रेमी लोगों के दिलों की आवाज़ है और मुसलमानों का पहला किब्ला मस्जिदुल अक्सा की आज़ादी और फिलिस्तीनियों को उनका अधिकार मिलने तक यह आंदोलन जारी रहेगा और क्षेत्रीय स्तर पर जो परिवर्तन हो रहे हैं वे इस बात के सूचक हैं कि इस्राईल दिन- प्रतिदिन अपने अंत से निकट होता जा रहा है और खुद इस्राईल के बहुत से हल्के कह रहे हैं कि इस्राईल के अंत के लिए किसी विदेशी शक्ति की ज़रूरत नहीं है बल्कि इस्राईल के अंदर ही हालात इस प्रकार के हो जायेंगे जिससे उसका अंत हो जायेगा।
एक समय वह था जब जायोनी नील से फुरात तक का सपना देखते थे और अब इस्राईल का अंत उनके लिए डरावने सपने में बदल गया है। जायोनी कब तक झूठ, अत्याचार, हिंसा और अन्याय के आधार पर फिलिस्तीनियों की मातृभूमि पर शासन करेंगे। कभी तो अत्याचार का घड़ा भरेगा और लग यह रहा है कि यह घड़ा अब भर चुका है बस छलकने की देर है और बहुत से यहूदियों और जायोनियों के उल्टे पलायन को जायोनी शासन के अंत के परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है।
दो दशक पहले इस्राईल को मध्यपूर्व में अजेय शक्ति के रूप में देखा जाता था परंतु लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह और फिलिस्तीन के संघर्षकर्ताओं ने इस्राईल को पराजय का जो कटु स्वाद चखाया है और चखाते रहते हैं वह किसी से ढका छिपा नहीं है। यही फिलिस्तीनी थे जो कभी पत्थरों से आधुनिकतम हथियारों से लैस जायोनी सैनिकों का मुकाबला करते थे और आज वही फिलिस्तीनी राकेटों और मिसाइलों से इस्राईल के अपराधों का जवाब देते हैं। इस समय अवैध अधिकृत फिलिस्तीन में कोई एसा क्षेत्र नहीं है जो प्रतिरोध के मिसाइलों व राकेटों की पहुंच से बाहर हो और यह इस बात का सूचक है कि फिलिस्तीनी दिन- प्रतिदिन मज़बूत हो रहे हैं। दूसरे शब्दों में जहां इस्राईल अपने अंत से निकट हो रहा है वहीं फिलिस्तीनी और मस्जिदुल अक्सा अपनी आज़ादी के निकट पहुंच रहे हैं और वह दिन अधिक दूर नहीं है जब दुनिया के मुसलमान अपने पहले क़िब्ले मस्जिदुल अक्सा में नमाज़ अदा करेंगे। mm
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