अमरीका के साथ सीधी वार्ता को ईरान ने फिर नकारा
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अमरीका के साथ सीधी वार्ता के प्रस्ताव को ईरान ने नकारते हुए कहा है कि जेसीपीओए के होते हुए फिर से वार्ता की कोई आवश्यकता नहीं है।
(last modified 2023-04-09T06:25:50+00:00 )
Mar ०१, २०२१ २२:०९ Asia/Kolkata
  • अमरीका के साथ सीधी वार्ता को ईरान ने फिर नकारा

अमरीका के साथ सीधी वार्ता के प्रस्ताव को ईरान ने नकारते हुए कहा है कि जेसीपीओए के होते हुए फिर से वार्ता की कोई आवश्यकता नहीं है।

अमरीकी समाचारपत्र वाॅल स्ट्रीट जनरल ने रविवार को पश्चिमी सूत्रों के हवाले से लिखा था कि परमाणु समझौते के संबन्ध में वाशिग्टन के साथ सीधी वार्ता के प्रस्ताव को ईरान ने रद्द कर दिया है।

इसी समाचार के संदर्भ में वाइट हाउस के एक अधिकारी ने ईरान के नकारात्मक जवाब पर निराशा जताई।  इस अमरीकी अधिकारी ने कहा कि ईरान के साथ वार्ता की भूमिका प्रशस्त करने के उद्देश्य से हम गुट पांच धन एक के अपने साथियों के साथ विचार-विमर्श करेंगे।  ईरान को वार्ता की मेज़ पर पुनः लाने के लिए अमरीका और यूरोपीय तिकड़ी के प्रयासों के संदर्भ में सोमवार को ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सईद ख़तीबज़ादे ने कहा कि अमरीका यदि चाहता है कि वह जेसीपीओए की मेज़ पर जगह पाए तो पहले सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव क्रमांक 2231 में दिये वचनों को पूरा करे।  ख़तीबज़ादे ने कहा कि खेद की बात है कि अमरीका की वर्तमान सरकार, ट्रम्प के रास्ते को ही आगे बढ़ा रही है।

इसी बीच ईरान के एक उच्चाधिकारी ने अलजज़ीरा टीवी चैनेल को दिये साक्षात्कार में कहा है कि हम अमरीका को गुट पांच धन एक का भाग मानने के लिए तैयार नहीं हैं।  उन्होंने कहा कि इस देश के जेसीपीओए में वापस आने से पहले सारे प्रतिबंध हटाए जाएं और इस बीच होने वाले नुक़सान की क्षतिपूर्ति की जाए।

एसा लगता है कि परमाणु समझौते को लेकर अमरीका के साथ पुनः वार्ता के संबन्ध में ईरान का इन्कार सही फैसला है जो राष्ट्रीय हितों के अनुरूप है।  अब जबकि अमरीका, परमाणु समझौते से निकल चुका है और ईरान के विरुद्ध एकपक्षीय प्रतिबंध थोपे जा चुके हैं, इस स्थिति में किसी भी प्रकार की वार्ता, ज़ोर-ज़बरदस्ती के मुक़ाबले में घुटने टेकने के अर्थ में है।  हालांकि बाइडेन की टीम के सदस्य अबतक कई बार यह बात कह चुके हैं कि ट्रम्प की ओर से ईरान के विरुद्ध अधिकतम दबाव की नीति विफल रही है।  ट्रम्प ने परमाणु समझौते से निकलकर बहुत बड़ी ग़लती की है, किंतु व्यवहारिक रूप में वे जेसीपीओए में वापस होने और प्रतिबंधों को समाप्त करने के स्थान पर ईरान के विरुद्ध नकारात्मक सहमति बनाने के प्रयास कर रहे हैं।

बाइडेन सरकार की यह नीति एसी स्थिति में है कि जब यूरोपीय तिकड़ी ने भी ट्रम्प के कार्यकाल में अपने वचनों को पूरा करने का प्रयास नहीं किया।  मौखिक रूप में उनकी नीतियां ट्रम्प से अलग थीं किंतु व्यवहारिक रूप में दोनो की नीतियों में कोई अंतर नहीं था।एक सवाल यह पैदा होता है कि अमरीका की नई सरकार यदि वास्तव में सद्भावना रखती है और वास्तव में कूटनीति पर भरोसा करती है तो फिर वह ईरान पर थोपे गए प्रतिबंधों को क्यों नहीं हटाती।  यह वे प्रतिबंध हैं जो सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव क्रमांकः2231 के अनुसार निष्क्रिय हो चुके थे।

दूसरा सवाल यह उठता है कि वह क्यों नई वार्ता की बात कह रही है जबकि जेसीपीओए दस वर्षों की वार्ता का परिणाम है।  एसे में नई वार्ता पर इसरार क्यों? क्या अमरीकी सरकार यह सोच रही है कि परमाणु समझौते में वापसी में विलंब करके ईरान के विरुद्ध नकारात्मक माहौल बनाकर ट्रम्प के अत्यधिक दबाव की नीति के नतीजे को अपनी आखों से देखेगी।  नई वार्ता के बारे में ईरान का नकारात्मक जवाब यह दर्शाता है कि अत्यधिक दबाव की नीति ट्रम्प के काम नहीं आई और बाद वालों को भी इससे कोई लाभ पहुंचने वाला नहीं है।

ईरान, अमरीका के आर्थिक प्रतिबंधों को अवसरों में बदलने में सक्षम है और स्वदेशी चीज़ों का निर्माण करके अपने आर्थिक प्रतिरोध को बाक़ी रख सकता है।  अमरीका की नई सरकार की सद्भावना केवल इसी स्थिति में साबित होगी जब वह ईरान पर लगे सारे प्रतिबंधों को हटा ले।