आयत क्या कहती हैं? एक शक्तिशाली व सक्षम रचयिता ने अपने ज्ञान व तत्वदर्शिता के आधार पर इस ब्रह्मांड की रचना और इसके संचालन की युक्ति की है।
क्या जिसे तुम पूजते ही उसने आकाश और धरती की रचना की है और तुम्हारे लिए वर्षा भेजता है?
सूरए नम्ल की आयत क्रमांक 60 का अनुवाद:
(जिन्हें तुम ईश्वर का समकक्ष ठहराते हो वे बहतर हैं) या वह जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया और तुम्हारे लिए आकाश से पानी बरसाया? जिसके द्वारा हमने हरे-भरे बाग़ उगाए, जिनके पेड़ उगाना तुम्हारे लिए सम्भव न था? क्या ईश्वर के साथ कोई और भी पूज्य है? (नहीं) बल्कि वे पथभ्रष्ठ लोग हैं।
संक्षिप्त टिप्पणी:
हर बुद्धि वाला व्यक्ति इस बात को समझ सकता है कि यह महान संसार हम इंसानों का बनाया हुआ नहीं है और हमारी इच्छा से इसका संचालन नहीं होता।
इस आयत से मिलने वाले पाठ:
-
सृष्टि के बारे में चिंतन, ईश्वर को समझने का सबसे अच्छा मार्ग है।
-
उस समय हम संसार की रचना में ईश्वर की शक्ति को समझ सकते हैं जब हम अपने को एक साधारण से पेड़ उगाने में भी अक्षम पाएं।
-
सृष्टि का संचालन ईश्वर के हाथ में है लेकिन यह काम माध्यमों से होता है जिस प्रकार से कि पौधे वर्षा के माध्यम से उगते हैं।