स्वतंत्रता प्रभात 8
(last modified Wed, 09 Feb 2022 12:41:39 GMT )
Feb ०९, २०२२ १८:११ Asia/Kolkata

ईरान की इस्लामी क्रांति के आरंभ से लेकर आज तक उसका एक नारा “न पूरब न पश्चिम” रहा है और गत 43 वर्षों में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में इसे व्यवहारिक बनाने का प्रयास किया गया है।

जिन क्षेत्रों में इस नारे के प्रभाव को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है उनमें से एक ज्ञान का क्षेत्र है। मिसाल के तौर पर एक समय था जब दूसरे देशों के डाक्टर ईरान में बहुत थे पर आज आपको ईरान में कोई विदेशी डाक्टर नहीं दिखाई देगा। उसकी वजह यह है कि ईरान ने इस क्षेत्र में भी ध्यान योग्य प्रगति कर ली है और अब दूसरे बहुत से देशों के बीमार उपचार के लिए ईरान आते हैं।

विदेशों से जो लोग इलाज के लिए ईरान आते हैं उसकी दो मुख्य वजहें हैं एक वजह यह है कि पश्चिमी व यूरोपीय देशों की अपेक्षा ईरान में उपचार सस्ता पड़ता है और दूसरी वजह यह है कि ईरान ने चिकित्सा के क्षेत्र में ध्यान योग्य प्रगति कर ली है और ईरानी डाक्टर बहुत अच्छा इलाज करते हैं। दूसरे देशों से इलाज के लिए ईरान आना इस बात का जीवंत प्रमाण है।

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आज ईरान विभिन्न क्षेत्रों में हज़ारों डाक्टरों और इंजीनियों आदि का प्रशिक्षण कर रहा है। दूसरे शब्दों में ईरान प्रशिक्षण केन्द्र में परिवर्तित हो गया है। रोचक बात यह है कि चार दशकों से अधिक समय से ईरान को विभिन्न प्रकार के कड़े प्रतिबंधों का सामना है और ईरान ने विभिन्न क्षेत्रों में जो उल्लेखनीय व ध्यानयोग्य प्रगतियां की हैं उनका संबंध इन्हीं प्रतिबंधों के काल से है। मिसाल के तौर पर आज दवा बनाने के क्षेत्र में ईरान उल्लेखनीय प्रगति कर चुका है।

ईरान में दवा व औषधि निर्माण का अतीत 80 साल पुराना है परंतु इस क्षेत्र में ईरान ने जो उल्लेखनीय प्रगति की है उसका संबंध इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद के वर्षों से है। इराक द्वारा ईरान पर थोपे गये आठ वर्षीय युद्ध के दौरान ईरान ने दवा बनाने के 5 से 6 कारखानों की बुनियाद रखी और इन कारखानों में 34 दवाओं का निर्माण हो रहा है। ईरान ने चिकित्सा और शोध के क्षेत्र में जो उल्लेखनीय प्रगति की है वह इस बात का कारण बनी है कि दुनिया के विभिन्न संचार माध्यमों, समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में ईरान की प्रगति से संबंधित खबरें प्रकाशित होती रहती हैं। इस संबंध में अलमानिटर साइट लिखती है वर्ष 1979 में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद से ईरान ने बहुत से क्षेत्रों में प्रशंसनीय कदम उठाये और प्रगतियां की हैं।

ईरान की प्रगति का एक कारण यह है कि जिन लोगों के हाथों में देश के संचालन की बागडोर है वे अच्छा कार्यक्रम बनाते और उस पर अमल करते हैं। अगर देश के ज़िम्मेदार न कार्यक्रम बनाते और न उस पर अमल करते तो ईरान आज इतनी प्रगति न करता। आज अमेरिका और दूसरी वर्चस्ववादी शक्तियां ईरान से जो शत्रुता कर रही हैं उसकी एक बहुत बड़ी वजह यह है कि वह इस बात को बहुत अच्छी तरह समझ रही हैं कि अगर ईरान इसी तरह से प्रगति करता है तो वह दूसरे देशों के लिए आदर्श बन जायेगा और वे न केवल ईरान बल्कि दूसरे देशों को भी अपनी वर्चस्ववादी नीतियों को मानने पर बाध्य नहीं कर सकतीं।

एक समय था जब ईरान पर कंटीले तार खरीदने पर प्रतिबंध था पर आज वही ईरान है जो बैलेस्टिक मिसाइलों का भी निर्माण कर रहा है। ईरान की प्रगति दुश्मनों की आंखों की किरकिरी बनी हुई है।

दुश्मन एसा ईरान नहीं देखना चाहते हैं जो अपने पैरों पर खड़ा हो। वह एसा ईरान चाहते हैं जो उनका मोहताज हो। ईरानी अधिकारी व ज़िम्मेदार इस बात को बहुत अच्छी तरह समझ गये हैं कि दुश्मन कमज़ोर ईरान चाहते हैं ताकि वे अपनी वर्चस्ववादी मांगों, इच्छाओं और दृष्टिकोणों को आसानी से ईरान पर थोप सकें और ईरान ने 43 साल पहले इस बात को समझ लिया था कि दुश्मन किस प्रकार का ईरान चाहते हैं। अगर ईरान दुश्मनों की चालों और इच्छाओं को न समझता तो विभिन्न क्षेत्रों में इतनी प्रगति न करता।

आज जिन देशों ने अमेरिका, पश्चिम और यूरोपीय देशों को अपनी बैसाखी बना रखी है उनका अंजाम भी आप देख सकते हैं। सउदी अरब, संयुक्त अरब इमारात और बहरैन जैसे देशों को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। इन देशों के अंदर अमेरिका, पश्चिम और यूरोपीय देशों के खिलाफ ज़बान खोलने तक की हिम्मत नहीं है। अमेरिका और पश्चिमी व यूरोपीय देशों ने अरब देशों को ज़रूरत की चीज़ों देकर उन्हें अपना दुमछल्ला बना रखा है।

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इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई हमेशा विभिन्न क्षेत्रों में देश की प्रगति पर बल देते रहते हैं। कुछ लोग यह सोचते हैं कि केवल पश्चिम के ज्ञान और तकनीक पर निर्भर पर भरोसा करके और उसी मार्ग पर चलकर प्रगति की जा सकती है जिस पर पश्चिम चल रहा है जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। आज रूस, चीन, उत्तरी कोरिया और ईरान जैसे देशों ने विभिन्न क्षेत्रों में जो प्रगतियां की हैं और कर रहे हैं क्या वे पश्चिम का अनुसरण कर रहे हैं? इन देशों ने अपने अमल से साबित कर दिया है कि प्रगति के लिए पश्चिमी व यूरोपीय देशों पर निर्भर होने की कोई ज़रूरत नहीं है और जिस देश ने अपनी प्रगति को पश्चिमी देशों की प्रगति पर निर्भर कर लिया वह देश पंगु व पिछलग्गू हो गया।

ईरान में बहुत से विचारकों, लोगों, बुद्धिजीवियों और विद्वानों का मानना है कि पश्चिमी ज्ञान व तकनीक अपने साथ पश्चिमी संस्कृति भी लिए हुए है अतः विकास के लिए पश्चिमी शैली से हटकर दूसरी शैली अपनाई जानी चाहिये जबकि इस संबंध में एक अन्य दृष्टिकोण भी है और वह यह है कि पश्चिम का जो ज्ञान व तकनीक है वह इंसान की बुद्धि व सोच का परिणाम है। पश्चिम की संस्कृति पर ध्यान दिये बिना उनके ज्ञान व तकनीक से लाभ उठाया जा सकता है और उनका जो ज्ञान व तकनीक इस्लामी शिक्षाओं से मेल नहीं खाता है उनकी अनदेखी कर देनी चाहिये।

यहां इस बिन्दु का उल्लेख ज़रूरी है और वह यह है कि आज बहुत से क्षेत्रों में ज्ञान व तकनीक को इस्लामी व ईरानी रूप में पेश किया जा रहा है। ईरानी वैज्ञानिकों ने अपने अमल व कठिन परिश्रम से यह सिद्ध कर दिया है कि स्थानीय व घरेलू संभावनाओं का प्रयोग करके देश और समाज की ज़रूरतों को पूरा करने के अलावा देश को विकास के शिखर पर पहुंचाया जा सकता है।

जिन चीज़ों में ईरान ने ध्यान योग्य प्रगति की है उनमें से एक परमाणु तकनीक है। परमाणु तकनीक वह तकनीक है जो दुनिया के कुछ ही गिने चुने देशों के पास है और इसके बहुत अधिक फायदे हैं। रोचक बात यह है कि जहां परमाणु तकनीक का लाभ इंसानों को खत्म करने के लिए किया जा सकता है वहीं इसका प्रयोग इंसानों की आबादी और उनकी भलाई के लिए किया जा सकता है। अमेरिका ने परमाणु तकनीक का ग़लत प्रयोग किया और उसने दो लाख से अधिक जापानियों को मौत के घाट उतार दिया। यह परमाणु तकनीक का एक विनाशकारी प्रयोग है जबकि इंसानों की भलाई के लिए उसके अनगिनत लाभ हैं।

इस्लामी गणतंत्र ईरान परमाणु तकनीक से शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए लाभ उठाना चाहता है और इस बात की पुष्टि परमाणु ऊर्जा की अंतरराष्ट्रीय एजेन्सी IAEA अपनी बारमबार की रिपोर्टों में कर चुकी है और अभी तक इस बात का कोई छोटा सा भी प्रमाण नहीं मिला है जो इस बात का सूचक हो कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए नहीं है। ईरान ने इस क्षेत्र में जो प्रगति की है उसका आधार देश की संभानायें और ईरानी वैज्ञानिक हैं।

परमाणु तकनीक में ईरान की प्रगति ईरान की इस्लामी क्रांति के दुश्मनों को बहुत खल व अखर रही है। ईरान की प्रगति इस्लामी क्रांति के दुश्मनों को आंखों की किरकिरी बन हुई है। वे ईरान को प्रगति करने से रोकने के लक्ष्य से हमेशा निराधार दावे करते रहते हैं। किसी प्रकार के प्रमाण बिना यह दावा करते हैं कि ईरान परमाणु हथियार बनाने व प्राप्ति का प्रयास कर रहा है जबकि ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई फत्वा दे चुके हैं कि सामूहिक विनाश के हथियारों को बनाना और उन्हें रखना हराम है और ईरानी अधिकारी बारमबार यह कहते रहते हैं कि ईरान की रक्षा नीति में सामूहिक विनाश के हथियारों का कोई स्थान नहीं है।

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यहां इस बिन्दु का उल्लेख ज़रूरी है कि ईरान की इस्लामी व्यवस्था के दुश्मन भी इस बात को बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण लक्ष्यों के लिए है। सवाल यह है कि जब वे जानते हैं कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण लक्ष्यों के लिए है तो इसके खिलाफ निराधार दावे क्यों करते हैं? उसका जवाब स्पष्ट है। ईरान परमाणु तकनीक हासिल करके उन देशों की पंक्ति में शामिल हो गया है जो इस तकनीक से संपन्न हैं। वर्चस्ववादी देशों की एक नीति, दूसरे देशों विशेषकर तीसरी दुनिया के देशों को पीछे रखना है और उसकी वजह यह है कि जब दुनिया के देश पीछे रहेंगे तो उन पर अपने वर्चस्ववादी दृष्टिकोणों व मांगों को थोपना आसान रहेगा। दूसरे शब्दों में पीछे रहने वाले देशों को अपना पिछलग्गू बनाना, उनका शोषण और उनके प्राकृतिक स्रोतों की लूट खसोट आसान रहेगी पर अगर कोई देश प्रगति कर देगा तो उसका शोषण आसान नहीं होगा।

यहां एक सवाल यह है कि अगर अमेरिका स्वंय को एक ज़िम्मेदार देश समझता है और उसे ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर चिंता है तो उसे दूसरे देशों के परमाणु हथियारों पर क्यों चिंता नहीं है? उसका भी जवाब स्पष्ट है। पहली बात तो यह है कि अमेरिका एक ज़िम्मेदार देश नहीं है अगर वह ज़िम्मेदार देश होता तो जापान के दो शहरों नागासाकी और हीरोशीमा पर परमाणु बमबारी करके दो लाख से अधिक लोगों को मौत के घाट न उतारता। यही नहीं अफगानिस्तान, इराक और यमन जैसे देशों में उसके क्रिया- कलाप इस बात के बेहतरीन प्रमाण व सबूत हैं कि वह कितना बड़ा ज़िम्मेदार है।

दूसरी बात यह है कि अगर उसे वास्तव में परमाणु हथियारों से चिंता होती तो उसे ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, रूस, भारत और पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर भी चिंता होती परंतु कभी भी वह इन देशों के परमाणु हथियारों पर कोई चिंता नहीं जताता। यही नहीं अवैध जायोनी शासन के पास 200 से अधिक परमाणु वार हेड्स हैं और अमेरिका ने आज तक एक बार भी इन हथियारों के प्रति चिंता नहीं जताई। चिंता जताना तो बहुत दूर की बात एक बार उनका नाम तक नहीं लेता।

बहरहार ईरान शांतिपूर्ण लक्ष्यों के लिए परमाणु तकनीक हासिल करना चाहता है और परमाणु तकनीक से शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए लाभ उठाना हर देश का अधिकार है और ईरान को इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

 

 

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