वाशिंगटन के मुक़ाबले में तेहरान की हक़ीक़त के बारे में पांच बिंदु
(last modified Sun, 05 May 2024 12:30:25 GMT )
May ०५, २०२४ १८:०० Asia/Kolkata
  • वाशिंगटन के मुक़ाबले में तेहरान की हक़ीक़त के बारे में पांच बिंदु

पिछले कुछ महीनों के दौरान अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी अत्याचारों के बारे में वाशिंग्टन ने चुप्पी साध ली है।

पार्सटुडे-पिछले कुछ दशकों के दौरान अमरीकी, इस्लामी गणतंत्र ईरान पर यह आरोप लगाते आए हैं कि वह इंटरनैश्नल मैकेनिज़्म की रेआयत नहीं कर रहा है।  इसी आरोप को वे ईरान के विरुद्ध दबाव के हथकण्डे के रूप में प्रयोग कर रहे हैं।  हालांकि पिछले कुछ महीनों के दौरान विश्व देख रहा है कि अमरीका, अवैध ज़ायोनी शासन को लेकर अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रति कितनी उदासीनता दिखा रहा है।

पहली मई 2024 को हज़ारों अध्यापकों को संबोधित किया था जिसमें पश्चिमी एशिया के परिवर्तनों के बारे में एसे महत्वपूर्ण बिंदुओं का उल्लेख किया गया जिनकी गहन समीक्षा की जाने की आवश्यकता है।  उन्होंने अपने संबोधन के एक भाग में कहा कि ज़ायोनी शासन के अत्याचारों को लेकर छात्रों के शांतिपूर्ण विरोध के साथ अमरीकियों का हिंसक व्यवहार, अमरीकी सरकार के प्रति ईरान की भ्रांति की पुष्टि करता है।  अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन के हालिया महीनों के परिवर्तनों पर एक नज़र, उन विरोधाभासों को स्पष्ट करती है जिनमें अमरीकी राजेनता आज भी घिरे हुए हैं।

पिछले लगभग 45 वर्षों के दौरान जबसे तेहरान और वाशिंग्टन के बीच मतभेद जारी हैं, उस वक़्त से अमरीकी अधिकारी ईरान पर लगातार आरोप मढ़ते आ रहे हैं जिनके मुक़ाबले में इस्लामी गणतंत्र ईरान ने भी कुछ मुद्दे उठाए हैं।  वर्तमान समय में विश्व जनमत के समक्ष वाशिंगटन के बारे में तेहरान के कुछ मुद्दे हैं जिनको नीचे विस्तार से पेश करने जा रहे हैं।

1-पिछले कुछ दशकों के दौरान ईरान जैसी स्वतंत्र सरकारों पर दबाव बनाने के लिए अमरीका की ओर से दबाव, वह विषय है जिसका तेहरान को दशकों से सामना रहा है।पिछले कुछ महीनों के दौरान हम अमरीका के उन दोहरे मानदंडों के साक्षी रहे हैं जो ईरान की बातों के सच होने की पुष्टि करते हैं।  अमरीका की सरकार पिछले कुछ दशकों के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर विशव के दावेदार के रूप में सामने आई है। जबकि पिछले कुछ महीनों के दौरान अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी अत्याचारों के बारे में वाशिंग्टन ने चुप्पी साध ली है।

यह एसी हालत में है कि जब अमरीकियों ने विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनी सेना के अपराधों की बात को स्वीकार किया है।

2-अन्तर्राष्ट्रीय अधिकारों का सम्मानः यह वह विषय है जिसको अमरीकी अधिकारी पिछले कुछ दशकों से इस्लामी गणतंत्र ईरान के बारे में पेश करते आ रहे हैं।  पिछले कुछ महीनों में हम कई बार अवैध ज़ायोनी शासन के समर्थन को लेकर इस विषय के उल्लंघन को देखते आ रहे हैं।  इस समय विश्व जनमत, तेलअवीव को लेकर वाशिग्टन के दोहरे मानदंडों के साक्षी रहे हैं।

3-हालिया कुछ दशकों के दौरान अमरीका की ओर से इस्लामी गणतंत्र ईरान पर इंटरनैश्नल मैकेनिज़्म को अनदेखा करने का आरोप लगाए जाते रहे हैं।  इसी दावे को वे ईरान के विरुद्ध दबाव डालने वाले हथकण्डे के रूप में प्रयोग करते हैं।  हालांकि हो यह रहा है कि हालिया कुछ महीनों के परिवर्तनों को लेकर अमरीका, अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों को अनदेखा कर रहा है।

इसी आधार पर अमरीका के कुछ नीति निर्धारकों ने अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की ओर से अवैध ज़ायोनी शासन के नेताओं को अपराधी घोषित किये जाने की संभावना के दृष्टिगत इस न्यायालय को प्रतिबंधित करने की धमकी दी है।  अमरीका की दोहरी नीति का एक अन्य प्रतीक, अन्तर्राष्ट्रीय संगठन को प्रतिबंधित करना है जिसे इस समय विश्व जनमत देख रहा है।

4-वर्षों से अमरीका की यह नीति रही है कि वह मानवाधिकारों का दावा करते हुए विश्व जमनत में ईरान को मानविधकारों के हननकर्ता के रूप में पेश करे।  हालांकि इस समय अमरीका के भीतर ही ग़ज़्ज़ा में ज़ायोनियों के अपराधों का विरोध कर रहे छात्रों को अमरीका की ओर से मानवाधिकारों के हनन का सामना करना पड़ रहा है।  इस हिसाब से अमरीका स्वयं मानवाधिकारों के बारे में डबल स्टैंडर्ड अपनाए हुए है।

अमरीकी एसी हालत में छात्रों का दमन कर रहे हैं कि यही काम अगर किसी अन्य देश में हो रहा होता तो उसको प्रतिबंध लगाने, उसके विरुद्ध प्रस्ताव पारित करने और उसके विरुद्ध विश्व जनमत की राय को एकमत करने के प्रयास करते।

5- वह बिंदु जिसपर ध्यान दिया जाना चाहिए वह यह है कि ईरान ने पिछले कुछ दशकों के दौरान बल दिया है कि फ़िलिस्तीन, पश्चिमी एशिया का प्रमुख विषय है और तेलअवीव के साथ संबन्धों को सामान्य करने से किसी समस्या का समाधान नहीं हो पाएगा।

अब क्षेत्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत से लोग इस्लामी गणतंत्र ईरान के दृष्टिकोणों की वास्तविकता को स्वीकार करने लगे हैं।  इसी के साथ वे अवैध ज़ायोनी शासन की ओर से जातीय सफाए, जघन्य अपराधों, बच्चों के जनसंहार और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का सम्मान न करने जैसी घटनाओं के साक्षी हैं।

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