अगर इस्राईल ने नया सीमा समझौता न माना तो क्या होगा?
लेबनान और ज़ायोनी शासन ने हाल ही में अमरीका की मध्यस्थता से समुद्री सीमाओं के निर्धारण के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसके बारे में नेतेनयाहू अब दावा कर रहे है कि इसे लागू नहीं किया जाएगा।
इस्राईल और लेबनान के बीच समुद्री सीमाओं के रेखांकन के समझौते के अंतर्गत यह फ़ैसला किया गया था कि कारीश गैस फ़ील्ड को इस्राईल को और क़ाना गैस फ़ील्ड को लेबनान को सौंप दिया जाना तय हुआ।
लेबनान में एक आम सहमति है कि लेबनान और इस्राईल के बीच सीमा समझौते को एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जाता है जबकि ज़ायोनी हलक़ो में इस समझौते के बारे में अलग-अलग विचार पाए जाते हैं।
इस्राईल के वर्तमान प्रधानमंत्री याईर लापीद सहित कुछ लोग इसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि मानते हैं जिसका इस शासन की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा जबकि लिकुड पार्टी के प्रमुख बेनयामीन नेतनयाहू जैसे कुछ लोगों ने इसे लेबनान के हिज़्बुल्लाह के समक्ष एक ऐतिहासिक समर्पण क़रार दिया है।
बेनयामीन नेतनयाहू ने जिन्होंने हाल ही में अपने सहयोगियों के साथ इस्राईली संसदीय चुनावों में अधिकांश सीटें जीती हैं और जल्द ही नई इस्राईली कैबिनेट का गठन करने वाले हैं, चुनाव अभियानों के दौरान घोषणा की कि लेबनान के साथ समुद्री सीमाओं के रेखांकन का समझौता, एक ऐतिहासिक आत्मसमर्पण था और इसे रद्द किया जाएगा।
बेनयामीन नेतेनयाहू की इस टिप्पणी को लेबनानी प्रतिरोध की प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा है। बेनयामीन नेतेनयाहू की इस टिप्पणी के जवाब में लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के उप महासचिव शैख़ नईम क़ासिम ने घोषणा की कि इस्राईल द्वारा सीमा समझौते की स्वीकृति का कारण, अमरीका का दबाव था। अमरीका लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठगन द्वारा ज़ायोनी शासन के मुक़ाबले में प्रतिरोध करने और उसे देश के भूगोल पर कब्जा करने से रोकने के फ़ैसले से पूरी तरह अवगत था, इसीलिए ज़ायोनी शासन एक और युद्ध सहन नहीं कर सकता और उसने समुद्री सीमाओं के रेखांकन के लिए मध्यस्थता की। (AK)
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