हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का महत्वपूर्ण संदेश शांति और दोस्ती है
दोस्तो यह वह दिन है जब ईसाई समाज में खुशी का वातावरण है।
इस अवसर पर ईसाई बहुत सी सड़कों और गलियों आदि को सजाते हैं और खुशी से संबंधित बहुत से कार्यों को अंजाम देते हैं। बहुत सी गलियों में और रोडों पर धार्मिक संगीत बजाये जाते हैं।
एक वह समय था जब हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम पैदा हो चुके थे। हज़रत मरियम अपने नन्हें से शिशु को गोद में लिये अपने परिजनों के पास आ रही थीं। उनके दिल में ख़ुशी और ग़म दोनों था। इससे पहले इस प्रकार आभास उनके दिल में कभी नहीं था। खुशी इस बात से थी कि महान शिशु उनकी गोद में था और दुःख इस बात से था कि वह अपनी क़ौम के पास जा रही थीं कि जब वह शिशु को देखकर उसके बारे में सवाल करेगी तो उसका वह क्या जवाब देंगी? इस प्रकार के सवाल हज़रत मरियम के मन में आ रहे थे कि अचानक उनकी कौम में से किसी ने कहा कि हे मरियम तुमने यह क्या किया? यह तुमने बहुत विचित्र और ग़लत काम किया है, हे हारून की बहन न तो तुम्हारा बाप बुरा आदमी था और न ही तुम्हारी मां ग़लत औरत थी।
सारे कटाक्ष के वाण हज़रत मरियम की ओर आ रहे थे। हज़रत मरियम ने सवालों का जवाब देने के बजाये अपने नन्हें शिशु की ओर इशारा किया तो उन सबों ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि हम उस शिशु से कैसे बात कर सकते हैं जो पालने में है। उन लोगों का यह कहना था कि अचानक वह शिशु बोल उठा और कहने लगा कि मैं ईश्वर का बंदा हूं और उसने मुझे किताब दी है और मुझे नबी बनाया है और मैं जहां भी रहूं मुझे मुबारक करार दिया है और जब तक ज़िन्दा हूं मुझे नमाज़ पढ़ने और ज़कात देने का आदेश दिया है। मुझ पर और उस दिन पर सलाम हो जिस दिन मैं पैदा हुआ हूं और उस दिन पर सलाम हो जिस दिन मैं मरूंगा और दोबारा ज़िन्दा किया जाऊंगा।
दोस्तो नया वर्ष आरंभ हो रहा है। दुनिया के बहुत से देशों व क्षेत्रों में क्रिसमस की खुशियां मनाई जा रही हैं।
इंजील की विभिन्न किताबों के अनुसार 25 दिसंबर क्रिसमस दिवस है परंतु ईसाईयों के कुछ संप्रदाय 14 जनवरी को ईद के रूप में मनाते हैं जबकि कुछ दूसरे ईसाई 31 दिसंबर को जश्न मनाते हैं परंतु उनकी अस्ली ईद 6 जनवरी को है। हज़रत का जन्म चाहे 25 दिसंबर को हुआ हो या 6 जनवरी को, मुबारक दिन है और उनका जन्म फिलिस्तीन के बैते लहम में हुआ था।
ईसाई, हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम के जन्म दिवस की खुशी मनाने के लिए गिरजाघर जाते हैं। हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम महान ईश्वर के वह पैग़म्बर हैं जो चमत्कारिक ढंग से बाप के बिना हज़रत मरियम के पेट से पैदा हुए थे। हज़रत मरियम वह महान व पवित्र महिला थीं जो अपने समय में पवित्रता का श्रेष्ठतम आदर्श थीं। हज़रत मरियम और हज़रत ईसा का उल्लेख महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन में भी किया है।
मुसलमानों का मानना है कि हज़रत मरियम दुनिया की चार चुनी हुई पवित्र व श्रेष्ठ महिलाओं में से एक हैं। हज़रत मरियम के पिता का नाम इमरान था जबकि उनकी माता का नाम हन्ना था जो बहुत ही नेक और पवित्र महिला थीं। पवित्र कुरआन सूरे आले इमरान में हज़रत मरियम की मां की ओर से की जाने वाली नज़्र की ओर संकेत करता है। हज़रत मरियम जब अपनी मां के पेट में थीं तो उनकी मां नज़्र करती हैं कि अगर मेरे पेट में पलने वाला बेटा होगा तो मैं बचपने से ही उसे ईश्वर की प्रसन्नता के लिए उपासना स्थल में रख दूंगी।
जब हज़रत मरियम पैदा हुईं तो महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे आले इमरान की 36वीं आयत में उसका वर्णन इस प्रकार करता है। ”जब मरियम पैदा हुईं तब उनकी मां को ज्ञात हुआ कि पैदा होने वाला शिशु बच्ची है तो वह इस वजह से गमगीन व दुःखी हो गयीं कि शायद अपनी नज़्र पूरी न कर सकें इसके बावजूद उन्होंने अपनी बच्ची का नाम उपासना स्थल की सेविका रखा और उन्हें उपासना स्थल में रख दिया।
उस समय उपासना स्थल के उपासकों में इस बात को लेकर विवाद व बहस होने लगी कि हज़रत मरियम की ज़िम्मेदारी कौन लेगा। आखिर में तय यह पाया कि इसके लिए क़ोराअ कशी की जायेगी और जिसका नाम निकलेगा वही हज़रत मरियम की ज़िम्मेदारी संभालेगा। क़ोराअ कशी में हज़रत ज़करिया का नाम निकला। वह तक़वा व सदाचारिता में सर्वेश्रेष्ठ थे। वह सबको महान ईश्वर की ओर बुलाते थे। हज़रत मरियम की देखरेख की ज़िम्मेदारी उन्हीं को सौंपी गयी। हज़रत मरियम उपासना स्थल में सेविका का कार्य अंजाम देती थीं और अपने पालनहार की उपासना करती थीं।
यहां तक कि वह बड़ी और बालिग़ हो गयीं। उस वक्त हज़रत ज़करिया ने उपासना स्थल में हज़रत मरियम के लिए एक विशेष स्थान निर्धारित कर दिया ताकि हज़रत मरियम लोगों से दूर रहकर अपने पालनहार की उपासना कर सकें। हज़रत मरियम उपासना स्थल के जिस भाग में अपने पालनहार की उपासना करती थीं उस भाग में हज़रत ज़करिया के अलावा कोई दाखिल नहीं होता था।
हज़रत मरियम इस प्रकार महान ईश्वर और अपने पालनहार की उपासना व प्रार्थना में लीन रहने लगीं यहां तक कि आसमान से उनके लिए खाने थे। पवित्र कुरआन के सूरे आले इमरान की 37वीं आयत में इस बारे में आया है“ जब भी ज़करिया मरियम के उपासना वाले भाग में जाते थे तो खाना तय्यार देखते थे एक दिन उन्होंने मरियम से पूछा कि यह खाने कहां से आते हैं? तो हज़रत मरियम ने कहा कि उस ईश्वर के पास से जो जिसे चाहता है बेहिसाब रोज़ी देता है।
पवित्र कुरआन की इस आयत से यह बात पूरी तरह स्पष्ट है कि हज़रत मरियम स्वर्ग से भेजे जाने वाले खानों को खाती थीं ताकि हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम जैसे महान ईश्वरीय पैग़म्बर को जन्म दे सकें। महान ईश्वर पवित्र कुरआन में अच्छे शब्दों में हज़रत मरियम को याद करता है और न केवल महिलाओं बल्कि समस्त मोमिनों का आह्वान करता है कि वे हज़रत मरियम को आदर्श बनायें। महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे तहरीम की 13वीं आयत में कहता है कि ईश्वर मोमिनों के लिए इमरान की बेटी मरियम का उदाहरण देता है।
पवित्र कुरआन जिन शब्दों में हज़रत मरियम और उनके बेटे हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को याद करता है वह इस बात का कारण बना है कि न केवल ईसाई बल्कि मुसलमान भी हज़रत मरियम और हज़रत ईसा का आदर करते हैं, उनसे प्रेम करते और श्रृद्धा रखते हैं।
महान शीया धर्मशास्त्री दिवंगत अल्लामा काशिफ़ुल ग़ता इस बारे में कहते हैं कि पवित्र कुरआन ने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम और उनकी मां की पवित्रता के बारे में जो कुछ बयान किया है अगर वे न होंती तो मानवता उनकी पवित्रता व महानता को न समझ पाती।“
हज़रत ईसा मसीह की एक विशेषता पवित्र कुरआन बयान करते हुए कहता है कि वह अपनी मां के साथ नम्र भाव से पेश आते थे। हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम समस्त सदगुणों की प्रतिमूर्ति थे और वह अपनी मां के साथ उसी तरह से पेश आते थे जिस तरह से मां- बाप से पेश आने के लिए इस्लामी रिवायतों व शिक्षाओं में बहुत बल दिया गया है। स्वयं हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम ने कहा है कि ईश्वर ने मुझे अपनी मां के साथ अच्छा व्यवहार करने का आदेश दिया है और मुझे अत्याचारी नहीं बनाया है। यह वह बात है जिसका पवित्र कुरआन के सूरे मरियम की 32वीं आयत में उल्लेख किया गया है।
हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम की एक अन्य विशेषता महान ईश्वर का बंदा होना और उसके आदेशों के समक्ष नतमस्तक होना है। उनकी इस विशेषता का भी बयान पवित्र कुरआन ने किया है। सूरे मरियम की 30वीं और 31वीं आयतों में आया है कि ईसा ने कहा कि मैं ईश्वर का बंदा हूं मुझे आसमानी किताब दी और उसने मुझे नबी अर्थात पैग़म्बर बनाया है और जहां भी मैं रहूं मुझे मुबारक बनाया गया है और जब तक मैं ज़िन्दा हूं मुझे नमाज़ पढ़ने और ज़कात देने का आदेश दिया है।
पवित्र कुरआन की इन आयतों से यह बात पूरी तरह स्पष्ट है कि हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम न ईश्वर थे और न ईश्वर के बेटे जैसा कि कुछ ईसाई मानते हैं। इसी प्रकार हज़रत ईसा ने कहा था कि सलाम हो उस दिन पर जिस दिन मैं ज़िन्दा किया जाऊंगा। हज़रत ईसा की इस बात से भी सिद्ध होता है कि वह ईश्वर नहीं बल्कि महान ईश्वर के बंदे थे। ईश्वर वह है जो हमेशा था और हमेशा रहेगा और कभी भी उसे मौत नहीं आयेगी जबकि हज़रत ईसा कह रहे हैं कि उस दिन पर सलाम हो जब मैं ज़िन्दा किया जाऊंगा। इसी प्रकार हज़रत ईसा ने कहा है कि जब तक मैं ज़िन्दा हूं मुझे ईश्वर ने नमाज़ पढ़ने और ज़कात देने का आदेश दिया है। उनका यह कहना कि मुझे नमाज़ पढ़ने का आदेश दिया गया है स्वयं इस बात का प्रमाण है कि वह ईश्वर नहीं है। महान ईश्वर की उपासना का आदेश यह बताता है कि वह ईश्वर नहीं थे बल्कि ईश्वर के एक बंदे थे। पवित्र कुरआन की ये आयतें उन बातों को रद्द करती हैं जिन पर कुछ ईसाई आस्था रखते हैं।
हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम महान ईश्वर के एक नेक बंदे और महान ईश्वरीय पैग़म्बर थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम हज़रत ईसा की जीवन शैली के बारे में फरमाते हैं पत्थर उनकी तकिया, मोटा व खुरदुरा उनका वस्त्र, सामान्य खाना, रात को जागना और वह वे सब्ज़ियां खाते थे जो दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में उगती हैं। इसी प्रकार इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने फरमाया है कि ईसा ने कहा है कि हे ईश्वर के बुरे बंदों! गेहूं को साफ करो और फिर उसे अच्छी तरह पीसो ताकि उसके स्वाद को चख सको। इसी तरह ईमान को शुद्ध और पूर्ण बनाओ ताकि उसकी मिठास को चख सको और अंत में वह तुम्हें फायदा पहुंचायेगा।
बहरहाल हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम भी ईश्वरीय पैग़म्बर थे और महान ईश्वर ने उन्हें लोगों के मार्गदर्शन के लिए भेजा था। वह लोगों को ईश्वर की ओर बुलाते थे। ईश्वर के आदेश से मुर्दों को ज़िन्दा करते थे। थोड़ी सी मिट्टी से जीवित पक्षी बना दिया करते थे और नेत्रहीन को देखने वाला बना देते थे। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का महत्वपूर्ण संदेश शांति और दोस्ती है और सीधी सी बात है कि जिस शांति का आधार अन्याय होगा वह कभी भी टिकाऊ व स्थाई नहीं हो सकती। MM
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