Nov २३, २०२३ १४:१६ Asia/Kolkata

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बुधवार की सुबह इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में हांग्जो एशियन गेम्ज़ और पैरा एशियन गेम्ज़ में मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों और खेल के क्षेत्र में सक्रिय लोगों, पूर्व चैंपियनों और ख़िलाड़ियों से मुलाक़ात में ग़ज़्ज़ा के हालात की ओर इशारा करते हुए कहा कि ज़ायोनी शासन अपने तमाम अपराधों के बावजूद इस शर्मनाक हार की भरपाई नहीं कर सका और भविष्य में भी नहीं कर पाएगा।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता हांग्जो एशियाई खेलों में देश का नाम रौशन करने वाले खिलाड़ियों और कोचेज़ का शुक्रिय अदा किया और खेल के मैदानों में उनके सम्मानजनक रवैये को ईरानी राष्ट्र की उल्लेखनीय छवि को पेश करने वाला बताया। उन्होंने अधिकारियों की ओर से स्पोर्ट्स चैंपियनों की ज़िन्दगी की ज़रूरतों का ख़याल रखे जाने की ज़रूरत पर बल देते हुए ग़ज़्ज़ा की स्थिति की खेल के एक शब्द के ज़रिए व्याख्या करते हुए कहा कि अलअक़सा तूफ़ान आप्रेशन के ज़रिए ज़ायोनी सरकार को तकनीकी झटका लगा और हमास के हाथों नॉक आउट हो गई। सर्वोच्च नेता ने कहा कि हमास ने व्यापक संसाधनों से लैस एक सरकार और देश के रूप में नहीं बल्कि प्रतिरोधक बल की हैसियत से सभी संसाधनों वाले अवैध ज़ायोनी शासन को नॉक आउट कर दिया। उन्होंने कहा कि ज़ायोनी शासन अपने सारे अपराधों के बावजूद, इस भारी पराजय की भरपाई नहीं कर सका और आगे भी नहीं कर पाएगा। इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने कहा कि ज़ायोनी सरकार को यह जान लेना चाहिए कि उसकी मिली शर्मनाक हार की भरपाई इस तरह के उसके पाश्विक हमलों से नहीं होगी और वह यह भी जान ले कि इस ज़ुल्म और बर्बरता का जवाब उसे ज़रूर मिलेगा। उन्होंने कहा कि इस तरह की भीषण बमबारी से अवैध ज़ायोनी शासन की उम्र और कम हो रही है।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने पहले ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी शासन की हार को एक वास्तविक्ता बताया था और इस बात पर ज़ोर दिया था कि ज़ायोनी शासन अब तक ग़ज़्ज़ा में युद्ध नहीं जीत पाया है और भविष्य में भी नहीं जीत पाएगा। अब यह स्पष्ट हो गया है कि फ़िलिस्तीनी जनता के प्रतिरोध का परिणाम 47 दिनों के बाद आया है और ज़ायोनी शासन अंगिनत अपराधों के बाद ग़ज़्ज़ा में हमास की शर्तों के अनुसार युद्धविराम स्थापित करने के लिए सहमत हो गया है। यह अस्थायी संघर्ष विराम तब हुआ जब इस्राईली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने किसी भी समझौते को मानने से इनकार कर दिया था और उन्होंने कम समय में ग़ज़्ज़ा पट्टी पर कब्ज़ा करने में सक्षम होने का दावा किया था। बैतुल मुक़द्दस पर अवैध क़ब्ज़ा करने वाले शासन ने इसी तरह यह भी दावा किया था कि वह 10 दिनों में हमास और इस्लामी जिहाद का नामो-निशान मिटा देगा। युद्धविराम समझौते के अनुसार, दोनों पक्षों की झड़पें, ग़ज़्ज़ा के सभी क्षेत्रों में ज़ायोनी सेना की सैन्य गतिविधियां, साथ ही इस क्षेत्र में इस शासन के बख़्तरबंद वाहनों की आवाजाही रोक दी जाएगी। साथ ही, 19 साल से कम के इस्राईल के 50 बधंको को फ़िलिस्तीन के 19 साल से कम 150 महिलाओं और बच्चों के मुक़ाबले में आज़ाद किया जाएगा। इस समझौते के प्रावधानों से पता चलता है कि ज़ायोनी शासन को इस युद्धविराम में कुछ हासिल नहीं हुआ है, क्योंकि सभी ज़ायोनी क़ैदियों की रिहाई के बिना, उसे प्रतिरोध की शर्तों को स्वीकार करने और सैन्य हमलों को रोकने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

इस सच्चाई से अब कोई इंकार नहीं कर सकता है कि ग़ज़्ज़ा युद्ध के इस इस चरण तक ज़ायोनी शासन को भारी सैन्य, राजनीतिक और आर्थिक नुक़सान हुआ है। घरेलू मोर्चे पर, नेतन्याहू अल-अक़्सा तूफ़ान ऑपरेशन के सामने विफलता के पहले आरोपी हैं और ग़ज़्ज़ा पर क़ब्ज़ा करने और हमास को नष्ट करने का उनका सपना, डरावने सपने में बदल चुका है। मरने वाले ज़ायोनियों की संख्या में लगातार वृद्धि ने उनके लिए ग़ज़्ज़ा में युद्ध जारी रखना भी कठिन बना दिया है। उदाहरण के लिए, केवल पिछले 48 घंटों की झड़पों में, 30 ज़ायोनी सैनिक, अधिकारी और कमांडर मारे गए, जिनमें ज़ायोनी सेना की 298वीं ब्रिगेड का कमांडर तामीर येदाई भी शामिल था। इसके अलावा, आतंकी ज़ायोनियों के अपराधों को रोकने और फ़िलिस्तीनियों का समर्थन करने के लिए विश्व जनमत का दबाव भी बढ़ रहा है, जिससे कि अमेरिका और ब्रिटेन सहित इस नक़ली और आतंकी शासन के सहयोगी देशों में भी फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध को जनता का आपार समर्थन मिल रहा है और यह समर्थन हर दिन व्यापक होता जा रहा है। दूसरी ओर, ज़ायोनी शासन की आर्थिक स्थिति भी अपनी सबसे ख़राब ऐतिहासिक हालत में है। इस शासन का पर्यटन उद्योग पूरी तरह से नष्ट हो गया है और ज़ायोनियों के रिवर्स माइग्रेशन ने कई व्यवसायों को भी बंद कर दिया है।

इसलिए, ज़ायोनी शासन न केवल ग़ज़्ज़ा युद्ध में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल रहा है बल्कि उसे सभी राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक क्षेत्रों में जहां भारी नुक़सान उठाना पड़ा है वहीं शर्मनाक हार का भी सामना करना पड़ा है। साथ ही अब फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध की शर्तों को स्वीकार करके उसने इस युद्ध में एक और विफलता स्वीकार कर ली है। इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने खिलाड़ियों के साथ मुलाक़ात में ज़ायोनियों को मिली शर्मनाक हार की ओर इशारा करते हुए कहा कि वह अब इस करारी हार के बोझ से और शर्मिंदगी से बाहर निकलने के लिए ग़ज़्ज़ा के अस्पतालों और स्कूलों पर हमले करके अपनी ताक़त दिखा रहा है। उन्होंने कहा कि यह काम उस खिलाड़ी की हरकत की तरह है जो मैदान में हार जाने के बाद विरोधी टीम के प्रशंसकों पर हमला करता है, उन्हें गालियां देता है और उनसे मारपीट करता है। (RZ)

 

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