Jul ०८, २०२३ १४:३१ Asia/Kolkata
  • ईरान पर लगी पाबंदियां हटाए अमरीकाः संयुक्त राष्ट्र संघ

संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव की राजनैतिक मामलों की सहयोगी ने सुरक्षा परिषद की बैठक में कहा कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम की सिविलियन प्रवृत्ति को सुनिश्चित करने का सबसे उपयोगी उपाय जेसीपीओए है और अमरीका को चाहिए कि ईरान पर लगी पाबंदियां हटाए।

सुरक्षा परिषद की बैठक प्रस्ताव 2231 को लागू किए जाने की स्थिति की समीक्षा के लिए हुई थी जो परमाणु समझौते से संबंधित है। अंडर जनरल सेक्रेटरी फ़ार पोलिटिकल अफ़ेयर्ज़ रोज़मैरी डी कार्लो ने बैठक में कहा कि मैंने दिसम्बर 2022 में परिषद में रिपोर्ट पेश की थी और उस समय अमरीका सहित परमाणु डील में शामिल सभी सदस्यों ने सहमति जताई थी कि परमाणु समझौते में वापसी ईरान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े मुद्दों के समाधान का सबसे उचित मार्ग है। मगर छह महीने की बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला। उन्होंने कहा कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े मामलों को हल करने का प्रभावी तरीक़ा केवल डिप्लोमैसी है। ज़रूरी है कि सारे पक्ष तत्काल प्रभावी रूप से वार्ता शुरू करें और बाक़ी बचे मसलों पर सहमति बनाएं। डि कार्लो ने कहा कि इसी संदर्भ में मैंने अमरीका के सामने संयुक्त राष्ट्र महासचिव का यह अनुरोध पेश किया कि वो ईरान पर लगे उन प्रतिबंधों को हटाए जो परमाणु समझौते के तहत हटाए जाने वाले थे। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ़ से अमरीका के सामने यह मांग दोहराई जाएगी कि तेल के व्यापार के लिए इस्लामी गणराज्य ईरान को जो छूट दी गई थी वो दोबारा दी जाए।

मई 2018 में अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने परमाणु समझौते से बाहर निकलने का एलान किया था। इसके बाद ट्रम्प सरकार ने इस्लामी गणराज्य ईरान पर प्रतिबंध लगा दिए। कई देशों ने ट्रम्प के फ़ैसले का विरोध किया मगर ट्रम्प ने ईरान पर बेहद कड़े प्रतिबंध लगाए और जहां तक संभव था उन्होंने परमाणु डील का उल्लंघन किया। ट्रम्प सरकार यह दावा कर रही थी कि ईरान पर अत्यंत कठोर प्रतिबंध लगाकर उसे झुकाया जा सकता है और ग़ैर क़ानूनी मांगें मानने पर उसे मजबूर किया जा सकता है। परमाणु डील से अमरीका के बाहर निकल जाने के बाद एक साल तक ईरान परमाणु समझौते का पालन करता रहा मगर उसके बाद ईरान ने अपनी प्रतिबद्धताओं को कम करना शुरू कर दिया। 5 जनवरी 2020 को ईरान ने साफ़ कर दिया कि आप्रेशनल फ़ेज़ में अब कोई भी सीमितता बाक़ी नहीं है।

अमरीका के मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन ने सितम्बर 2020 में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान कहा कि डोनल्ड ट्रम्प ने परमाणु समझौते से बाहर निकलकर बड़ी ग़लती की है और उनका यह फ़ैसला अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हितों के ख़िलाफ़ है क्योंकि इस फ़ैसले के नतीजे में अमरीका व्यवहारिक रूप से अलग थलग पड़ गया है। मगर जनवरी 2021 में अमरीका की सत्ता संभालने के बाद ही ईरान पर ट्रम्प के कार्यकाल वाला दबाव जारी रखा और यह रट लगानी शुरू कर दी कि पहले ईरान परमाणु समझौते में वापस लौटे तब अमरीका परमाणु डील पर अमल करेगा।

अमरीका के राजनैतिक टीकाकार जोज़फ़ सीरेन्सियन का कहना है कि जो बाइडन परमाणु डील के मामले में ट्रम्प की हारी हुई लड़ाई को ही लड़ते जा रहे हैं। अगर बाइडन अपनी नीति में सुधार नहीं करते तो परमाणु समझौते के ख़त्म हो जाने का ख़तरा बना रहेगा। बाइडन के इस तर्कहीन रवैए के जवाब में इस्लामी गणराज्य ईरान ने बहुत तर्कसंगत रणनीति अपनाई। ईरान ने दो टूक शब्दों में कहा कि ईरान उस समय परमाणु समझौते में वापस आएगा जब अमरीका ग़ैर क़ानूनी पाबंदियां हटा लेगा और वो भी सिर्फ़ क़ागज़ पर नहीं बल्कि अमली तौर पर और ईरान इसका मूल्यांकन करने के बाद समझौते में वापसी करेगा।

जो बाइडन वैसे तो कई बार यह बयान दे चुके हैं कि परमाणु समझौते में वापसी करना चाहते हैं लेकिन साक्ष्यों और वाशिंग्टन के स्टैंड से लगता है कि अमरीका परमाणु समझौते में वापसी का इरादा नहीं रखता।

आस्ट्रेलिया की पत्रकार  कैटलीन जान स्टोन कहती हैं कि ईरान के मामले में जो बाइडन की पालीसी ट्रम्प की ही पालीसी है। जब तक अमरीका ईरान के हितों पर ध्यान नहीं देगा उस समय तक परमाणु समझौते के बहाली की कोई संभावना नहीं है। रोचक बात यह है कि अमरीका परमाणु समझौते से निकल चुका है और वापस आना भी नहीं चहता मगर यह एलान भी नहीं कर रहा है कि परमाणु समझौता ख़त्म हो चुका। इस बीच संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ़ से हालिया बयान यह बताने के लिए काफ़ी है कि विश्व समुदाय ईरान के परमाणु समझौते के बारे में क्या सोचता है।

हमारा व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए क्लिक कीजिए

हमारा टेलीग्राम चैनल ज्वाइन कीजिए

हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब कीजिए!

ट्वीटर पर हमें फ़ालो कीजिए 

फेसबुक पर हमारे पेज को लाइक करें

टैग्स