तो फिर पश्चिमी उदारवाद कहां है? अमेरिका और यूरोप के लिब्रलिज़म को लेकर हुआ बड़ा ख़ुलासा
(last modified Sun, 05 May 2024 12:04:37 GMT )
May ०५, २०२४ १७:३४ Asia/Kolkata
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    तो फिर पश्चिमी उदारवाद कहां है

आज दो बड़ी सच्चाईयां पूरी तरह स्पष्ट और साफ़ हो चुकी हैं। पहली, अमेरिकी उदारवाद या लिब्रलिज़म का धोखा या गिरावट और दूसरा, अमेरिकी राजनीति, तर्क और प्रबंधन का ज़ायोनियों के हाथों में क़ैद होना।

ईरान की यूनिवर्सिटी ऑफ रिलीजियस एंड डेनोमिनेशन के संस्थापक और चेयरमैन बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज़ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सैयद अबुल हसन नवाब ने अमेरिका के विश्वविद्यालयों में इस्राईल विरोधी प्रदर्शन करने वाले छात्रों का जिस अंदाज़ से पुलिस के ज़रिए दमन किया जा रहा है उसपर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए यह सवाल उठाया है कि आख़िर पश्चिमी उदारवाद अब कहां है?

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सैयद अबुल हसन नवाब का बयान इस प्रकार हैः

"बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम"

पश्चिमी आधुनिकता के सैद्धांतिक आधारों में से एक उदारवाद या स्वतंत्रतावाद है। नए और समकालीन पश्चिम को एन्लाइटन्मन्ट अर्थात ज्ञानोदय के युग की इस विरासत पर अजीब तरह से गर्व है। आज, विशेष रूप से, अमेरिकी उदारवाद को आधुनिक धर्म की हद तक बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हैं, इस हद तक कि प्रसिद्ध अमेरिकी फलासफर और बुद्धिजीवियों के एक समूह ने एक बार अमेरिकी उदारवाद के विरोधियों के साथ हिंसक तरीक़े से निपटने के लिए लाइसेंस जारी किया था!

उनमें से, पश्चिमी दुनिया में उदारवाद का सबसे आम सिद्धांत और विषय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विचार की स्वतंत्रता हैं। कई दशकों से, पश्चिमी दुनिया, जब भी मौक़ा मिलता है उदारवाद को लेकर पूर्वी ब्लॉक और तीसरी दुनिया की निंदा करती रही है, दबाव डालती रही है और इनके ख़िलाफ़ अभियान चलाती रही है। एक समय में योशिहिरो फ्रांसिस फुकुयामा ने मानव जाति की नियति और दुनिया और इतिहास के अंतिम और अपरिहार्य संस्करण को उदारवाद की राजनीति यानी उदार लोकतंत्र का चेहरा माना था। हालाँकि बाद में उन्होंने इस संबंध में संदेह व्यक्त किया, अमेरिकी अभी भी उदार संस्कृति में आज की दुनिया में अपनी श्रेष्ठता और लाभ पर विश्वास करते हैं, साथ ही वे उदारवाद के अमेरिकी संस्करण के अंतर और श्रेष्ठता पर विश्वास करते हैं और दावा करते हैं। एक शब्द में, उदारवाद अमेरिका की संस्कृति और राजनीतिक व्यवस्था दोनों को वैध बनाता है, और अमेरिकियों को दुनिया में अन्य राजनीतिक प्रणालियों का मुक़ाबला करने की अनुमति देता है।

यहाँ हम लिब्रलिज़म का विश्लेषण और समीक्षा नहीं कर रहे हैं या उदारवाद के फ़ायदे और नुक़सान या फिर उसके अत्याधुनिक होने को तलाश नहीं कर रहे हैं। बल्कि जिस बात ने दशकों से संयुक्त राज्य अमेरिका और विदेशों में पर्यवेक्षकों और विचारकों को आकर्षित और जांचा है, वह उदारवाद का पालन करने और उसे बढ़ावा देने में पश्चिमी राजनेताओं की ईमानदारी की पड़ताल करना है। आजकल, यह दुनिया के लिए लगभग स्पष्ट है कि अन्य दुनिया और अन्य भूमि और अन्य राजनीतिक प्रणालियों का सामना करते समय पश्चिमी लोगों, विशेष रूप से अमेरिकियों की मुख्य प्रेरक शक्ति स्वतंत्रता के सिद्धांत और मानवाधिकार और लोकतंत्र जैसे मूल्य नहीं हैं।

हम लोकतंत्रों और स्वतंत्र चुनावों को जानते हैं, जिनके समर्थन से कोई लाभ नहीं हुआ क्योंकि वे पश्चिमी लोगों के हितों के अनुरूप नहीं थे, लेकिन कभी-कभी उनके दमन के ख़िलाफ़ चुप रहे या उनके दमन में भाग लिया, साथ ही, कम से कम, हमारे क्षेत्र में , कई ग़ैर-उदारवादी समाज और ग़ैर-लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रणालियां हैं जिन्हें यूरोप और अमेरिका का अटूट समर्थन प्राप्त है। आज, बहुत कम लोग दुनिया में उदारवाद को बढ़ावा देने और उसे गहरा करने में पश्चिमी लोगों की ईमानदारी और अन्य देशों और राष्ट्रों के साथ उनकी बातचीत में इस विचार की केंद्रीयता में विश्वास करते हैं। राजनीति और अर्थव्यवस्था अन्य देशों में हस्तक्षेप करने में पश्चिम के दो मुख्य चालक हैं, और उदारवादी नारे एक सांसारिक आवरण से अधिक कुछ नहीं हैं।

आजकल पश्चिमी लोगों उस धोखाधड़ी का ख़ुलासा हो चुका है कि जिसके ज़रिए वह दूसरों को आज़ादी की डिग्री में उलझाने की कोशिश करते रहे हैं। वैसे यह कोई नया ख़ुलासा नहीं है। जो कुछ नया है वह यूरोप और अमेरिका के अंदर उदार होने के पश्चिम के धोखे का ख़ुलासा है। एक समय में, यह सोचा गया था कि यह सिद्धांत और आदर्श, कम से कम पश्चिमी देशों में, एक रेड लाइन है जिसे पार करने की अनुमति नहीं है, और यह निषेध इतना पवित्र है कि इसके तहत धर्म और यहां तक ​​कि न्याय का भी बलिदान किया जा सकता है, लेकिन आज यह स्पष्ट हो गया है कि पश्चिमी देशों में वर्जित कार्यों को अंजाम देने और अन्य पवित्रताओं की एक ऐसी श्रृंखला है कि वे स्वतंत्रता की इच्छा का भी वध करने के लिए तैयार हैं।

इस्राईल और ज़ायोनीवाद के लिए पश्चिमी समर्थन कोई नई घटना नहीं है। कभी यह माना जाता था कि पश्चिम, यहूदियों के प्रति अपने ऐतिहासिक अपराध और पछतावे और यहूदी-विरोध के कारण होने वाली पीड़ा की वजह से यहूदी राज्य और भूमि का समर्थन करने के बारे में सोच रहा था। इस नामी बुराई को पश्चिम एशिया में निर्यात करना और जर्मनी और अन्य पश्चिमी देशों के अपराधों का मुसलमान लोगों पर दण्ड लगाना, एक नीच और अनुपयुक्त काम था, लेकिन इसके बावजूद, यह माना जाता था कि पश्चिम मानवता के उदार उद्देश्यों के साथ, होलोकॉस्ट के अपराध का पुनर्भुगतान करने की कोशिश में है। यह दिलचस्प है कि कभी-कभी वे पश्चिम एशिया को लेकर यह संदेश देने की कोशिश करते हैं कि इस्राईल का समर्थन करना वास्तव में पश्चिम एशिया में एकमात्र वास्तविक लोकतंत्र का समर्थन करना है और इस क्षेत्र में उदार लोकतंत्र का प्रसार करना है। लेकिन समय के साथ, यह स्पष्ट हो गया कि ज़ायोनी शासन की स्थापना के पीछे पश्चिम को कोई भी अच्छा उद्देश्य नहीं है बल्कि अपने राजनीतिक लक्ष्यों को हित में रखथे हुए वह इस नक़ली और थोपे गए शासन द्वारा पश्चिम एशिया के राष्ट्रों और शक्तियों पर लगाम लगाना चाहता है। दूसरे शब्दों में, उन्होंने इस्राईल को पश्चिम एशिया में पश्चिम की आंख, कान और हाथों के रूप में देखा।

पश्चिम एशिया में पश्चिम के साथ पूरी तरह से जुड़ी हुई सरकारों को ध्यान में रखते हुए और पश्चिम द्वारा इस्राईल का समर्थन करने के लिए उसे भारी वित्तीय और राजनीतिक नुक़सान उठाना पड़ा है, साथ ही उससे अपनी प्रतिष्ठा को भी दांव पर लगाना पड़ा है और अभी भी वह इसका खमियाज़ा भुगत रहा है, यह देखते हुए, सवाल उठता है कि यूरोप और अमेरिका स्पष्ट अपमान के बावजूद आख़िर क्यों इस्राईल का समर्थन करना जारी रखे हुए हैं? इस्राईल और अरब देशों के साथ पश्चिम की बातचीत में कोई संतुलन और गंभीरता क्यों नहीं है? अब यह स्पष्ट हो गया है कि इस्राईल के लिए पश्चिम, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका का समर्थन, ज़ायोनियों के लिए उनकी ओर से कोई उपकार नहीं है और न ही इस क्षेत्र की ख़ास राजनीतिक स्थिति का होना, बल्कि असल वजह है शक्तिशाली ज़ायोनी लॉबी, उनका धन, उनका मीडिया।

29 अप्रैल, 2024 को टेक्सास विश्वविद्यालय में अमेरिकी पुलिस द्वारा इस्राईल के अपराधों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वाली एक महिला प्रदर्शनकारी की गिरफ़्तारी। फोटो स्रोत: रॉयटर्स

उदारवाद के प्रति पश्चिम की निष्ठा में बेईमानी पर सवाल उठाने वाले अमेरिकी विश्वविद्यालय के छात्रों के विरोध-प्रदर्शन के साथ अमेरिकी सरकार का जिस तरह का टकराव हुआ, उससे साफ़ पता चलता है कि अमेरिका, ज़ायोनी लॉबी के सामने कितना मजबूर है और पूरी तरह उसके क़ैद में है। संयुक्त राज्य अमेरिका के शीर्ष दस या सात विश्वविद्यालयों में, जिन्हें कभी-कभी दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालय (टॉप टेन) माना जाता है, उनमें से अधिकांश पर पूरी तरह से इस्राईल समर्थक यहूदियों का वर्चस्व है। हम अभी भी नहीं भूले हैं कि कैसे 2006 में हार्वर्ड के अध्यक्ष ने आधिकारिक तौर पर घोषणा की थी कि इस्राईल का विरोध करने वाले विश्वविद्यालय का अध्यक्ष होना मेरे लिए शर्म की बात होगी।

मज़लूम उत्पीड़ित फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में छात्र आंदोलन, जो अमेरिका के शीर्ष विश्वविद्यालयों यानी हार्वर्ड, कोलंबिया और प्रिंसटन में भी फल-फूल रहा है वह अपने मानवीय और नैतिक विशेषाधिकारों के अलावा फ़िलिस्तीन के लिए उनकी सेवा के अतिरिक्त इससे दो बड़े सत्य भी उजागर हुए हैं। एक, अमेरिकी लिब्रलिज़्म का धोखा या पतन। दूसरा अमेरिकी राजनीति, तर्क और प्रबंधन का ज़ायोनियों के हाथों में क़ैद होना है। हमारा कर्तव्य है कि हम इस छात्र आंदोलन का समर्थन करें और दुनिया को इन महत्वपूर्ण तथ्यों से परिचित कराएं, यानी लिब्रलिज़्म के धोखे और यूरोप और अमेरिका की ज़ायोनियों के प्रति अधीनता।

दुनिया में कहीं भी छात्र आंदोलन राजनीति, संस्कृति और अर्थव्यवस्था में बदलाव के सबसे महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक है। दुनिया में कहीं भी इस आंदोलन को दबाना निंदनीय और ग़ैर-विचारणीय है तथा चातुर्य और दूरदर्शिता से दूर है। छात्र आंदोलन को कभी-कभी शारीरिक रूप से दबाया जाता है और कभी सियासी दृष्टि से हत्या करके छात्र को व्यवसायिक मांगों के लिए या स्वतंत्रता या सामूहिक और व्यक्तिगत अनबन के लिए मजबूर किया जाता है। छात्रों के राजनीतिक आलोचनाओं और विरोधों के प्रति थोड़ी सहनशीलता और संवेदनशीलता की सबसे कम उपलब्धि छात्रों की मांगों के प्रकार और स्तर को उच्च राजनीतिक और सामाजिक आदर्शों के स्तर तक ऊपर उठाना है।

हम अमेरिकी विश्वविद्यालयों के छात्रों के इस्राईल के ख़िलाफ़ होने वाले विरोध प्रदर्शनों का समर्थन करते हुए और अमेरिकी सरकार द्वारा इस्राईली शासन को दिए जाने वाले असीमित समर्थन का विरोध करते हैं, साथ ही अमेरिका की सरकार को छात्र, शिक्षक और विश्वविद्यालय का सम्मान करने और छात्रों की मांगों को स्वीकार करने के लिए आमंत्रित करते हैं। (RZ)

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