इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का चेहलुम वरिष्ठ नेता की नज़र में
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का चेहलुम मुसलमानों के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण है इसी लिए इस संदर्भ में लाखों किताबें लिखी जा चुकी हैं और असंख्य बुद्धिजीवियों ने अपने विचार प्रकट किये हैं।
इमाम हुसैन के चेहलुम का महत्व इस लिए भी है कि यह वास्तव में मुहर्रम की दस तारीख को इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत और उनके मिशन का एलान भी है और वास्तव में चेहलुम ने आशूर की महात्रासदी को लोगों के मनों में जीवित रखा और आम लोगों को यह पाठ सिखाया कि सच के लिए संघर्ष करना एक अत्यन्त सम्मानीय क़दम है।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई चेहलुम को अत्याचार व अन्याय के खिलाफ इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन का ही क्रम मानते हैं और कहते हैं कि चेहलुम के सब से बड़ा पाठ यह है कि इस घटना ने दुश्मन के प्रचारों के बावजूद शहादत की याद को सुरक्षित रखा। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि चेहलुम का महत्व यह है कि इस दिन पैगम्बरे इस्लाम (स) के परिजनों की बुद्धिमत्ता का प्रमाण देते हुए हुसैनी मिशन को अमर कर दिया और चेहलुम की नींव रखी। अगर शहीदों के परिजन, उनकी शहादत के बाद, उनकी याद को जीवित रखने का संकल्प न लेते तो अगली पीढ़ियों को आशूर के मिशन के संदेश और वास्तविकता का कभी पता न चलता। अगर इमाम हुसैन की बहन हज़रत ज़ैनब और इमाम हुसैन के बेटे हज़रत सज्जाद ने कर्बला में इमाम हुसैन की शहादत के बाद , बंदी बनाए जाने के समय और कूफा व शाम में क़ैद के दौरान और इसी प्रकार कर्बला वापसी और मदीना पहुंचने के बाद अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक कर्बला का संदेश आम न करते तो आशूर की घटना आज इस प्रकार से लोगों के मनों में जीवित न होती। पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र और छठें इमाम, इमाम जाफरे सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा है कि जो आशूर के बारे में एक शेर कहे और उसे सुन कर लोग रोएं तो ईश्वर उसे अवश्य जन्नत में भेजेगा। इस कथन का उद्देश्य वास्तव में यह है कि आशूर के बाद, सरकारी तंत्र पूरी तरह से सक्रिय हो गया था और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मिशन की छवि बिगाड़ने और उसके संदेशों को लोगों से छिपाने का प्रयास कर रहा था। उस समय भी आज ही की तरह अत्याचारी व साम्राज्यी शक्तियां झूठे प्रचारों और दुष्टता का भरपूर सहारा लेती थीं। इन हालात में यह कैसे संभव है कि कर्बला के जंगल में घटने वाली एक घटना इस प्रकार से आज याद रखी जाए? निश्चित रूप से अगर पैगम्बरे इस्लाम के परिजनों के प्रयास न होते तो कर्बला की घटना भुला दी जाती। चेहलुम हमें जो पाठ देता है वह यह है कि दुश्मन के प्रचारों के तूफान के आगे बलिदान और शहादत को जीवित रखा जाना चाहिए।

इमाम हुसैन का चेहलुम आशूर की महात्रासदी को याद करने और इमाम हुसैन और उनके साथियों के महान बलिदान को श्रदांजलि अर्पित करने का दिन है। कर्बला में इमाम हुसैन की क़ब्र पर सब से पहले दर्शन के लिए पहुंचने वाले जाबिर बिन अब्दुल्लाह अन्सारी थे।
वरिष्ठ नेता जाबिर बिन अब्दुल्लाह अन्सारी के व्यक्तित्व और इमाम हुसैन से उनके लगाव के बारे में कहते हैं कि जाबिन बिन अब्दुल्लाह इस्लाम के उदय के काल के संघर्षकर्ताओं में से हैं और बद्र नामक युद्ध में उन्होंने भाग लिया था जो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के जन्म से पहले हुआ था। इसका अर्थ यह हुआ कि जाबिर बिन अब्दुल्लाह, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के जन्म से पहले पैगम्बरे इस्लाम की सेवा में थे। उन्होंने इमाम हुसैन का बचपन, और उनका पालन पोषण अपनी आंखों से देखा था, उन्होंने देखा था कि किस प्रकार पैगम्बरे इस्लाम हुसैन को अपनी गोद में लेते और उनकी आंखों को चूमा करते थे, चेहरे को चूमा करते थे और इमाम हुसैन को अपने हाथों से खाना खिलाते थे।
पैगम्बरे इस्लाम के बाद भी विभिन्न कालों और और मदीना व मक्का में इमाम हुसैन की स्थित और उनका सम्मान जाबिर बिन अब्दुल्लाह की आंखों के सामने था। यही वजह है कि जैसे ही उन्हें पता चला कि पैगम्बरे इस्लाम के अत्यन्त प्रिय नाती इमाम हुसैन को इराक के कर्बला मरुस्थल में शहीद कर दिया, वह मदीना निकल पड़े। उनके साथ अतिया नामक उनके एक साथी भी थे।

अतिया बताते हैं कि चेहलुम के दिन जाबिर बिन अब्दुल्लाह फुरात नदी के किनारे गये वहां स्नान किया, साफ सुथरे सफेद कपड़े पहने और धीरे धीरे क़दम बढ़ाते हुए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की क़ब्र की तरफ गये, जब क़ब्र पर पहुंचे तो ऊंची आवाज़ में तीन बार अल्लाहो अकबर कहा। और फिर इतना रोए कि बेहोश हो गये।
इमाम हुसैन के श्रध्दालु सदियों से, जाबिर बिन अब्दुल्लाह की तरह चेहलुम के अवसर पर हर साल कर्बला जाते हैं। वरिष्ठ नेता इस श्रद्धा और प्रेम के बारे में कहते हैं हालिया वर्षों में एक और अभूतपूर्ण पंरपरा आरंभ हुई है और वह नजफ से कर्बला तक पैदल यात्रा है। बहुत से लोग दूर दराज़ के शहरों से भी पैदल कर्बला पहुंचते हैं कुछ बसरा से, कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों से पैदल कर्बला जाते हैं यह वास्तव में प्रेम व ईमान का आन्दोलन है हम जो दूर से बैठ के देखते हैं तो हमें इस महाआन्दोलन में शामिल होने वालों पर रश्क होता है।
वरिष्ठ नेता कहते हैं कि जो लोग यह काम करते हैं वह बहुत ही सराहनीय और बड़ा काम करते हैं वह वास्तव में एक ईश्वरीय परपंरा को जीवित रख रहे हैं। वरिष्ठ नेता शिया विचार धारा को बुद्धि, भावना, ईमान व प्रेम का संग्रह मानते हैं और उनका विचार है कि यह वही चीज़ है जो अन्य इस्लामी मतों में नज़र नहीं आती।