प्रतिरोध का नज़रिया पूरी दुनिया में फैल चुका है, राष्ट्रपति रईसी
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राष्ट्रपति का कहना है कि आज ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ खड़े होने के लिए लेबनान, सीरिया, इराक़ और यमन की प्रशंसा की जानी चाहिए।
(last modified 2024-01-14T09:58:28+00:00 )
Jan १४, २०२४ १५:२५ Asia/Kolkata
  • प्रतिरोध का नज़रिया पूरी दुनिया में फैल चुका है, राष्ट्रपति रईसी

राष्ट्रपति का कहना है कि आज ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ खड़े होने के लिए लेबनान, सीरिया, इराक़ और यमन की प्रशंसा की जानी चाहिए।

राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी का कहना है कि बहादुर, शक्तिशाली और जोशीला यमन, फ़िलिस्तीन की मज़लूम जनता की रक्षा करता है और इस साहस की इस्लामी जगत द्वारा सराहना की जाती है।

तस्नीम न्यूज़ एजेन्सी की रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी ने आज सुबह "द अल-अक्सा स्टॉर्म एंड द अवेकनिंग ऑफ ह्यूमन कॉन्शियस" नामक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भाषण देते हुए कहा कि आज फ़िलिस्तीन का मुद्दा इस्लामी जगत का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है और स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी और सर्वोच्च नेता ने इस मुद्दे पर बहुत ज़ोर दिया है।

राष्ट्रपति का कहना था कि यह मुद्दा सभी धर्मों और संप्रदायों के लिए चिंता का विषय है और इस्लामी जगत में और मुस्लिम दुनिया के स्वतंत्र लोगों से जुड़ा हुआ है।

राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी का कहना था कि दुनिया बदल गई है और फ़िलिस्तीन के सही विश्लेषण की आवश्यकता है।

उनका कहना था कि अमेरिका और इंग्लैंड की वर्चस्ववादी व्यवस्था ने 75 साल पहले एक दुष्ट योजना के साथ फ़िलिस्तीनी भूमि पर क़ब्ज़ा करने का फ़ैसला किया।

राष्ट्रपति ने कहा कि इस क़ब्ज़े की वजह से उन्होंने फ़िलिस्तीन और क्षेत्र के लोगों का जनसंहार किया, उनके घरों को बर्बाद किया, उन्हें तबाह किया और उन पर अत्याचार किया।

राष्ट्रपति रईसी ने कहा कि फ़िलिस्तीन के मुद्दे पर दो विचार थे, एक प्रतिरोध और डटे रहने का नज़रिया था और दूसरा है इस क्रूरता और उल्लंघन के ख़िलाफ समझौते और सांठगांठ का था।  

राष्ट्रपति ने कहा कि इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले, फ़िलिस्तीन के मुद्दे पर इतिहास में कुछ घटनाएं घटीं लेकिन फ़िलिस्तीनी जनता का दृष्टिकोण डटे रहने और प्रतिरोध पर केन्द्रित रहा है जबकि कुछ राजनीतिक दलों का उतार-चढ़ाव भी देखने को मिला।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमने देखा है कि समझौते की प्रक्रिया या समझौता करने का विचार काम नहीं आया और पीएलओ या कुछ राजनीतिक दलों और पार्टियों ने कैंप डेविड, शर्म अल-शेख़ और ओस्लो जैसे समझौतों पर बातचीत पर सहमति जताई लेकिन उन्होंने जो किया वह कामयाब नहीं हुआ।

उन्होंने कहा कि इन समझौतों के आगे न बढ़ने का कारण यह था कि पक्षों ने अपने समझौते का पालन नहीं किया और यह वर्चस्ववादी व्यवस्था की एक विशेषता है जो मानवता पर अत्याचार करती है। राष्ट्रपति ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 400 से अधिक घोषणापत्र, बयान और प्रस्ताव पारित हुए  जिनका उल्लंघन अत्याचारी इस्राईली शासन ने किया है और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के किसी भी प्रस्ताव का पालन नहीं किया।

राष्ट्रपति ने कहा कि लेबनान, फिलिस्तीन, सीरिया, इराक, यमन और इस्लामी दुनिया में अन्य जगहों पर ऐसा प्रतिरोध फैल चुका जो हमलों के के खिलाफ़ प्रतिरोध को चुनता है और इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। (AK)

 

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