ईरान को धमकी देकर क्यों आत्महत्या पर तुला है इस्राईल?
पार्सटुडे - मिस्र के लेखक और राजनीतिक विश्लेषक हसन बदीअ का कहना है: ईरान के खिलाफ ज़ायोनी शासन की धमकियों का मतलब है कि ज़ायोनी अधिकारियों ने आत्महत्या के बारे में मन बना लिया है और उन्हें लगता है कि वे अपने अंत के क़रीब हैं।
ईरान के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन की धमकियों और इन धमकियों का सही विश्लेषण बहुत ज़रूरी है।
पार्स टुडे के अनुसार, इस संबंध में, ईरान के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन के पूर्व युद्धमंत्री एविग्डोर लिबरमैन की बयानबाज़ियों के जवाब में हसन बदीअ का कहना है: हक़ीक़त यह है कि लिबरमैन ने ईरान को परमाणु हमले की धमकी दी है जबकि ज़ायोनी शासन कितने गहरे संकट से जूझ रहा है और अमेरिका और नाटो के समर्थन के बावजूद वह पतन की हालत में पहुंच गया है।
हसन बदीअ कहते हैं:
ईरान के ख़िलाफ़ लिबरमैन की बकवासों का मतलब है कि तेल अवीव ईरान से डरता है और प्रतिरोध के मोर्चे की लगातार कामयाबियों से चिंतित है, ख़ासकर मक़बूज़ा क्षेत्रों पर ईरान के मिसाइल हमले के बाद।
उन्होंने कहा: इस ब्लैक अटैक और विध्वंसकारी हमले और ज़ायोनी दुश्मन के 2 हवाई अड्डों की तबाही ने तेल अवीव को यह सबक सिखा दिया है कि ईरान की आग और प्रतिरोध के मोर्चे से खिलवाड़ न करे।
ज़ायोनी शासन ईरान को धमकी दे रहा है जबकि इस शासन के मीडिया ने इस्राईल की सेना में बलों की कमी और ज़ायोनी सैनिकों की मनोवैज्ञानिक समस्याओं को स्वीकार किया है।
ज़ायोनी मीडिया ने ज़ायोनी सेना में प्रसिद्ध गोलानी ब्रिगेड के एक सैनिक के हवाले से बताया कि ये सैनिक ग़ज़ा पट्टी और लेबनान में हिज़्बुल्लाह के साथ उत्तरी मोर्चे पर अनिर्णायक और बेनतीजा युद्ध से थक चुके हैं और सेना लेबनान से युद्ध के मोर्चे पर जाने के लिए तैयार नहीं है और युद्ध जारी रहने से सेना को मनोवैज्ञानिक आघात पहुंचेगा।
इससे पहले, मीडिया ने बताया था कि ज़ायोनी शासन ने सैनिकों की तलाश और भर्ती के लिए सोशल मीडिया और फ़ेसबुक पर विज्ञापन देना शुरू कर दिया है क्योंकि ग़ज़ा युद्ध में मौजूद कई सैनिक इस प्रक्रिया को जारी रखने में सक्षम नहीं हैं और कई जवान सेना में शामिल होने के योग्य ही नहीं हैं और सेना के भाग निकले हैं।
इन धमकियों के साथ ही, ज़ायोनी शासन ग़ज़ा में नरसंहार और प्रतिरोध के कमांडरों की टारगेट क्लिंग के प्रयास जारी रखता है और हर बार एक नया अपराध अंजाम देता है।
क्षेत्र में रणनीतिक मुद्दों के विश्लेषक अब्दुल बारी अतवान ने राय अल-यौम अख़बार की वेबसाइट पर एक लेख में लिखा: ग़ज़ा पट्टी में 9 महीने के नरसंहार और जातीय सफ़ाए के बाद, ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अभी भी किसी भी तरह से क़स्साम ब्रिगेड के कमान्डरों में से एक सीनियर कमान्डर यहिया सेनवार या उनके एक प्रतिनिधि और सलाहकार शामिल की हत्या की कोशिश कर रहे हैं लेकिन ये प्रयास विफल रहे और नेतन्याहू के माथे पर एक और शर्मनाक हार दर्ज हो गयी है।
तेल अवीव के हालिया दावे का ज़िक्र करते हुए कि ख़ान यूनिस शहर के पश्चिम में अल-मवासी इलाक़े पर हाल ही में हुए बर्बर हमलों में क़स्साम ब्रिगेड के कमांडर "मोहम्मद अल-ज़ैफ़ और खान यूनिस ब्रिगेड के कमांडर राफ़ेअ सलामा शहीद हो गये।
उन्होंने कहा: बेशक, यह जीत का जश्न लंबे समय तक नहीं चल सका, और तेल अवीव की जासूसी सेवाएं, जिसके बारे में नेतन्याहू ने निगरानी करने में अत्यधिक सक्षम होने का दावा किया था, प्रतिरोधकर्ताओं और उनके हौसलों के सामने लगातार हजारवीं बार नाकाम रही हैं, और हर तरफ़ उनकी विफलता और नाकामी की आवाज़ें सुनाई दे रही हैं।
इस क्षेत्रीय विशेषज्ञ ने बताया कि ज़ायोनी शासन को सबसे लंबे और सबसे महंगे युद्ध में उलझाने के लिए प्रतिरोध के कमांडर अपने भूमिगत वॉर रूम में ही रहेंगे।
उन्होंने कहा: ये अपराध ज़ायोनी शासन के लिए बहुत महंगे साबित होंगे और राजनीतिक या सैन्य कमांडरों सहित अपराधियों को उनके कामों के लिए दंडित किया जाएगा और उनकी सज़ाएं नाज़ी जर्मनी या अन्य अंतर्राष्ट्रीय अपराधियों के मुक़ाबले में सबसे बदतर होगी।
कीवर्ड्ज़: ज़ायोनी शासन के साथ युद्ध, नेतन्याहू, प्रतिरोध की शक्ति और ताक़त, ग़ज़े युद्ध, इस्राईली सेना, इस्राईली अपराध, नाज़ी जर्मनी (AK)
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