अल्लाह को भूलने के सामाजिक परिणाम
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अल्लाह को भूलना सामाजिक और नैतिक पतन की शुरुआत है। सूरह हश्र की आयत नंबर 19 चेतावनी देती है कि ईश्वर के साथ आध्यात्मिक संबंध टूटने से व्यक्तिगत ग़ुमराही और सामाजिक भ्रष्टाचार पैदा होता है।
(last modified 2025-07-24T10:00:47+00:00 )
Jul २२, २०२५ १५:३१ Asia/Kolkata
  • अल्लाह को भूलने के सामाजिक परिणाम

अल्लाह को भूलना सामाजिक और नैतिक पतन की शुरुआत है। सूरह हश्र की आयत नंबर 19 चेतावनी देती है कि ईश्वर के साथ आध्यात्मिक संबंध टूटने से व्यक्तिगत ग़ुमराही और सामाजिक भ्रष्टाचार पैदा होता है।

अल्लाह को भूल जाने के कुछ परिणाम इस प्रकार हैं

नैतिक मूल्यों का कमजोर हो जाना

पारिवारिक और सामाजिक बंधनों का ढीला पड़ जाना

स्वार्थ और भौतिकवाद का बढ़ना

सामाजिक अन्याय और असमानता में वृद्धि

मानवीय संवेदनशीलता और दया की कमी

 

महान ईश्वर पवित्र क़ुरआन में कहता है कि उन लोगों की तरह न बनो जिन्होंने अल्लाह को भुला दिया तो अल्लाह ने उन्हें अपने आप से भुला दिया। वे ही फ़ासिक़ अर्थात अवज्ञाकारी हैं।

 

यह आयत मानव सामाजिक जीवन में एक महत्वपूर्ण सच्चाई की ओर इशारा करती है: अल्लाह और उसके मूल्यों को भूल जाना, स्वयं को और सामाजिक मानवाधिकारों को भूलने का कारण बनता है। जब कोई व्यक्ति या समाज अल्लाह को भूल जाता है, तो नैतिकता और आध्यात्मिक मूल्य समाप्त हो जाते हैं और हर कोई केवल अपने स्वार्थ और वासनाओं के पीछे भागने लगता है। इससे स्वार्थपरता, दूसरों के अधिकारों की उपेक्षा और सामाजिक भ्रष्टाचार पैदा होता है, जो अंततः समाज में अराजकता लाता है।

 

इस्लामी दृष्टिकोण से "अल्लाह को भूलने" का अर्थ है उसके साथ आध्यात्मिक और इबादत का संबंध तोड़ना जिससे इंसान स्वार्थी और निर्दयी बन जाता है। दूसरे शब्दों में अल्लाह को खोना, अपनी पहचान और नैतिक अंतरात्मा को खोने के बराबर है।

 

सामाजिक स्तर पर यह आयत सभी को चेतावनी देती है कि अल्लाह के साथ आध्यात्मिक संबंध बनाए रखना न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए बल्कि समाज की न्यायपूर्ण और स्वस्थ व्यवस्था के लिए भी आवश्यक है। जो समाज अल्लाह को भूल जाता है वह नैतिक और मानवीय सिद्धांतों को खो देता है और अन्याय एवं अत्याचार की ओर बढ़ जाता है। MM