May ०४, २०२४ १५:०३ Asia/Kolkata
  • मैक कार्थीइज़्म के घुटन भरे माहौल की ओर लौट रहा है अमरीका, अभिव्यक्ति की आज़ादी और आलोचना की स्वतंत्रता पर सीधा हमला
    मैक कार्थीइज़्म के घुटन भरे माहौल की ओर लौट रहा है अमरीका, अभिव्यक्ति की आज़ादी और आलोचना की स्वतंत्रता पर सीधा हमला

पार्स टुडे- अमरीका में इस समय राजनैतिक और मीडिया संस्थान जिनमें लिबरल और कंज़रवेटिव दोनों प्रकार के संस्थान शामिल हैं उन लोगों और संस्थाओं पर सीधे हमले कर रहे हैं जो अमरीका की विदेश नीति की आलोचना में ज़बान खोलना चाहते हैं। शांति के समर्थकों से विरोध और अभिव्यक्ति की आज़ादी छीनी जा रही है।

युनिवर्सिटी एंटी सेमीटिज़्म के बारे में अमरीकी प्रतिनिधि सभा के ज़रिए जो जांच कराई जा रही है वो साफ़ साफ़ मैक कार्थीइज़्म के दौर की याद दिलाती है। वह दौर जिसमें सबकी निगाहें सेनेटर मैक कार्थी के टीवी प्रसारण पर केन्द्रित रहती थीं।

यह प्रोग्राम जो एक प्रकार से तफ़तीश की प्रक्रिया पर आधारित होता था अमरीका में अभिव्यक्ति की आज़ादी के समर्थकों की कड़ी आलोचना का केन्द्र बन गया। इन प्रोग्रामों या मीटिंगों में युनिवर्सिटियों के उन चांसलरों की सेनेटरों के ज़रिए ग्रिलिंग की जाती थी जिन पर कम्युनिस्ट होने का आरोप होता था और फिर उन्हें त्यागपत्र देने पर मजबूर कर दिया जाता था।

मैक कार्थीइज़्म दरअस्ल सेंसर का एक अप्रत्यक्ष तरीक़ा है। जिसमें किसी विचार या विचारधारा को अपराध तो नहीं घोषित किया गया हो मगर उसको इतनी शिद्दत के साथ नकार दिया गया हो कि किसी के लिए भी इस विचार को बयान करना इतना महंगा हो जाए कि कोई इसके बारे में सोचने की भी हिम्मत न कर सके।  वर्ष 1946 से 1956 के बीच का समय मैक कार्थीइज़्म के चरम का दौर है। हाउस आफ़ रिप्रज़ेंटेटिव्ज़, सेनेट और एफ़बीआई की कमेटियों के ज़रिए यह बैठकें आयोजित की जाती थीं।

आज स्थिति यह है कि केवल नाम बदल गए हैं। कम्युनिस्ट की जगह अब एंटी सेमिटिक का आरोप आ गया है, युनिवर्सिटियों में पुलिस की हिंसा उसी अंदाज़ में नज़र आने लगी है। यह सब कुछ इस्राईल के अपराधों के ख़िलाफ़ छात्रों के देश व्यापी आंदोलन को कुचलने के मक़सद से किया जा रहा है।

वेस्कानसेन से सेनेटर जोज़फ़ मैक कार्थी का काम अमरीका की नीतियों के आलोचकों को कटघरे में खड़ा करके और उन पर कम्युनिस्ट होने का आरोप लगाकर जम कर पूछ गछ करना होता था, अब उनकी जगह न्यूयार्क से हाउस आफ़ रिप्रज़ेंटेटिव की सदस्य एलिज़ स्टेफ़ैनिक ने ले ली है।

जिस तरह 75 साल पहले अमरीकी प्रतिनिधि सभा और मैक कार्थी जैसे लोगों ने अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला किया आज युनिवर्सिटियों में अकेडमिक आज़ादी पर हमला किया जा रहा है। पुलिस युनिवर्सिटी कैंपस में घुस चुकी है और मई 1970 की भयानक हिंसा की याद ताज़ा हो गई है जब ओहायो के नेशनल गार्ड्ज़ ने वियतनाम में अमरीका की जंग के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले छात्रों पर गोलियां बरसाई थीं।

अमरीका की युनिवर्सिटियों में इस्राईल के हाथों जारी नस्लीय सफ़ाए के विरोधी छात्रों का दमन

इस्राईल की आलोचना में उठने वाली आवाज़ को कुचलने के सिलसिले में मैक कार्थी की जगह एलीज़ स्टेफ़ैनिक ने ले ली है। उनका मक़सद है इस्राईल की आलोचना पर रोक लगा देना।

इन हालात में जब अमरीकी सरकार लेजीटिमेसी के बहुत बड़े संकट से जूझ रही है बदलाव के लिए युवाओं के संगठित और जागरूक होने से बुरी तरह डर गई है। यहां तक कि न्यूयार्क टाइम्ज़ जैसे प्रभावी मीडिया संस्थान भी लोगों को चुप कराने के लिए ख़ौफ़ और दहशत फैलाने की टैकटिक इस्तेमाल करने लगे हैं और इस मामले में चरमपंथी राइटिस्ट धड़ों का साथ दे रहे हैं।

स्रोतः

Have You No Sense of Decency?” McCarthyism Returns to Campus. 2024. counterpunchISRAEL AND THE NEW MCCARTHYISM. 2023. fpifMcCarthyism Is Back: Together We Can Stop It. 2023. thetricontinental

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