आयत क्या कहती हैं? संसार में ऐश्वर्य व आराम इस बात का कारण बनता है कि मनुष्य ईश्वर की ओर से निश्चेत होकर संसार में मायामोह में ग्रस्त हो जाए।
(last modified Wed, 27 May 2020 10:08:00 GMT )
May २७, २०२० १५:३८ Asia/Kolkata
  • आयत क्या कहती हैं? संसार में ऐश्वर्य व आराम इस बात का कारण बनता है कि मनुष्य ईश्वर की ओर से निश्चेत होकर संसार में मायामोह में ग्रस्त हो जाए।

कठिनाइयों के समय वह ईश्वर को पुकारता है, चाहे वह रोग में ग्रस्त होकर बिस्तर पर पड़ा हो, बैठा हुआ हो या समस्या के समाधान के लिए उठ गया हो।

सूरए यूनुस की आयत क्रमांक 12 का अनुवादः

और जब मनुष्य को कोई क्षति पहुंचती है तो वह उठते, बैठते और करवटें बदलते हमें पुकारता है फिर जब हम उससे क्षति को दूर कर देते हैं वह इस प्रकार गुज़र जाता है जैसे उसने हमें किसी समस्या में पुकारा ही न हो, निश्चित रूप से अपव्यय करने वालों के समक्ष उनके कर्म इसी प्रकार सजा दिए जाते हैं।

 

संक्षिप्त टिप्पणी:

लोग इस प्रकार अपनी राह लग जाते हैं और ईश्वर को पुनः इस प्रकार भुला देते हैं मानो उन्हें कोई समस्या ही न रही हो और ईश्वर ने उनकी समस्या का निवारण न किया हो।

 

इस आयत से मिलने वाले पाठ:

  1. ईश्वर पर ईमान मनुष्य की आत्मा की गहराइयों में पहुंच जाता है और कटु घटनाएं, ईश्वर की खोज में रहने वाली मानव प्रवृत्ति के जागृत होने का कारण बनती हैं।

  2. संकटों और कठिनाइयों के समय ईश्वर के समक्ष गिड़गिड़ाने और प्रार्थना करने की ईश्वरीय धर्मों में सिफ़ारिश की गई है।

  3. कृतघ्नता और निश्चेतना, सत्य के मार्ग से मनुष्य के भटकने का मार्ग प्रशस्त करती हैं और मनुष्य ऐसे स्थान पर पहुंच जाता है कि असत्य उसे सुन्दर दिखाई पड़ने लगता है।