मणिपुर पहुंचा केन्द्र सरकार का प्रतिनिधिमंडल, जांच शुरु
भारत के गृहमंत्रालय और इंटेलिजेंस ब्यूरो के वरिष्ठ अधिकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल जातीय हिंसा प्रभावित मणिपुर की स्थिति का जायजा लेने, शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने के उद्देश्य से चर्चा करने के लिए सोमवार 22 जनवरी को इंफाल पहुंचा।
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारी प्रत्येक पक्ष द्वारा रखी गई मांगों की एक व्यापक सूची तैयार करने के लिए राज्य सरकार, समुदाय के नेताओं और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श करेंगे।
विवाद का एक प्रमुख मुद्दा प्रशासन को घाटी से अलग करने और मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को हटाने की पहाड़ी जनजाति की मांग है हालांकि केंद्र सरकार ने इन मांगों पर विचार करने से इनकार कर दिया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले हफ्ते राज्य में महिलाओं के प्रभावशाली संगठन ‘मीरा पाइबीज़’ सहित विभिन्न संगठनों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया और मांग की कि केंद्र एकीकृत कमान का प्रभार मुख्यमंत्री को सौंप दे और सुरक्षा सलाहकार और कमान के अध्यक्ष कुलदीप सिंह को हटा दे।
मुख्यमंत्री का नाम उन नामों की सूची से गायब था जो यूनिफाइड कमांड का हिस्सा हैं, जिससे अटकलें लगने लग गईं कि राज्य में संविधान का अनुच्छेद 355 प्रभावी है।
सोमवार को मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने सर्वदलीय बैठक में अफवाहों पर विराम लगाते हुए बताया कि मई में हिंसा शुरू होने के बाद से राज्य में अनुच्छेद 355 प्रभावी है।
सर्वदलीय बैठक में विपक्ष के नेताओं ने जनता के सामने इस बारे में जल्द खुलासा न करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की आलोचना की। मणिपुर कांग्रेस प्रमुख मेघचंद्र सिंह ने कहा, ‘यह केंद्र और राज्य सरकार दोनों की धोखेबाज़ी को दर्शाता है।
गौरतलब है कि भारतीय राजनीतिक इतिहास में कभी भी अनुच्छेद 356 के बिना किसी राज्य पर अनुच्छेद 355 नहीं लगाया गया है।
मालूम हो कि 3 मई 2023 को मणिपुर में मेईतेई और कुकी-ज़ो समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़कने के बाद से अब तक लगभग 200 लोग जान गंवा चुके हैं, सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हुए हैं और 60 हज़ार से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। (AK)
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