थका संसार एक उद्धारकर्ता की प्रतीक्षा में है
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पार्स टुडे - आज की मानवता, विचारधाराओं के गतिरोध और बढ़ती अन्यायपूर्ण स्थितियों से थकी हुई पहले से कहीं अधिक न्याय और एक उद्धारकर्ता की प्रतीक्षा कर रही है।
(last modified 2025-10-06T08:45:42+00:00 )
Oct ०५, २०२५ १८:०८ Asia/Kolkata
  • थका संसार एक उद्धारकर्ता की प्रतीक्षा में है
    थका संसार एक उद्धारकर्ता की प्रतीक्षा में है

पार्स टुडे - आज की मानवता, विचारधाराओं के गतिरोध और बढ़ती अन्यायपूर्ण स्थितियों से थकी हुई पहले से कहीं अधिक न्याय और एक उद्धारकर्ता की प्रतीक्षा कर रही है।

पार्स टुडे की रिपोर्ट के अनुसार इतिहास में बहुत कम ऐसा काल रहा है जब मानव समाज ने उद्धारकर्ता की आवश्यकता को आज जितना गहराई से महसूस किया हो। यह आवश्यकता कभी जागरूक विचारकों के स्तर पर आकार लेती है और कभी जनसामान्य के अवचेतन मन में। आधुनिक मनुष्य, साम्यवाद से लेकर पश्चिमी उदार लोकतंत्र तक, अनेक विचारधाराओं और मतवादों को आज़माने के बाद भी, अब तक वास्तविक शांति और सुख प्राप्त नहीं कर सका है।

 

विज्ञान की चमत्कारी प्रगतियों ने मानव जीवन को बदल तो दिया है परंतु न्याय और सुख की उसकी प्यास बुझा नहीं सकी। आज की दुनिया वर्गीय विभाजन, गरीबी, बीमारी, व्यभिचार, अन्याय और शक्तिशाली देशों द्वारा ज्ञान के दुरुपयोग से भरी पड़ी है। विज्ञान, जो मानवता की सेवा के लिए होना चाहिए था, अनेक मामलों में प्रभुत्व, युद्ध और राष्ट्रों की लूट का साधन बन गया है। इस स्थिति का परिणाम है, वैश्विक थकान, बेचैनी, और एक उद्धारक हाथ की बढ़ती हुई लालसा। यह वही आवश्यकता है जिसका उल्लेख सभी धर्मों में किया गया है और जो इस्लामी संस्कृति में हज़रत वली-अस्र के स्वरूप में साकार होती है।

 

न्याय, उद्धारकर्ता का मिशन

 

इस्लामी शिक्षाओं में इमाम महदी (अ.ज.) का मुख्य कार्य न्याय की स्थापना है वही एलाही वादा:

 

अल्लाह उनके माध्यम से धरती को न्याय और शांति से भर देगा।

 

यह न्याय किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि सत्ता, संपत्ति, स्वास्थ्य, मानवीय गरिमा, सामाजिक प्रतिष्ठा, आध्यात्मिकता और विकास इन सभी क्षेत्रों में उनका प्रकाश फैलेगा।

विश्वव्यापी न्याय न तो उन्नत प्रौद्योगिकी से संभव है और न ही मानव निर्मित विज्ञान से, बल्कि केवल एलाही शक्ति और इमाम के मार्गदर्शन से ही साकार होगा।

 

प्रतीक्षा, आवश्यकता की अनुभूति से परे

 

परन्तु केवल आवश्यकता का अनुभव पर्याप्त नहीं है। इस्लामी शिक्षाओं में हमसे यह अपेक्षा की गई है कि हम मुन्तज़िर रहें, यह शब्द मात्र आवश्यकता या चाहना से आगे बढ़कर, एक निश्चित और आशावान भविष्य पर दृढ़ विश्वास को दर्शाता है।

 

प्रतीक्षा का अर्थ निष्क्रिय रहना या हाथ पर हाथ धरे बैठना नहीं है बल्कि यह रचनात्मक आशा और सक्रिय प्रयास की स्थिति है जिसे हदीसों में सबसे श्रेष्ठ कर्म कहा गया है।

पैग़म्बर-ए-इस्लाम (स.) ने फ़रमाया हैः मेरी उम्मत का सबसे उत्तम कार्य है इमाम के ज़ुहूर की प्रतीक्षा करना।

 

वास्तव में प्रतीक्षा मनुष्य को निराशा और हताशा से मुक्त करती है तथा उसे आत्मिक शांति प्रदान करती है। एक सच्चा मुन्तज़िर व्यक्ति जीवन की कठिनाइयों से कभी मायूस नहीं होता और सदैव ईश्वरीय राहत की ओर दृष्टि रखता है।

 

प्रतीक्षा तैयारी और कर्म

 

प्रतीक्षा का अर्थ अधैर्य या समय निर्धारित करना नहीं है। अधीरता दिखाना या किसी निश्चित समय का अनुमान लगाना धार्मिक शिक्षाओं के विपरीत है।

सच्ची प्रतीक्षा का अर्थ है- स्वयं और समाज को तैयार करना, ऐसा प्रयास करना जिससे हमारा जीवन धीरे-धीरे उस महदवी समाज के निकट पहुँच सके, जो न्याय, अध्यात्म, ज्ञान, सम्मान, भ्रातृत्व और मानवीय गरिमा पर आधारित होगा।

 

एक प्रतीक्षारत समाज को अपनी क्षमता के अनुसार उस भविष्य के समाज का छोटा सा नमूना तैयार करना चाहिए।

 

प्रतीक्षा केवल अंतिम ज़ुहूर तक सीमित नहीं है। धार्मिक संस्कृति में कठिनाइयों के बाद राहत की अवधारणा भी बहुत महत्त्वपूर्ण है अर्थात, जीवन की दैनिक कठिनाइयों और सामाजिक संकटों के बाद भी ईश्वरीय राहत की आशा बनाए रखना।

 

यहाँ तक कि सबसे कठिन परिस्थितियों में जब लोग निराशा या आत्महत्या तक पहुँच जाते हैं, तब भी भविष्य के प्रति यह आशावादी दृष्टि मनुष्य को मानसिक और सामाजिक टूटन से बचाती है।

 

प्रतीक्षा के युग में शांति का मार्ग

फ़रज की प्रतीक्षा न केवल सामाज को आशा देती है बल्कि व्यक्तिगत शांति भी प्रदान करती है।

 

प्रार्थना, विनती, और ईश्वर से संवाद, तथा अहले-बैत (अ.) से आध्यात्मिक संबंध  ये सब हृदय की शांति को गहरा करते हैं।

 

क़ुरआन मजीद में अल्लाह का वचन है:

 

निस्संदेह, ईश्वर के स्मरण से ही हृदयों को शांति मिलती है।

 

ईश्वर का स्मरण आत्मा को अशांति से मुक्त करता है और भविष्य के प्रति आशा को सशक्त बनाता है।

 

आधुनिक युग में मानवता की आवश्यकता

 

आज की मानवता पहले से कहीं अधिक मुक्ति की आवश्यकता महसूस कर रही है।

विचारधाराएँ असफल हो चुकी हैं और विज्ञान न्याय तथा शांति लाने में असमर्थ रहा है।

आधुनिक मनुष्य अब उस एलाही हाथ की प्रतीक्षा कर रहा है जो हज़रत वली-अस्र के आगमन में प्रकट होगा।

 

परंतु प्रतीक्षा का अर्थ केवल बैठकर देखना नहीं है

 

यह एक सक्रिय आंदोलन है जो हमें एक अधिक न्यायपूर्ण, आध्यात्मिक और मानवीय समाज के निर्माण की ओर अग्रसर करता है।

 

प्रतीक्षा वह आशा है जो अंधकार की गहराइयों से मानवता को प्रकाश की ओर ले जाती है

 

वह आशा जो स्वयं मुक्ति की शुरुआत है।

 

क्या आप चाहेंगे कि मैं इसका साहित्यिक या भाषण योग्य संस्करण भी तैयार कर दूँ। MM