रमज़ान-25
दोस्तो पवित्र रमज़ान पर विशेष कार्यक्रम के साथ आपकी सेवा में उपस्थित हैं। आज हम पवित्र क़ुरआन के सूरए बक़रा की आयत संख्या 151 से 156 तक की आयतों पर चर्चा करेंगे। ...... और साथी का सलाम स्वीकार करें।
संगीत
दोस्तो कार्यक्रम शुरु करने से पहले हम रमज़ान की 25 तारीख़ की विशेष दुआ और उसका अनुवाद सुनते हैं।
प्रभुवर आज के दिन मेरे हृदय में तेरे मित्रों की मित्रता और शत्रुओं की शत्रुता डाल दे तथा तेरे अंतिम पैग़म्बर के चरित्र का अनुसरण करने वाला बना दे, हे पैग़म्बरों के हृदयों को पापों से दूर रखने वाले।
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दोस्तो लोगों तक ईश्वरीय संदेश को पहचाना पैग़म्बरों का सबसे पहला और महत्वपूर्ण दायित्वव था। यह संदेश वही ईश्वरीय आयतें हैं जो पैग़म्बरे इस्लाम निरंतर लोगों के सामने पढ़ते थे और उनको सत्य और कल्याण के मार्ग से अवगत कराते थे लेकिन इन आयतों का पढ़ना और लोगों को ईश्वरीय संदेशों से अवगत कराना, लोक परलोक की निशानियां हैं, यानी यह दो महत्वपूर्ण कार्यक्रम की भूमिका हैं एक दिल की पवित्रता और दूसरी शिक्षा।
पैग़म्बर और ईश्वरीय दूत लोगों की आत्मा की शुद्धि के लिए आए थे, पवित्रता और पाकीज़गी का सही अर्थ, बढ़ाना और विकसित करना है जो पालन पोषण और प्रशिक्षण के बराबर है। जैसा कि एक समझदार और अच्छा बाग़बान, फूलों और पेड़ों का ख़याल रखकर, उन्हें सही समय पर पानी देकर उन्हें बड़ा करता है, फ़ालतू पत्तियां और झाड़ियों को अलग करता है ताकि पेड़ पौधों को बड़ा होने में कोई समस्या का सामना न करना पड़े। इस तरह ईश्वरीय दूत और पैग़म्बर भी हैं, वह भी हम सबको सही मार्ग की ओर मार्गदर्शन करते हैं और बुराईयों से रोकते हैं ताकि हम पले बढ़े और एक शब्द में हमारा शुद्धिकरण हो सकते।
पवित्र क़ुरआन की आयत में आत्मा की शुद्धि के बाद ही शिक्षण को बयान किय गया है, शिक्षण पर शुद्धि के आने का मतलब यह है कि शिष्टाचारिक प्रशिक्षण और आत्मा की शुद्धि, ज्ञान से भी बढ़कर है। वह बुद्धिजीवी या विचारिक जो अपने ज्ञान और अपने नालेज से बम बनाता है और उसे अपराधियों के हवाले कर देता है ताकि वह अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए इंसानों को बर्बाद और तबाह करने के लिए इसको प्रयोग करे, उसका ज्ञान, बिना शुद्धि के ज्ञान का एक नमूना है।
वह चिकित्सक जो बीमारियों के दर्द और कष्ट को देखता है लेकिन वह ज़्यादा से ज़्यादा पैसे कमाने की सोचता है तो यह उसके ज्ञान का नमूना है लेकिन ज्ञान बिना शिष्टाचार और प्रशिक्षण के है। अलबत्ता यह कहा जाता है कि शुद्धिकरण, शिक्षा से पहले है और इसका यह अर्थ है कि अगर इंसान कुछ दिन ज्ञान की प्राप्ति की कोशिश न करे और कहे कि पहले मैं आत्मा की शुद्धि कर लूं उसके बाद शिक्षा ग्रहण करूंगा, बल्कि इसका अर्थ यह है कि हमको यह जान लेना चाहिए कि शिष्टाचार और ज्ञान में से कौन एक दूसरे से बेहतर है, वास्तव में दोनों में से किसको पहले हासिल करना चाहिए, यह इंसान के ध्यान पर निर्भर करता है कि पहले किसको हासिल करना चाहिए।
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पैग़म्बरों का दूसरा काम शिक्षा है और सूरए बक़रा की आयत संख्या 151 में पवित्र किताब की शिक्षा, तत्वदर्शिता का ज्ञान या जिसे आम लोग शिक्षा का नाम देते हैं, इन सबका उल्लेख क़ुरआन के सूरए बक़रा की आयत संख्या 151 में आया है कि जिस तरह से हमने तुम्हारे बीच तुम ही में से एक रसूल भेजा है जो तुम पर हमारी आयतों की तिलावत करता है, तुम्हें पाक व पवित्र बनाता है और तुम्हें किताब व तत्वदर्शिता की शिक्षा देता है और वह सब कुछ बताता है जो तुम नहीं जानते थे।
यहां पर किताब से उद्देश्य क़ुरआन है जो वहि और ईश्वरीय संदेश है। हिकमत या तत्वदर्शिता से मक़सद, सृष्टि की वास्तविकताओं और सही संस्कार और रास्ते की पहचान है। पैग़म्बरे इस्लाम, पवित्र क़ुरआन की शिक्षा और लोगों को उच्च स्थान तक पहुंचाना है। यह हिकमत जिसका उल्लेख ईश्वर ने किताब के बाद किया है, पैग़म्बरे इस्लाम की परंपरा में बेहतरीन रूप में दिखाई देती है, यानी उनके कथनों में इसके प्रतिबिंबन दिखते रहते हैं, पैग़म्बरे इस्लाम के कथन हमारे जीवन को संवराने का बेहतरीन माध्यम है और हम इन्हीं के द्वारा अपने जीवन को बेहतर से बेहतर बना सकते हैं।
दोस्तो रमज़ान का महीना आत्मशुद्धि के लिए बहुत ही बेहतरीन महीना है। यह वह महीना है जिसे पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने प्रायश्चित का महीना कहते हुए फ़रमाया था, पवित्र रमज़ान का महीना ईश्वर का महीना और पापों से क्षमा का महीना है। यह महीना ईश्वर के प्रकोप से बचने का महीना है।
यह महीना पापों का प्रायश्चित कर ईश्वर की ओर पलटने का महीना है। जिस व्यक्ति के इस महीने में पाप क्षमा न किए गए तो किस महीने क्षमा किए जाएंगे। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, ईश्वर हर रात पवित्र रमज़ान को तीन बार कहता है, क्या कोई मांगने वाला है कि उसे मैं दू, या कोई प्रायश्चित करने वाला है कि मैं उसके प्रायश्चित को क़ुबूल करूं? क्या कोई पापों की क्षमा मांगने वाला है कि मैं उसे क्षमा कर दूं?
पवित्र रमज़ान पापों की क्षमा चाहने और प्रायश्चित करने का महीना है। जिन लोगों ने अपने जीवन में ग़लती की है और ऐसे मार्ग का चयन किया है जिसमें बर्बादी के सिवा कुछ और नहीं है, तो पवित्र रमज़ान का महीना उनके लिए प्रायश्चित करने का बेहतरीन महीना है क्योंकि इस पवित्र महीने में रोज़ेदार के मन में क्रान्ति पैदा हुयी है और उसके लिए व्यवहारिक रूप से क़दम उठाने का अवसर मुहैया हुआ है। सद्कर्म से बुराईयों से पाक होता और ईश्वर के प्रकोप से दूर होता है। इस तरह रोज़ेदार पापों के अंधकार से निकलकर नैतिक भलाइयों और प्रायश्चित के प्रकाश में दाख़िल हो जाता है। इस तरह वह ईश्वर की कृपा का पात्र बनता है।
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दोस्तो ईश्वर पवित्र क़ुरआन की आयत संख्या 152 में फ़रमाता है कि अब तुम हमको याद करो ताकि हम तुम्हें याद रखें और हमारा शुक्रिया अदा करो और अनुकंपाओं का इन्कार न करो।
क्या जानते हो कि याद करने का क्या मक़सद है, यह वही अल्लाह की याद है क्या? क्या गुणगान का अर्थ अल्लाह के नामों को ज़बान पर लाना है या यह कि दिल में अल्लाह को याद करना और उससे लगाव रखना है? अगर हम अल्लाह का नाम अपने होंठो पर लाएं और पाप अंजाम देंगे तो पता यह चलेगा कि हम उसकी याद में रहे ही नहीं क्योंकि अगर उसके नामों का गुणगान किया और हमारे दिल उसकी ओर लगे रहे तो संभव ही नहीं है कि हम पाप करें।
अल्लाह हमसे चाहता है कि उसकी याद में लीन रहें, ताकि वह भी हमारी याद में रहे। इस वाक्य का यह अर्थ है कि अगर हम अल्लाह की याद में रहते हैं तो हमें गुनाहों और पापों से दूर रहना चाहिए, ईश्वर भी हमारी मदद करेगा और हमारा मार्गदर्शन करेगा, हमारी दुआएं स्वीकार करेगा और हमें अपनी अनुकंपाओं से सुसज्जित करेगा।
अब यहां पर यह सवाल पैदा होता है कि अगर हम यह चाहते हैं कि अल्लाह की याद में लीन भी रहें और पापों से दूर भी रहें तो हमें क्या करना चाहिए तो इसका जवाब सूरए बक़रा की आयत संख्या 153 में आया है कि ईमान वालो सब्र और नमाज़ द्वारा मदद मांगो कि अल्लाह धैर्य करने वालों के साथ है। यह आयत हमें यह बताती है कि जब भी कोई समस्या का घड़ी हो, तो समझ लेना और अपने आप पर नियंत्रण रखना और कभी भी धैर्य और सब्र का दामन हाथ से छूटने न पाए, घटनाओं और परेशानियों के काल में हमेशा प्रतिरोध करना और डटे रहना।
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जी हां दोस्तो जो लोग सत्य और न्याय के मार्ग में क़दम बढ़ाते हैं और अत्याचार और अन्याय से संघर्ष का ध्वज लहराते हैं, हर ओर से दुश्मनों की उन पर यलग़ार होती है और वह संघर्ष करते रहें, इस रास्ते में मोमिन लोग बड़ी बहादुरी से संघर्ष करते हैं जिसके दौरान कुछ तो शहीद हो जाते हैं और कुछ अपने ही ख़ून मे लथपथ होकर बुरी तरह घायल हो जाते हैं। यहां पर सूरए बक़रा की आयत संख्या 154 में कहा गया है कि और जो लोग ईश्वर के मार्ग में मारे जाते हैं उन्हें मुर्दा न कहो वह ज़िंदा हैं लेकिन तुम्हें उनकी ज़िंदगी का आभास नहीं है।
जो लोग अल्लाह के रास्ते में अपनी जानों को न्योछावर करते हैं और जो भी उनके पास होता है, उसे क़ुर्बान कर देते हैं अल्लाह उन्हें अमर जीवन प्रदान करता है और उनकी आत्मा को अपने पास बुला लेता है। जी हां दोस्तो हमारे जीवन इस प्राकृतिक संसार की सीमित्ताओं में उलझा रहता है, हम शहीदों के उच्च स्थान तक नहीं पहुंच पाते लेकिन हममें यह समझने की शक्ति ज़रूर होती है कि शहीद अल्लाह के निकट ज़िंदा और अमर होता है।
इसके बाद की आयात में अल्लाह कहता है कि और हम निश्चित रूप से थोड़े भय, थोड़ी भूख और थोड़े माल और फल इत्यादि की कम से आज़माएंगे और हे पैग़म्बर आप इन धैर्य करने वालों को शुभ सूचना दीजिए।
संभव है कि यहां पर यह सवाल पैदा हो कि अल्लाह का इम्तेहान किन लोगों के लिए है, क्या उसे इम्तेहान के परिणाम का पता है कि वह इम्तेहान लेना चाहता है? इसमें कोई संदेह नहीं है कि अल्लाह हर चीज़ को जानता है और हर चीज़ से अवगत है लेकिन हमारे इम्तेहान से मक़सद दूसरी चीज़ है। ईश्वर के इम्तेहान का मक़सद हम ही हैं कि हम उसकी ज़्यादा से ज़्यादा पहचान करें और अपने को उसके बताए हुए रास्ते पर लगाएं।
दोस्तो कार्यक्रम का समय यहीं पर समाप्त होता है हमें अनुमति दें।