पवित्र रमज़ान पर विशेष कार्यक्रम-१४
(last modified Sun, 19 Jun 2016 04:51:23 GMT )
Jun १९, २०१६ १०:२१ Asia/Kolkata

रमज़ान वास्तव में शरीर के साथ ही मन को पवित्र करने का अवसर है और रमज़ान के महीने में आत्मा भी साफ की जाती है और मनुष्य अपनी अध्यात्मिकता में वृद्धि कर सकता है। 

रमज़ान वास्तव में शरीर के साथ ही मन को पवित्र करने का अवसर है और रमज़ान के महीने में आत्मा भी साफ की जाती है और मनुष्य अपनी अध्यात्मिकता में वृद्धि कर सकता है।  दर अस्ल रमज़ान इच्छा शक्ति व संकल्प को मज़बूत करने का अवसर होता है और मनुष्य भूख व प्यास सहन करके वास्तव में अपनी इच्छा शक्ति को मज़बूत बनाता है। यदि देखा जाए तो आज के समाज में मनुष्य की  सब से बड़ी समस्या अध्यात्मिक कमज़ोरी है। अध्यात्मिक कमज़ोरी बहुत सी समस्याओं का कारण बनती है किंतु रोज़े आत्मा को धुल देते हैं और उसे स्वच्छ कर बना देते हैं। इस महीने में मनुष्य का ईश्वर से संबंध मज़बूत होता है और यह मज़बूती मनुष्य में स्वार्थ की भावना कम करती है और उसके मन में अन्य लोगों के प्रति सम्मान व प्रेम की भावना पैदा करती है।

 

 

 

 

तेहरान में अल्लामा तबातबाई युनिवर्सिटी के प्रोफेसर डाक्टर फुतुव्वत रोज़े में मनुष्य के लिए आत्मज्ञान को सब से प्रभावशाली साधन मानते हैं। वह कहते हैं कि एक महीना रोज़ा रखने से इन्सान ऐसी वास्तविकताओं को समझने लगता है कि शायद उससे पहले उन की ओर उसने कभी ध्यान ही नहीं दिया था। दूसरे शब्दों में रमज़ान के महीने में मनुष्य के अस्तित्व के ग़ैर भौतिक पहलू स्वंय उसके सामने ज़्यादा स्पष्ट रूप से प्रकट होते है और मनुष्य खान पान जैसी शारीरिक इच्छाओं और ज़रूरतों के अलावा अपने अस्तित्व की अन्य आवश्यकताओं की ओर भी आकृष्ट होता है और उन्हें समझता है। इस प्रकार से वह अधिक सरलता से अपनी भौतिक ज़रूरतों की अनदेखी कर सकता है और फिर स्पष्ट सी बात है जिस मनुष्य के लिए अपनी शारीरिक व भौतिक ज़रूरतें महत्वपूर्ण नहीं होंगीं वह निश्चित रूप से एक दानी, क्षमाशील और विश्वस्त व्यक्ति होगा।

 

 

 

 

 

इस्लाम धर्म का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य मनुष्य को भीतर से संवारना और उसके शरीर को इस्लामी मूल्यों और मान्यताओं के अनुसार ढालना भी है । इस सदंर्भ में रोज़ा मनुष्य को समाज से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है यही कारण है कि बहुत से समाज शास्त्री, रोज़े को सामाजिक एकजुटता का एक प्रभावशाली साधन मानते हैं। रमज़ान के मुबारक महीने में  लोगों में  अध्यात्मिक भावना मज़बूत होती है और इसके कारण अपराधों में कमी आती है  

 

 

 

 

समाज शास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि रमज़ान का महीना ऐसा वातावरण बनाता है जिसमें मनुष्य के भीतर सत्य की भावना प्रबल होती है और उसके कारण समाज में अच्छाइयों का विस्तार होता है। यह महीना वास्तव में हमारे थके हारे अस्तित्व को  ताज़गी प्रदान करता है । पवित्र रमज़ान, सुन्दर क्षणों से परिपूर्ण महीना है।  ऐसे क्षण जिनसे लाभान्वित होने के लिए केवल उनका अनुभव ही किया जा सकता है।  विभूतियों से भरी इसकी भोर, सूर्यास्त के पश्चात आध्यात्मिक वातावरण से परिपूर्ण इसके इफतार के क्षण, प्रार्थना और पवित्र क़ुरआन से एक विशेष लगाव, भोर के समय उठना और सूर्योदय तक जागते रहने जैसी समस्त विभूतियां सबकुछ इसी उत्तम महीने की अनुकंपाओं का भाग हैं। 

 

महान ईश्वर ने लोगों के लिए विभिन्न  युगों और स्थानों पर पवित्रता एवं आध्यात्म से परिपूर्ण वातावरण उपलब्ध करवाया है ताकि परिवर्तन के लिए इन्सानों के  पास उचित अवसर हो।  इन मूल्यवान अवसरों में से एक, पवित्र रमज़ान का महीना है। 

 

 

 

 

 

  रमज़ान का पवित्र महीना एक ही प्रकार से बिताई जाने वाली दिनचर्या में बदलाव लाता है ताकि मनुष्य स्वयं को समझ सके और ऐसा न हो कि बुराइयों के खिलाफ  युद्ध में उसकी सांसारिक आवश्यकताएं और संसार पर उसकी निर्भरता, उसको अक्षम बना दे।  अब जबकि जीवन की समस्याओं ने हमको बुरी तरह से थका दिया है आइऐ इस महीने में ईश्वरीय अनुकंपाओं की वर्षा से तृप्त होते हैं और इस महीने में, पश्चाताप के पंखों का सहारा लेकर ईश्वर की अनुकंपाओं के आकाश में उड़ान भरें। 

 

 

 

 

 

पैग़म्बरे इस्लाम लोगों से कहा करते थे कि रमज़ान के महीने में अधिक से अधिक क़ुरआन पढ़ो।  एक दिन उनसे पूछा गया कि रमज़ान में सबसे अच्छा कार्य कौनसा है तो इसपर पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने उत्तर दिया कि इस महीने में महत्वपूर्ण कार्य, ईश्वर द्वारा वर्जित की गई बातों से बचना है अर्थात ईश्वर ने जिन कार्यों को मना किया है उसे मनुष्य को नहीं करना चाहिए।

 

 

 

रमज़ान का पवित्र महीना पवित्रता और हृदय को पापों व ग़लतियों से दूर रखने का महीना है ताकि मनुष्य स्वच्छ व पवित्र मन के साथ अपने पालनहार की सेवा में उपस्थित हो सके। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम कहते हैं" रमज़ान वह महीना है जिसके रोज़ों को ईश्वर ने तुम पर अनिवार्य किया है और जो भी उसके रोज़ों को ईश्वरीय दायित्व समझ कर रखेगा उसके पाप क्षमा कर दिये जायेंगे और वह व्यक्ति उस दिन की भांति हो जायेगा जिस दिन अपनी मां के पेट से पैदा हुआ है"

 

 

 

पवित्र रमज़ान महीने और उसमें रोज़ा रखने वालों का महत्व ईश्वर के निकट बहुत अधिक है। इस प्रकार से कि महान ईश्वर ने कुछ फरिश्तों को यह कार्य सौंपा है कि वे इस महीने में रोज़ा रखने वालों के लिए दुआ और प्रायश्चित करें। इस संबंध में हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम कहते हैं" निःसंदेह ईश्वर के पास कुछ फरिश्ते हैं जो पूरे रमज़ान महीने में रोज़ा रखने वालों के लिए प्रायश्चित करते हैं"

 

 

 

पवित्र कुरआन और कुछ दुआओं में भी पवित्र रमज़ान का ६४ बार नाम लिया गया है जो इस महीने की महानता एवं विशेषता का सूचक है। उनमें कुछ नाम इस प्रकार हैं, प्रायश्चित का महीना, दया का महीना, क़ुरआन का महीना, विभूति का महीना, धैर्य का महीना, आजीविका का महीना, दान का महीना पवित्रता का महीना और क़ुरआन पढ़ने का महीना।

 

 

 

रमज़ान के पवित्र महीने में महान ईश्वर अपने बंदों की ओर क्षमा का द्वार खोल देता है ताकि वे पवित्र क़ुरआन को पढ़ने, दुआ करने और रमज़ान महीने की रातों व दिनों की विभूतियों से लाभ उठायें तथा अपनी आध्यात्मिकता में वृद्धि करें। मनुष्य इस विभूतिपूर्ण महीने में अध्यात्म की सीढ़ियों को अधिक तीव्र गति से तय कर सकता है। यह एक ऐसी वास्तविकता है जिसका आभास रोज़ा रखने वालों को स्वंय होता है और अब जब कि रमज़ान का महीना आधा हो रहा है, पहली रमज़ान से रोज़ा रखने वालों को निश्चित रूप से अपने भीतर परिवर्तन भलीभांति महसूस होता है और निश्चित रूप से उनकी आध्यात्मिकता में वृद्धि हो चुकी होती है।

 

 

 

आध्यात्मिकता दुआएं कूबूल होने का कारण बनती है। कहते हैं कि बनी इस्राईल नामक जाति सूखे का शिकार हो गयी जिसके कारण इस जाति के लोग विभिन्न प्रकार की समस्याओं में फंस गये। ईश्वरीय दूत हज़रत मूसा ने लोगों से कहा कि सब एकत्रित होकर वर्षा की दुआ करें और इसके लिए तूर नामक पहाड़ के निकट सब को बुलाया गया। बनी इस्राईल जाति के बहुत से लोग एकत्रित हुए उनमें लगभग सब ही धर्म का पालन करने वाले थे उन सब ने दुआ की किंतु बारिश की एक बूंद भी न गिरी। कई दिन बीत गये यहां तक कि हज़रत मूसा ने ईश्वर से प्रार्थना की कि हे ईश्वर हमारी दुआ कूबूल क्यों नही हो रही है? उत्तर आया कि तुम लोगों के मध्य एक पापी युवा है जिसके कारण तुम सब की दुआएं कूबूल नहीं हो रही हैं। हज़रत मूसा ने लोगों को पूरी बात बतायी और कहा कि उस युवा को स्वंय पता होगा इस लिए वह उठ कर चला जाए। अभी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की बात ख़त्म भी नहीं हुई थी कि बारिश होने लगी यह देख कर हज़रत मूसा ने कहा हे ईश्वर! अभी तो कोई उठ कर गया भी नहीं फिर बारिश कैसे हो गयी? उत्तर आया कि हे मूसा जब तुमने यह बात कही तो वह युवा परेशान हो गया किंतु उसे इतने लोगों के मध्य से उठ कर जाने पर शर्म आ रही थी और वह अत्याधिक शर्मिंदा था और मैं अपने दास को इससे अधिक शंर्मिदा नहीं करना चाहता था । इस लिए यह बारिश उस युवा के दिल से निकली आह के कारण है। 

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