दुनिया ने ईरान की ताक़त को किया सलाम, राष्ट्रपति रूहानी से मिलने के लिए यूरोपीय नेताओं की लाइन, संयुक्त राष्ट्र में रूहानी स्टार और अरब नेता नौसिखिए कलाकार क्यों बन गए?
मंगलवार से संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा का 74वां सालाना अधिवेशन शुरू हो रहा है। यहां फ़ार्स खाड़ी के इलाक़े में जारी तनाव पर बात होगी, जलवायु परिवर्तन भी चर्चा में रहेगा, यमन युद्ध का मुद्दा भी गर्म रहेगा, भारत पाकिस्तान तनाव भी चर्चा में आएगा, वेनेज़ोएला पर अमरीका के प्रतिबंधों की भी बात होगी, ब्रेग्ज़िट के विषय पर भी चर्चा होगी।
सबसे आख़िरी विषय अरब इस्राईल विवाद होगा।
राष्ट्रपति ट्रम्प अधिवेशन में पहुंचकर भाषण देने के लिए बेचैन हैं जबकि राष्ट्रपति पुतीन इस बैठक से ग़ायब हैं। ज़ायोनी प्रधानमंत्री नेतनयाहू की पार्टी चुनाव हार गई है वह भी बैठक में नहीं पहुंचे हैं।
इस बैठक के सबसे बड़े स्टार हैं ईरान के राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी जिनसे मिलने के लिए कई यूरोपीय देशों के नेता बेचैन हैं। सबसे ज़्यादा बेचैन तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जान्सन दिखाई दे रहे हैं। कोशिश यह हो रही है कि फ़ार्स की खाड़ी में बढ़ा हुआ तनाव कम हो। इस तरह की मुलाक़ातों का नतीजा यह तय करेगा कि ईरान के राष्ट्रपति रूहानी और अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प की मुलाक़ात होगी या नहीं?
यह बात बहुत दुख देने वाली है कि फ़िलिस्तीन का मुद्दा जो अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में सबसे ऊपर रहता था इस बैठक की प्राथमिकताओं में सबसे आख़िर में हैं इसलिए नहीं कि नेतनयाहू बैठक में नहीं पहुंचे हैं बल्कि इसिलए कि फ़िलिस्तीनी नेता महमूद अब्बास जो स्टैंड लेते हैं वह बहुत कमज़ोर है और उनके भाषण अब उबाऊ हो गए हैं। वही पुरानी बातें हर साल दोहराते रहते हैं। इसलिए जब वह भाषण देते हैं तो हाल ख़ाली हो जाता है।
राष्ट्रपति रूहानी ने पेशकश की है कि वह महासभा के अधिवेशन में जब भाषण देंगे तो शांति का नया फ़ार्मूला पेश करेंगे। इसमें इस बात पर ज़ोर भी दिया जाएगा कि अमरीकी सरकार उस परमाणु समझौते में वापस आ जाए जिससे वह बाहर निकल गई थी और उसके बाद ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को तत्काल समाप्त करे। हमें नहीं लगता कि जब तक अमरीका इन शर्तों को मान नहीं लेता उस समय तक राष्ट्रपति रूहानी अमरीकी राष्ट्रपति से मिलने में कोई दिलचस्पी दिखाएंगे। वैसे भी यह मुलाक़ात होनी है या नहीं होनी है इसका फ़ैसला तेहरान में मौजूद सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई को करना है।
अरब सरकारों का हाल यह है कि अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में वह सबसे पिछली सीटों पर पहुंच गई हैं। किसी ज़माने में कैरिज़्मेटिक अरब नेता हुआ करते थे जो राष्ट्रीय और अरब सिद्धांतों पर डटते थे और अमरीकी व इस्राईली साज़िशों को ललकारते थे और दुनिया उन्हें कुछ समझती थी। मगर आज जब यह अरब नेता और विशेष रूप से उनमें जो धनी नेता हैं दुधारू गए बनकर रह गए हैं, अमरीका उनका दोहन कर रहा है वह इस्राईल से रिश्ते क़ायम करने के लिए दिन गिन रहे हैं तो सब कुछ बदल गया है। अरब जगत का आज अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीति में बेहद सीमित असर है। यह इसलिए है कि उन्होंने अपनी बागडोर अमरीका को सौंप दी है।
स्टार तो डाक्टर रूहानी हैं जिनसे मिलने के लिए यूरोपीय नेताओं ने लाइन लगा रखी है और अमरीकी राष्ट्रपति भी उनसे मुलाक़ात का रास्ता तलाश करने में व्यस्त हैं। इसलिए कि डाक्टर रूहानी के पास ताक़त है। उनके देश के पास वह सैनिक संस्थान हैं जो बेहद ताक़तवर हथियारों से लैस है। उनका देश उस एलायंस का नेतृत्व कर रहा है जिसमें शामिल ताक़तें अपने अपने इलाक़े में सामरिक और राजनैतिक समीकरण बदल देने में सक्षम हैं, विशेष रूप से यमन, लेबनान, फ़िलिस्तीन और इराक़ में।
साभार रायुल यौम