स्वतंत्रता प्रभात (5)
कम ही ऐसा होता है कि कोई पीड़ित राष्ट्र क्रांति के लिए साहस करे, और जो राष्ट्र आंदोलन और क्रांति के लिए क़दम बढ़ाते भी हैं तो कम ही ऐसा देखा गया है कि उन्होंने उसे अंजाम तक पहुंचा हो और सरकारों के बदलने के अलावा, क्रांति के आदर्शों और महत्वकांक्षाओं की हिफ़ाज़त की हो। लेकिन ईरान की साहसी जनता की शानदार क्रांति, जो वर्तमान की सबसे लोकप्रिय क्रांतियों में से एक है, एकमात्र ऐसी क्रांति है, जो 43 वर्ष बीत जाने के बाद भी अपने आदर्शों को सुरक्षित रखे हुए है।
ईरान की इस्लामी क्रांति ने अपने अनूठे उदय के साथ एक लंबे ऐतिहासिक पिछड़ेपन और पतन को समाप्त कर दिया। ईरान जो पहलवी और क़ाजार शासनकालों में बहुत ज़्यादा पिछड़ा हुआ और अपमानित था, क्रांति के बाद प्रगति के पथ पर अग्रसर हो गया। ईरानी जनता ने अपनी इच्छा शक्ति और दृढ़ संकल्प से कुख्यात पहलवी शासन का पतन कर दिया, जिसके बाद चौतरफ़ा और वास्तविक प्रगति के लिए रास्ता साफ़ हो गया और युवाओं को मैदान में उतरकर अपनी क्षमताओं के प्रदर्शन का मौक़ा मिला।
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने पहलवी शासनकाल में ईरान के पिछड़ेपन और इस्लामी क्रांति के बाद उसके विकास का उल्लेख करते हुए कहा हैः इस देश में इस्लामी शासन की स्थापना से पहले, हम पूर्ण रूप से एक पिछड़े हुए राष्ट्र थे, एक निर्भर राष्ट्र थे। शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े हुए थे, राजनीतिक क्षेत्र में पिछड़े हुए थे, सामाजिक दृष्टि से भी पिछड़े हुए थे और राजनीतिक जगत में अलग-थलग पड़े हुए थे। आज इस्लामी गणतंत्र के विकास ने दुश्मनों को भी इसका लोहा मानने पर मजबूर कर दिया है। आज हम विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में दुनिया के विकसित देशों की पंक्ति में खड़े हए हैं। इस्लामी राष्ट्र अपने संघर्ष और कड़े प्रयास से इस दौरान, इस्लामी सभ्यता की रूपरेखा निर्धारित कर सकता है, उसकी नींव रख सकता है, उसको अंजाम तक पहुंचा सकता है और उसे मानवता के सामने पेश कर सकता है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने क्रांति की 40वीं वर्षगांठ पर क्रांति का दूसरा क़दम नामक बयान जारी करते हुए महान इस्लामी ईरान के निर्माण के लिए कुछ बुनियादी सिफ़ारिशें पेश की थीं। निसंदेह क्रांति का दूसरा क़दम बयान, ईरानी राष्ट्र और विशेष रूप से युवाओं के लिए एक नया संदेश था, वास्तव में यह स्व-निर्माण, समाजीकरण और सभ्यता के दूसरे चरण का एक चार्टर है। दर असल यह दूसरा क़दम क्रांति को उसके महान आदर्शः नई इस्लामी सभ्यता की स्थापना और बारहवें इमाम के शासनकाल की तैयारी में मदद करेगा।
नई इस्लामी सभ्यता की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए अयातुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई कहते हैं: नई इस्लामी सभ्यता में आध्यात्मिकता, भौतिकवाद और नैतिकता के साथ होती है और आध्यात्मिकता भौतिक जीवन की प्रगति के साथ होती है। इसी रास्ते पर आगे बढ़ते हुए नई इस्लामी सभ्यता मुस्लिम देशों के लोगों को क्रांति के आदर्शों और मूल्यों से परिचित कराएगी। इसके लिए मुस्लिम जगत और इस्लाम के विद्वानों को ख़ुद को नई इस्लामी सभ्यता के सिद्धांतों का मुख्य प्रचारक समझना चाहिए और उसके लिए गंभीरता से प्रयास करने चाहिए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता, नई इस्लामी सभ्यता का उल्लेख करते हुए उसे दो भागों में बांटते हैं। पहला भाग वह मुल्य हैं, जिन्हें आज हम अपने देश के विकास के लिए ज़रूरी समझते हैं। विज्ञान, आविष्कार, उद्योग, राजनीति, अर्थव्यवस्थआ, राजनीतिक और सैन्य संप्रभुता, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा, प्रचार और प्रचार के उपकरण सभी सभ्यता के उपकरण हैं। दबावों, धमकियों और प्रतिबंधों के बावजूद, ईरानी राष्ट्र ने इन क्षेत्रों में उच्च स्थान प्राप्त किया है।
उनकी नज़र में सभ्यता का मुख्य भाग, हमारे जीवन को रूप देने वाली जीवन शैली है, जैसे कि परिवार, विवाह शैली, आवास का प्रकार, कपड़ों का स्टाइल, उपभोग आदर्श, भोजन का प्रकार, खाना पकाने का तरीक़ा, मनोरंजन, व्यापार, काम, कार्य स्थल पर व्यवहार का तरीक़ा, यूनिवर्सिटी में किया गया व्यवहार, स्कूल में किया जाने वाला व्यवहार, मीडिया व्यवहार, दोस्तों के साथ व्यवहार, दुश्मनों के साथ व्यवहार, अजनबी के साथ व्यवहार सभ्यता के ऐसे मौलिक मूल्य हैं कि जो इंसान की जीवन शैली का निर्धारण करते हैं। इन्हीं मूल्यों और शिक्षाओं के आधार पर ईश्वरीय और वास्तविक राष्ट्र की स्थापना होती है।
क़ुराने मजीद के अनुसार, भौतिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों में विकास को उस वक़्त सभ्यता माना जाता है, जब कोई समाज और उसके सदस्य ईश्वरीय मार्ग पर अग्रसर होते हैं। इसीलिए पैग़म्बरे इस्लाम ने अपना उद्देश्य, एकेश्वरवाद का प्रचार बताया था। ईश्वरीय दूत की पहचान भी एकेश्वरवाद की पहचान का ही हिस्सा है। इसी से एकता और इस्लामी सभ्यता की पहचान भी हासिल होती है। पैग़म्बरे इस्लाम ने एकता और इस्लामी सभ्यता की नींव रखी और सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीति और आर्थिक परिवर्त किए, जिससे बहुत ही थोड़े समय में इस्लाम धर्म ने एक महान वैश्विक सभ्यता की स्थापना कर दी। एकेश्वरवादी उम्मत और इस्लामी सभ्यता अल्लाह के शासन के आधार पर स्थापित होती है। वरिष्ठ नेता इस बात की पुष्टि करते हुए कहते हैं कि जो समाज एकेश्वरवाद की शिक्षा को अपनी बुनियाद बनाता है, वह उन सभी अच्छाईयों को प्राप्त करता है, जो एक महान और व्यापक सभ्यता का निर्माण करती हैं। ***
क़ुराने करीम के मुताबिक़, दुनिया में दो तरह की सभ्यताएं हैं, एक का नेतृत्व ईश्वर के प्रतिनिधि करते हैं, तो दूसरे का नेतृत्व शैतान के प्रतिनिधि करते हैं। जैसा कि क़ुरान के सूरए बक़रा की 257वीं आयत में ज़िक्र हैः ईश्वर उन ईमान लाने वाले लोगों का मित्र है, जिन्हें वह अज्ञानता के अंधेरे से निकालकर प्रकाश की दुनिया में ले गया और जिन्होंने अविश्वास का रास्ता चुना, उनके दोस्त शैतान और राक्षस हैं, जो उन्हें प्रकाश की दुनिया से पथभ्रष्टता के अंधेरे में धकेल देते हैं। यह लोग नरक में जायेंगे और वहां हमेशा रहेंगे। इस्लामी दृष्टिकोण से वास्तविक सभ्यता, अंधेरों से दूर होना और प्रकाश में प्रवेश करना है, जब इंसान प्रकाश तक पहुंचता है और प्रकाशमय हो जाता है तो वह सभ्य भी हो जाता है। क़ुरान के वैश्विक दृष्टिकोण के अनुसार, दुनिया में ईश्वर तक जाने के लिए सिर्फ़ एक ही मार्ग है, जो इस्लामी उम्मत की एकता और आधुनिक इस्लामी सभ्यता पर आधारित है।
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आधुनिक इस्लामी सभ्यता की स्थापना के लिए मुसलमानों की ज़िम्मेदारी का ज़िक्र करते हुए कहते हैः आज इस्लामी जगत की ज़िम्मेदारी है कि वह इस दुनिया में स्वयं इस्लाम और पैग़म्बर की नई जान फूंके, नया वातावरण उत्पन्न करे और नया रास्ता खोल दे। इस चीज़ को कि जिसकी हमें अपेक्षा है, नई इस्लामी सभ्यता कहा जाता है। हमें मानव समाज के लिए आधुनिक इस्लामी सभ्यता की स्थापना का प्रयास करना चाहिए। इसका मतलब दूसरे इलाक़ों पर क़ब्ज़ा करना नहीं है। इसका अर्थ दूसरे राष्ट्रों पर हमला करना नहीं है, इसका मतलब दूसरे राष्ट्रों पर अपनी सभ्यता और संस्कृति थोपना नहीं है, इसका मतलब है कि ईश्वर के उपहार को दूसरों राष्ट्रों के सामने पेश करना, ताकि वे अपनी इच्छा से, अपने चयन से, अपनी समझ से सही रास्ते का चुनाव कर सकें। आज विश्व की बड़ी शक्तियों ने दूसरे देशों को जिस रास्ते पर डाल दिया है, वह ग़लत रास्ता है, यह है आज हमारी ज़िम्मेदारी।
आज, ईरान की इस्लामी क्रांति के उदय और उसकी मज़बूती के साथ, इस्लामी दुनिया में ईश्वरीय शासन और सभ्यता की स्थापना के लिए काफ़ी संभावनाएं हैं। ईरान की इस्लामी क्रांति, मतभेदों पर ध्यान देने के बजाए समानताओं पर अधिक ध्यान देती है। यही कारण है कि क्रांति के वरिष्ठ नेता के रूप में अयतुल्लाह ख़ामेनई कहते हैं: एकता एक राजनीतिक और रणनीतिक कार्य नहीं है, बल्कि एकता की आवश्यकता पर विश्वास हार्दिक और धार्मिक है। इस्लामी जगत में एकजुटता के लिए सबसे पहले क़दम के तौर पर मुसलमानों को आपस में और उनकी सरकारों को मतभेद उत्पन्न नहीं करने चाहिए और एक दूसरे पर हमला नहीं करना चाहिए और एक दूसरे को नुक़सान नहीं पहुंचाना चाहिए, दूसरे यह कि दुश्मन के खिलाफ़ एकजुट रहना चाहिए और एक नई इस्लामी सभ्यता की स्थापना के लिए विज्ञान, धन, सुरक्षा और राजनीतिक क्षेत्र में एक दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए।
ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता को 43 साल हो गए हैं। हालांकि दुश्मन शुरूआत से ही इस्लामी क्रांति के ख़िलाफ़ झूठे प्रचार और साज़िशों में व्यस्त हो गया था, लेकिन उसकी समस्त साज़िशों पर पानी फिर गया। इस्लामी क्रांति के चाहने वाले दुनिया भर में उसकी ओर आशा भरी नज़रों से देख रहे हैं, और इस्लामी व्यवस्था पूर्ण रूप से उनकी आशाओं पर खरी उतर रही है।