इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की शहादत पर विशेष कार्यक्रम
(last modified Sat, 23 Sep 2023 15:31:31 GMT )
Sep २३, २०२३ २१:०१ Asia/Kolkata
  • इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की शहादत पर विशेष कार्यक्रम

दोस्तो इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम मुसलमानों के 11वें इमाम हैं। आठ रबीउस्सानी 232 हिजरी कमरी में पवित्र नगर मदीना में आपका जन्म हुआ था।

इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम आपके पिता हैं और महामुक्तिदाता हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम आपके बेटे हैं।

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम मात्र दो साल के थे जब उन्हें अपने पिता इमाम अली नकी अलैहिस्सलाम के साथ इराक के सामर्रा नगर लाया गया और इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को जिस जगह पर बसाया गया था उसकी उपमा एक सैनिक छावनी से दी जा सकती है। एक हफ्ते में दो बार इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को अपने समय की अब्बासी सरकार के केन्द्र में जाकर अपनी उपस्थिति का एलान करना पड़ता था। इमाम के चाहने वालों को सार्वजनिक स्थलों पर इमाम से बात करने की अनुमति नहीं थी।

इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम जब बनी अब्बासी खलीफा की जेल में शहीद हो गये तो लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के कांधों पर आ गया और 6 वर्षों तक इमामत का दायित्व संभाला। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम महान ईश्वर की उपासना करते थे। वह उपासक, दानी, ज्ञानी सार यह कि वह अपने समय में मानवता के सर्वोत्तम आदर्श और सद्गुणों की प्रतिमूर्ति थे। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम चौथे इमाम, इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की भांति लंबा और देर तक सज्दा करते थे और सातवें इमाम, इमाम मूसा काज़िमा अलैहिस्सलाम की भांति कारावास में बंद थे।

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अपने समय के सबसे बड़े उपासक और सदाचारी थे और कोई भी उनके जैसा नहीं था। इमाम की उपासना को देखकर दूसरों को महान ईश्वर की याद आ जाती थी और बहुत से गुमराह लोग भी सही रास्ते पर आ जाते थे। उदाहरण के तौर पर सालेह बिन वसीफ़ की ओर संकेत किया जा सकता है। वह अलवी शियों का घोर विरोधी था। उसने दो बहुत ही क्रूर व निर्दयी व्यक्तियों को इमाम की निगरानी पर रखा था ताकि इमाम को अधिक से अधिक यातना व कष्ट दे सके किन्तु दोनों ने जब इमाम को बहुत करीब से देखा तो वे बहुत प्रभावित हुए और कुछ ही दिनों के बाद इमाम के प्रति उनका रवइया बिल्कुल बदल गया और वे इमाम के प्रशंसक बन गये।

बनी अब्बास खलीफा का एक मंत्री अहमद बिन उबैदुल्लाह बिन खाकान इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के बारे में इस प्रकार कहता है” मैंने हज़रत अली की संतान में से किसी व्यक्ति को एसा नहीं देखा जो पवित्रता, निष्ठा, प्रतिष्ठा व बड़प्पन, सदव्यवहार आदि में हसन बिन अली बिन मोहम्मद की तरह हो और लेखक, न्यायधीश, धर्मशास्त्री और लोगों में से जिससे भी पूछता हूं सब बड़े आदर- सम्मान से उनका नाम लेते और उनके बारे में बात करते हैं। इस प्रकार था कि उनकी महानता मेरी नज़र में बहुत अधिक है क्योंकि दोस्त- दुश्मन में से कोई नहीं है मगर यह कि उन्हें अच्छाइयों के साथ याद करता और उनकी प्रशंसा करता था।" 

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम भी अपने पूर्वजों की भांति खलीफाओं और शासकों की ओर से किये जाने वाले अत्याचारों और कड़ी निगरानी के बावजूद अपने शियों से संपर्क को क़ायेम रखते थे। इमाम से संपर्क के लिए जो नेटवर्क गठित हुआ था उसका महत्वपूर्ण काम उन लोगों को परिचित कराना था जिसके संपर्क में रहकर लोग अपने धार्मिक प्रश्नों का जवाब हासिल कर सकते थे।

इसी प्रकार इमाम जिस व्यक्ति को अपने प्रतिनिधि के रूप में चुनते थे लोग उससे अपनी कठिनाइयों व समस्याओं को बयान करके उनका समाधान प्राप्त करते थे। इस आधार पर इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने जो महत्वपूर्ण कार्य अंजाम दिया उनमें से एक महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत को स्वीकार करने के लिए इस्लामी समाज को तैयार करना था। इमाम ने अपने अमल से यह समझाने का प्रयास किया कि महामुक्तिदाता के ग़ैबत के काल में किस तरह अपनी धार्मिक और सामाजिक समस्याओं का समाधान करें।

दसवें इमाम, इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद अधिकांश शिया इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को समय का इमाम समझते थे परंतु इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के एक बेटे जाफर बिन अली ने स्वंय को इमाम बताया और कुछ लोगों ने उन्हें इमाम भी मान लिया। इतिहास में जाफर बिन अली को जाफरे कज़्ज़ाब के नाम से याद किया जाता है। इसी प्रकार कुछ शियों ने इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के एक बेटे सैयद मोहम्मद को इमाम मान लिया जबकि उनका निधन इमाम अली नकी अलैहिस्सलाम की ज़िन्दगी में ही में हो चुका था।

शियों में इमाम को लेकर कभी भी इतना मतभेद नहीं हुआ था जितना इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से पहले हुआ था यहां तक कि इमाम कहने लगे थे कि इस प्रकार का मतभेद ईश्वरीय नेअमत के खत्म होने का कारण बन सकता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि शीया मुसलमानों के बीच यही मतभेद 12वें इमाम, इमाम महदी अलैहिस्सलाम की गैबत का कारण बना है।

यही लोगों का शक इस बात का कारण बना कि इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने विभिन्न हदीसों और पत्रों में स्पष्ट रूप से बयान किया कि मेरे बाद कौन इमाम है। अल्लामा मजलिसी ने अपनी मशहूर किताब बेहारूल अनवार में एक हदीस लिखा है जिसमें कहा गया है कि मेरे बाद हसन इमाम है और उसके बाद उसका बेटा कायेम यानी महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम इमाम हैं जो ज़मीन को उस तरह से न्याय से भर देंगे जिस तरह से वह अन्याय व अत्याचार से भर गयी होगी। इसी प्रकार शैख मुफीद ने अपनी किताब अलइरशाद में दस से अधिक रिवायतों और पत्रों को इस बारे में बयान किया है।

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के जीवन में महत्वपूर्ण बात उनके बेटे महामुक्तिदाता का जन्म है। महामुक्तिदाता के जन्म, ग़ैबत, उनकी विशेषताओं और उनकी विश्व व्यापी सरकार के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम से बहुत अधिक हदीसें व रिवायतें हैं। अधिकांश हदीसों और रिवायतों में यह बात बल देकर कही गयी है कि महामुक्तिदाता की विश्व व्यापी सरकार में पूरी दुनिया में न्याय उस तरह से स्थापित हो जायेगा जिस तरह से वह अन्याय से भरी होगी।

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ऐसी स्थिति में इमाम बने कि जब शिया मुसलमानों में काफी वैचारिक और आस्था संबंधी मतभेद उत्पन्न हो गये थे। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने मुसलमानों को सदैव इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं से अवगत कराया। उनमें से एक यह है कि ईश्वर का कोई आकार व जिस्म नहीं है। थोड़ी देर के लिए मान लें कि ईश्वर का आकार है उसका कोई शरीर है और वह किसी चीज़ से मिलकर बना है तो इसका लाज़ेमा यह होगा कि ईश्वर जिस चीज से मिलकर बना होगा वह चीज़ ईश्वर के अस्तित्व से पहले होनी चाहिये जबकि ईश्वर से पहले कोई भी चीज़ नहीं है।

वही पहला और आखिरी है। वह निराकार है और सर्वव्यापी है वह हमेशा था और हमेशा रहेगा। उसे मौत नहीं आयेगी। उसे न ऊंघ आती है न नींद। वह हर वस्तु के विदित और नीहित से पूर्णरूप से अवगत है। कोई भी चीज़ उसकी असीम नज़रों से ओझल नहीं है कोई ऐसी जगह ही नहीं है जहां वह न हो। कोई ऐसा प्राणी या ग़ैर प्राणी ही नहीं है जो उसकी नज़रों से ओझल हो। वह एक साथ हर जीवित की आवाज़ सुनता है।

सारांश यह है कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के काल में महान व सर्वसमर्थ ईश्वर के अस्तित्व को लेकर इतना मतभेद हो गया कि इमाम के एक अनुयाई ने इमाम को पत्र लिखा और उनसे इस संबंध में मार्गदर्शन मांगा। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने ईश्वर की ज़ात के बारे में सोचने और बहस करने से मना किया और उसके बाद पवित्र कुरआन की आयतों की ओर संकेत करते हुए फरमाया ईश्वर एक है न उसे किसी ने पैदा किया है और न उसने किसी को पैदा किया है और कोई भी उसका समतुल्य नहीं है वह जो चाहता है पैदा करता है उसका कोई शरीर नहीं है और कोई भी चीज़ उस जैसी नहीं है व सुनने व देखने वाला है।

दोस्तो कोई यह सवाल कर सकता है कि जिस चीज़ की वास्तविकता को हम नहीं समझते उसे कैसे स्वीकार कर लें? उसके जवाब में कहना चाहिये कि इस दुनिया में बहुत सारी चीज़ें हैं जिनकी वास्तविकता कोई नहीं जानता मगर सब मानते हैं। मिसाल के तौर पर सब मानता है कि इंसान के अंदर बुद्धि और आत्मा होती है पर आज तक किसी ने भी नहीं देखा कि उसका रूप रंग और आकार कैसा होता है? मगर मानता सब है। इसी तरह हवा या बिजली के अस्तित्व को सब मानता है इसमें किसी प्रकार का कोई मतभेद नहीं है मगर क्या आज तक किसी ने हवा या बिजली को देखा है कि वह किस रंग की होती है।

इसी प्रकार दर्जनों चीज़ें हैं जिन्हें सब मानते हैं परंतु उनकी वास्तविकता कोई नहीं जानता। उसी तरह दुनिया में बहुत सारी चीज़ें हैं जिनकी वास्तविकता इंसान नहीं जानते मगर मानते हैं। उसी तरह महान ईश्वर का अस्तित्व है। इमामों ने महान ईश्वर के अस्तित्व और उसकी ज़ात के बारे में सोचने से मना किया है। दुनिया की हर चीज़ सीमित है और महान ईश्वर असीमित है सीमित चीज़ असीमित को नहीं समझ सकती।

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने जो काम किये हैं उनमें से एक यह है कि उन्होंने बहुत अधिक होनहार व योग्य शिष्यों की प्रशिक्षा की है। इमाम ने जिन शिष्यों की प्रशिक्षा की है शैख तूसी ने उनकी संख्या सौ से अधिक बताई है।

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने मात्र 6 वर्षों तक इमामत की। आठ रबीउल अव्वल सन 260 हिजरी कमरी को अब्बासी खलीफा ने ज़हर दिलवा कर आपको शहीद कर दिया। उस समय इमाम की उम्र मात्र 28 साल थी। यह वह दिन था जब पूरा इस्लामी जगत विशेषकर सामर्रा शोक में डूब गया। बाज़ार बंद हो गये और वे शीया भी रोते- बिलखते इमाम के घर की ओर जाने लगे जो बनी अब्बासी खलीफाओं के भय से इमाम से अपने प्रेम को ज़ाहिर नहीं करते थे।

इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के पार्थिव शरीर को उसी घर में अपने पिता की समाधि के बगल में दफ्न कर दिया गया जिसमें आपको नज़रबंद करके रखा गया था। 11वें इमाम की शहादत के बाद 12वें इमाम हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की इमामत आरंभ हो गयी और आज उनकी इमामत का काल है परंतु कहा यह जाता है कि यह इमाम की ग़ैबत का काल है और इमाम महान ईश्वर के आदेश से उस वक्त सबकी नज़रों के सामने प्रकट होंगे जब दुनिया अत्याचार व अन्याय से भर चुकी होगी और इमाम दुनिया को उस तरह न्याय से भर देंगे जिस तरह वह अत्याचार से भरी होगी। MM

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