Jun २०, २०२३ १८:२१ Asia/Kolkata
  • हज़रत अली और हज़रत फ़ातेमा की शादी की सालगिरह पर विशेष कार्यक्रम

दो लोग, एक दूसरे के लिए अपने अपने अनूठे स्वभाव और विशेषताओं के साथ जीवन में एक नई योजना बनाने और जीवन के उतार-चढ़ाव को एक साथ बिताने पर सहमत होते हैं जो कुंआरेपन के माहौल से पूरी तरह से अलग होता है।

मनोवैज्ञानिकों का मानना ​​है कि विवाह, जवानों को परेशानी और बेचैन आत्मा से मुक्ति दिलाता है और उन्हें शांत करता है। यह मामला, एक पृष्ठभूमि बन जाता है ताकि इसकी छाया में युवा शांति के साथ उच्च और अधिक महत्वपूर्ण लक्ष्यों की ओर बढ़ सकें क्योंकि विवाह से हासिल होने वाली सुरक्षा व्यक्ति में आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक संतुलन प्राप्त करने का मार्ग प्रदान करती है और यह संतुलन व्यक्ति को अधिक रचनात्मक प्रयासों और गतिविधियों की ओर ले जाता है।

बेशक अगर एक सफल शादी और एक सही विकल्प मिल जाए तो क्या कहने! ज़िल हिज्जा महीने की पहली तारीख़, दो दिव्य हस्तियों के पवित्र मिलन की याद दिलाती है, एक बंधन जो एक अनोखे परिवार की आधारशिला बन गया, जिससे लोग हमेशा के लिए अपने जीवन और चरित्र को एक मॉडल के रूप में इस्तेमाल करेंगे।

जी हां दोस्तो आज हज़रत फ़ातेमा ज़हरा और हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शादी की तारीख़ है। यह एक आसमानी मिलन, आत्मा की गहराईयों का एक रिश्ता और ज़िंदगी का एक ऐसा बंधन था जिसकी ख़ुशी ज़मीन पर भी मनाई गई और आसमान पर भी, एक ऐसा निकाह जो जन्नत में फ़रिश्तों के सरदार ने फ़रिश्तों के बीच पढ़ा और ज़मीन पर नबियों के सरदार ने इंसानों के बीच।

एक स्थिर और मज़बूत संबंध और शांतिपूर्ण जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज़, विचारों और विश्वासों में समानता और दंपति का नैतिक मूल्यों पर व्यावहारिक रूप से पालन करना है। इसके आधार पर ईश्वर पर विश्वास करने वाले, उस पर आस्था रखने वाले और शुद्ध मन वाले पुरुष और महिलाएं, एक वफ़ादार और अच्छे स्वभाव वाले जीवन साथी की कामना करते हैं। इसीलिए पवित्र क़ुरआन में ईश्वर फ़रमाता है कि बेहतरीन विवाह को पवित्र लोगों को एक दूसरे से जोड़ना है। सूरए नूर की आयत संख्या 26 में ईश्वर फ़रमाता है कि ख़बीस चीज़ें ख़बीस लोगों के लिए हैं और ख़बीस लोग ख़बीस बातों के लिए हैं और पवित्र बातें, पवित्र लोगों के लिए हैं और पाकीज़ा लोग पाकीज़ा बातों के लिए हैं, यह पाकीज़ा लोग ख़बीस लोगों के आरोपों से पाको पाकीज़ा हैं और उनके लिए यह क्षमा और इज़्ज़तदार आजीविका है।

दुनिया की दो पवित्र हस्तियों हज़रत अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के बीच विवाह और पवित्र बंधन, पवित्र क़ुरआन की एक अन्य आयत का सफल उदाहरण और बेहतरीन नमूना है जिसमें शादी के बंधन को महिला और पुरुष के बीच शांति और सुकून का आधार क़रार दिया गया है।  सूरए रोम की आयत संख्या 21 में ईश्वर फ़रमाता है कि और उसकी निशानियों में से यह भी है कि उसने तुम्हारा जोड़ा तुम ही से पैदा किया है ताकि तुम्हें उससे सूकून हासिल हो और फिर तुम्हारे बीच मोहब्बत और रहमत क़रार दी है कि उसमें समझदारों के लिए बहुत सी निशानियां पायी जाती हैं।   

एक महत्वपूर्ण सवाल यह उठाया जाता है कि हम आज से चौदह सौ साल पहले ज़िंदगी बसर करने वाली उन हस्तियों को कैसे अपने आदर्श बना सकते हैं? वह एक ख़ास ज़माने में और अरब के एक विशेष माहौल में ज़िंदगी बसर कर रहे थे, जहां की मांगें और हालात आज की मांगों और परिस्थितियों से बिल्कुल अलग थीं, तो हम उन जैसी ज़िंदगी कैसे गुज़ार सकते हैं?

इसका संक्षिप्त उत्तर यह है कि हमें उनकी जैसी जिंदगी नहीं जीना है। निसंदेह आज के हालात और आज की मांगें, उस ज़माने से अलग हैं। तो हमें करना क्या है? उन महान हस्तियों के जीवन से लेना क्या है? इसका जवाब यह है कि इंसानी ज़िंदगी के कुछ ऐसे सिद्धांत होते हैं जो हमेशा साबित रहते हैं, कभी बदलते नहीं हैं, कभी उनमें बदलाव नहीं आता बल्कि हमेशा एक जैसे रहते हैं। जैसे सच्चाई एक ऐसा सिद्धांत है जो हर युग में एक साबित सिद्धांत था, ऐसा नहीं है कि कल सच्चाई की ज़रूरत थी, आज नहीं है। या वफ़ादारी ज़िंदगी का एक साबित सिद्धांत है, ऐसा नहीं है कि कल वफ़ादारी अच्छी बात थी और आज बेवफ़ाई अच्छी हो गई हो या वफ़ादारी बुरी बात समझी जाती है। हमें पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की ज़िंदगी से इस तरह के सिद्धांत लेने हैं और उनके

 

इतिहास में मिलता है कि एक औरत मदीना की गलियों में बड़ी संतुष्टि के साथ टहल रही थी। उनके पैबंद लगे कपड़े उसकी ग़रीबी और निर्धनता की कहानी सुना रहे थे, दूसरों से मदद की उम्मीद के साथ वह एक-एक करके मदीना के घरों से गुज़र रही थी, किसी ने भी उसको कुछ नहीं दिया आख़िरकार वह निराश होकर पैग़म्बरे इस्लाम के घर पहुंची। उसने देखा कि पैग़म्बरे इस्लाम के घर बड़ी संख्या में महिलाओं का आना जाना है, वह हैरान होकर आगे बढ़ी, उसने देखा कि हर कोई हज़रत फ़ातेमा ज़हरा और और हज़रत अली के विवाह समारोह की तैयारियों में व्यस्त है, ऐसा लग रहा था कि जैसे पैग़म्बरे इस्लाम की बेटी कुछ महिलाओं के साथ विदा होकर हज़रत अली के घर जाने वाली है। वह बेचारी ग़रीब महिला एक कोने में खड़ी हो गई और क्षण भर के लिए अपनी ग़रीबी और संकट को भूल गई और अपने लोगों की ख़ुशी में शामिल हो गयी।

उस महिला ने देखा कि हज़रत फ़ातेमा पैग़म्बरे इस्लाम के घर से निकलीं, अनजाने में, बेचारी महिला कुछ कदम आगे बढ़ी। उसने फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के चमकते हुए चेहरे को क़रीब से देखा और हज़रत फ़ातेमा की नज़र उस ग़रीब महिला पर पड़ी। महिला ने क़रीब जाकर हज़रत फ़ातेमा ज़हरा को सलाम किया, उसने हज़रत फ़ातिमा  की दयालुता और क्षमा के बारे में बहुत सी बातें सुनी थीं और उसने यह भी सुना था कि वह किसी को ज़रूरत पड़ने पर निराश नहीं करती थीं।

ग़रीब और लाचार महिला ने पैग़म्बरे इस्लाम की बेटी से मदद मांगी। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने कुछ देर सोचा, शादी के लिए पहने हुए नये कपड़े को देखा, फिर तुरंत घर के अंदर लौट गईं। वहां खड़ी महिलाओं और लोगों को उस समय हैरानी हुए जब उन्होंने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के हाथ में उनकी शादी का नया जोड़ा देखा, वह दया और करुणा के साथ ग़रीब महिला के पास गयीं और उसे वह पोशाक दे दी और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा सादे कपड़े में विदा होकर हज़रत अली के घर चली गईं लेकिन उनका हृदय संतोष और प्रेम से भरा हुआ था। वह प्रसन्न थीं कि एक बार फिर ईश्वर ने उन्हें अपने बंदों की सेवा का अवसर प्रदान किया।

 

अपने पति अली अलैहिस्सला की नज़र में हज़रत फ़ातेमा की स्थिति और उनका महत्व, उतना ही क़ीमती और महान था जैसा पैग़म्बरे इस्लाम की नज़र में उनकी बुलंद स्थिति थी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपनी पत्नी फ़ातेमा पर गर्व था। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की नज़र में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा बेहरीन जीवन साथी और ईश्वरीय  आज्ञापालन और अनुसरण के मार्ग में उनकी सबसे अच्छी दोस्त और साथी थीं। इसीलिए अल्लाह के रसूल (स) के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि आपने अपनी पत्नी को कैसा पाया? तो उन्होंने कहा, ईश्वर के अनुसरण में मेरी सबसे अच्छी सहायक और साथी हैं।

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा और हज़रत अली की शादी, ईश्वर की आज्ञा से एक बहुत ही साधारण समारोह के साथ संपन्न हुई, पैग़म्बरे इस्लाम इस शादी के समय एक बार हज़रत अली की ओर मुड़े और उन्होंने कहा कि हे अली, फ़ातेमा तुम्हारे लिए एक अच्छी पत्नी है और अगर वह न होती तो पूरी दुनिया में आप के लिए एक उपयुक्त लड़की नहीं मिलती, फिर उन्होंने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की ओर मुंह करके कहा कि प्रिय ज़हरा, अली तुम्हारे लिए एक अच्छे पति हैं, और अगर वह न होते तो तुम्हें एक योग्य पति न मिलता।

बहुत से लोगों ने इस विषय का अनुभव किया है कि मूल रूप से दया और प्रेम उन परिवारों में पाया जाता है जो ज्ञान और प्रेम से एक दूसरे के साथ रहते हैं। पवित्र क़ुरआन की संस्कृति में परिवार के केंद्र में पति-पत्नी की स्वाभाविक इच्छाओं को पूरा करना, उनके स्नेह, स्वास्थ्य और सामंजस्य का कारक है। इसीलिए इस्लाम संयुक्त जीवन में उन भावनात्मक और मानवीय ज़रूरतों के प्रावधान को मानता है, जिनमें पुरुषों और महिलाओं के एक-दूसरे के प्रति अधिकार शामिल हों।

पुरुष, महिला को गुज़ारा भत्ता देने और उसके रहन सहन का ख़र्च उठाने पर बाध्य है जबकि एक महिला को भी पत्नी के रूप में अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ख़ुद पैग़म्बरे इस्लाम की गोदी की पाली और उन्हीं से शिक्षा ग्रहण करने वाली हैं, इसलिए वह अपने जीवन के हर पड़ाव में अपने पति की सबसे बड़ी समर्थक और सहायक मानी जाती हैं। अपने छोटे से जीवन में उन्होंने अपने पति से कुछ भी नहीं मांगा और उन्होंने कभी भी अपने पति को नाराज़ नहीं किया। वास्तव में इस अद्वितीय दंपति के बीच समझबूझ और मुहब्बत, उस सही चयन और ईमानदार सहयोग का परिणाम है जिसने सबसे बेहतरीन जीवन का उपहार प्रदान किया और इसके परिणाम में मानव जाति का मार्गदर्शन करने के लिए बेहतरीन बच्चे दुनिया के सामने पेश हुए।