एड्स से मुकाबले का अंतरराष्ट्रीय विदेश दिवस
आज मानव समाज को जिन समस्याओं का सामना है उनमें से एक एड्स की प्राण घातक बीमारी है।
यह बीमारी पूरी दुनिया में फैली हुई है और इससे अब तक लाखों लोग काल के गाल में समा चुके हैं और अब भी लाखों लोग प्रतिवर्ष इस प्राण घातक बीमारी में ग्रस्त हो रहे हैं। इस बीमारी से समाज का हर वर्ग प्रभावित हो रहा है। इस बीमारी के घातक और व्यापक परिणामों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्रसंघ ने पहली दिसम्बर को अंतरराष्ट्रीय एड्स दिवस का नाम दिया है। इस अवसर पर लोगों को एड्स के बारे में ज़रूरी जानकारियां प्रदान की जाती हैं और लोगों को बताया जाता है कि यह बीमारी अभी समाप्त नहीं हुई है और इसके मुकाबले के लिए अभी भी बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है। आज पहली दिसंबर यानी एड्स से मुकाबले की 30वीं वर्षगांठ है। इस अवसर पर हम विशेष कार्यक्रम के साथ आपकी सेवा में हाज़िर हैं।
HIV एक वायरस है जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डालता है और उससे अस्तित्व में आने वाली बीमारी को एड्स कहा जाता है। एड्स कई तरीकों से फैलता है जैसे खून, यौन संपर्क और दूध देने वाली महिला का दूध इंसान के बदन में चला जाये तो जिस इंसान के बदन में जायेगा उसे भी एड्स हो जायेगा और वह वाइट ब्लड सेल्स को खराब करके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कमज़ोर करता है। HIV में ग्रस्त होने वाले व्यक्ति को आरंभ में इस बात का पता ही नहीं चल पाता है कि वह HIV में ग्रस्त हो गया है और देखने में वह स्वस्थ लगता है परंतु इस अवधि में HIV वायरस इंसान के शरीर के प्रतिरोधक तंत्र को आघात पहुंचा चुका होता है और इंसान एड्स में ग्रस्त हो जाता है और इसी वजह से जो व्यक्ति एड्स में ग्रस्त हो जाता है उसे टीबी जैसी विभिन्न प्रकार की बीमारियां भी हो जाती हैं। जो लोग एड्स से ग्रस्त होते हैं उनमें 25 प्रतिशत लोगों की मौत भी टीबी से हो जाती है। इसी प्रकार जो लोग एड्स में ग्रस्त होते हैं उन्हें विभिन्न प्रकार के कैंसर भी हो जाते हैं।
एड्स की बीमारी का सबसे पहले पता अमेरिका में वर्ष 1981 में चला। जिन व्यक्तियों में एड्स की पहचान की गयी वे नशेड़ी और समलैंगिक थे और अज्ञात कारणों से उनके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर हो गयी थी जबकि अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि एड्स बीमारी का स्रोत अफ्रीका है और उनका मानना है कि 19वीं और 20वीं शताब्दी में यह बीमारी केन्द्रीय अफ्रीका में अस्तित्व में आयी है और पिछले चार दशकों में एड्स से सबसे अधिक लोग अफ्रीका में ही हताहत हुए हैं। घोषित आंकड़ों के अनुसार दुनिया में चार करोड़ से अधिक लोग HIV में ग्रस्त हैं उनमें से दो करोड़ 60 लाख लोगों का संबंध केवल अफ्रीकी देशों से है और अब तक अफ्रीक़ी देशों के ढ़ाई करोड़ लोग एड्स के कारण अपनी जान से हाथ धो चुके हैं। एड्स से सबसे अधिक अफ्रीक़ी देश प्रभावित होते हैं और एक अनुमान के अनुसार इस क्षेत्र में एड्स में ग्रस्त होने वाले 68 प्रतिशत लोगों में से 66 प्रतिशत की मौत इसी क्षेत्र में हुई है। इस समय दक्षिण अफ्रीका में 59 लाख लोग एड्स में ग्रस्त हैं और यह संख्या दुनिया में एड्स में ग्रस्त होने वाले हर देश से अधिक है। बड़े खेद के साथ कहना पड़ता है कि इस संबंध में जो अध्ययन किये गये हैं उसके अनुसार अफ्रीका में सबसे अधिक एड्स में ग्रस्त और एड्स फैलाने वालों का संबंध महिलाओं से है। इस क्षेत्र में यौन शोषण और विवाह के लिए मजबूर करना एड्स फैलने का महत्वपूर्ण कारण रहा है।

दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया वह दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है जहां के लोग सबसे अधिक एड्स में ग्रस्त हैं। एक अनुमान के अनुसार इस क्षेत्र में एड्स में ग्रस्त चालिस लाख लोग रहते हैं जिनमें से 25 लाख की मृत्यु हो चुकी है। केवल भारत में एड्स में ग्रस्त लगभग 24 लाख लोग रहते हैं जबकि पश्चिमी और केन्द्रीय यूरोप में एड्स में ग्रस्त होने वालों की संख्या शून्य दशमलव दो प्रतिशत है और पूर्वी एशिया में एड्स से ग्रस्त होने वालों की संख्या शून्य दशमलव एक प्रतिशत है। यह स्थिति पूर्वी यूरोप और केन्द्रीय एशिया के देशों में चेतावनी की सीमा तक पहुंच गयी है। एड्स की बीमारी उन देशों या क्षेत्रों में कम फैली है जहां के लोग धार्मिक शिक्षाओं व मूल्यों के प्रति अधिक कटिबद्ध हैं।
हालिया वर्षों में एड्स के कारण दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में बहुत अधिक लोगों की मृत्यु हो गयी। इस बात के दृष्टिगत विश्व वासियों ने लोगों की मृत्यु की रोकथाम के लिए बहुत प्रयास आरंभ किये हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ की घोषणा के अनुसार एड्स में ग्रस्त होने वाले व्यक्तियों की मौत की दर में वर्ष 2005 से ध्यान योग्य कमी आ गयी है और अब आधी हो गयी है। वर्ष 1980 से अब तक एड्स के कारण साढ़े तीन करोड़ से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। राष्ट्रसंघ ने अपनी एक रिपोर्ट में घोषणा की है कि वर्ष 2016 में लगभग 18 लाख लोग एड्स में ग्रस्त हुए थे जबकि वर्ष 2015 में 21 लाख लोग एड्स में ग्रस्त हुए थे और यह संख्या वर्ष 2016 की अपेक्षा तीन लाख कमी की सूचक है। इसी प्रकार वर्ष 2016 में एड्स में ग्रस्त होने वाले लगभग दस लाख लोगों की मृत्यु हो गयी थी जो 2015 की अपेक्षा एक लाख कम थी।
राष्ट्रसंघ की घोषणा के अनुसार वर्ष 2016 में एड्स में ग्रस्त होने वाले 3 करोड़ 67 लोगों में से साढ़े 19 लाख लोगों का पूर्णरूप से उपचार हुआ। इसी प्रकार पूरी दुनिया में वर्ष 2005 में 19 लाख लोग एड्स से मारे गये थे जबकि यह संख्या वर्ष 2016 में 10 लाख हो गयी और अगर यही प्रक्रिया जारी रही तो एड्स की रोकथाम के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो प्रयास किये जा रहे हैं उसके अच्छे परिणाम निकलेंगे। एड्स से मुकाबला करने वाले राष्ट्रसंघ के कार्यक्रम के निदेशक माइकल सेडब कहते हैं” इस समस्या के प्रति विश्व की प्रतिक्रिया अविश्विस्नीय रही है। विश्व ने इस संबंध में लाखों डालर निवेश किया और आज हर उस एक डालर के बदले 17 डालर प्राप्त हुआ है।

राष्ट्र संघ के अधिकारी कहते हैं कि इस प्राणघातक बीमारी से मुकाबले का एक मार्ग लोगों को जागरूक बनाना है। इसी तरह हम राष्ट्रसंघ की रिपोर्टों में पढ़ते व देखते हैं कि एड्स के मुकाबले के लिए जो कार्य किये जा रहे हैं पूरी दुनिया के हर क्षेत्र में यह मुकाबला एक समान नहीं रहा है। मध्यपूर्व, उत्तरी अफ्रीका और इसी प्रकार पूर्वी यूरोप और दक्षिण पूर्वी एशिया में यह बीमारी बढ़ रही है। इस बीमारी के कारण मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में मरने वाले व्यक्तियों की संख्या वर्ष 2010 में 38 प्रतिशत थी जबकि यही संख्या वर्ष 2016 में बढ़कर 48 प्रतिशत हो गयी है। इसी प्रकार सुदूरपूर्व और पूर्वी यूरोप में इस बीमारी से मरने वाले व्यक्तियों की संख्या में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
प्राण घातक बीमारी एड्स के बारे में जो अध्ययन किये गये हैं वे इस बात के सूचक हैं कि वर्ष 1996 में जो लोग HIV से ग्रस्त हैं उनमें लगभग 10 वर्षों तक अधिक जीवित रहने की आशा बढ़ी। एड्स से उपचार के संबंध में जिन दवाओं का प्रयोग करने के लिए कहा जा रहा है उस चीज़ को इस आशा का कारण बताया गया है। इसी प्रकार राष्ट्रसंघ ने घोषणा की है कि HIV से मुकाबले के लिए जिन नई दवाओं के प्रयोग के लिए कहा जा रहा है उनका साइड इफेक्ट भी कम है। इस आधार पर एड्स में ग्रस्त व्यक्ति कम दवाओं का प्रयोग करता है।
यद्यपि यह प्रक्रिया एड्स से मुकाबले के संबंध में आशा जनक रही है परंतु व्यवहारिक रूप से विश्व के निर्धन देशों में एड्स में ग्रस्त केवल 61 लाख लोगों को दवाएं मिल पाती हैं। इन दवाओं की भारी कीमत अदा न कर पाने में अक्षमता इस बात का कारण बनी है कि एड्स में ग्रस्त बहुत से लोग उपचार ही आरंभ न कर पायें। जो आंकड़े प्राप्त हुए हैं उस्के अनुसार जो लोग निर्धनता के कारण एड्स में ग्रस्त होकर मर जाते हैं उनमें से अधिकांश का संबंध अफ्रीका से है और उनमें भी अधिकांश महिलाएं हैं जिनके मरने के बाद उनके बच्चे अभिभावक रहित हो जाते हैं।
एड्स से मुकाबले में संबंध में एक महत्वपूर्ण विषय यह है कि जो लोग एड्स में ग्रस्त होते हैं उनका इस बात से अनभिज्ञ होना है कि वे एड्स में ग्रस्त हो चुके हैं। इस समय पूरी दुनिया में लगभग तीन करोड़ सात लाख लोग HIV में ग्रस्त हैं परंतु उनमें से 40 प्रतिशत एसे लोग हैं जिन्हें पता ही नहीं है कि वे HIV में ग्रस्त हैं। बहुत से लोग उसी समय अवगत हो पाते हैं कि वे HIV में ग्रस्त हैं जब उसके विशेष लक्षण दिखाई देते हैं और यह उनके उपचार के बहुत देर से आरंभ होने का कारण बनता है और साथ ही उपचार भी कठिन हो जाता है और उस समय तक काफी नुकसान पहुंच चुका होता है। इसी कारण विश्व के स्वास्थ्य संगठन समस्त देशों का आह्वान करते हैं कि HIV के परीक्षण को सरल बनाकर वे लोगों की सहायता करें ताकि लोग HIV की स्थिति से अवगत हो सकें। इस दिशा में इस विषय की ओर ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि इस वर्ष लोगों को अपनी स्थिति के प्रति जागरुक बनाने का नारा दिया गया है ताकि HIV के परीक्षण के कार्यक्रम को विस्तृत करके एड्स की प्राणघातक बीमारी से मुकाबले को और सिद्धांतिक रूप दिया जा सके।
इस संबंध में कदम उठाये जाने के लिए समस्त समाजों द्वारा राजनीतिक संकल्प लेने और पूंजी निवेश की आवश्यकता है। राष्ट्रसंघ की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 तक एड्स से मुकाबले के लिए 31 अरब 90 करोड़ डालर के निवेश की आवश्यकता है और 2030 तक 29 अरब 30 करोड़ डालर के निवेश की आवश्यकता है ताकि पूरी दुनिया से एड्स का सफाया किया जा सके और आगामी पीढ़ी को एड्स मुक्त बनाया जा सके और यह महत्वपूर्ण कार्य उसी समय संभव होगा जब विकसित देश अपने हितों से ऊपर उदकर इस समस्या से जूझ रहे निर्धन देशों की सहायता करेंगे।