यमन भी लीबिया की राजनैतिक डगर पर
प्रमाणों से पता चलता हे कि यमन भी लीबिया की पराजित राजनैतिक डगर पर निकल पड़ा है।
यमन के अपदस्थ गवर्नर ईदरूस ज़ुबैदी ने दक्षिणी यमन की बागडोर संभालने के लिए राजनैतिक परिषद का गठन कर दिया है जिसमें 26 सदस्य हैं। इस परिषद में दक्षिणी यमन के पांच क्षेत्रों के गवर्नर और मंसूर हादी के त्यागपत्र दे चुके मंत्रियों में से दो शामिल हैं।
अगस्त 2016 से अब तक यमनी गुटों के मध्य हर प्रकार की वार्ता के दरवाज़े बंद हैं और इसके साथ ही यमन संकट को अधिक से अधिक जटिल करने की भूमिका भी प्रशस्त की जा चुकी है। यह जटिलता यमन के राजनैतिक संकट को हालिया तीन वर्षों के लीबिया माॅाडल की ओर ले जा रही है और यहां यह कहा जा सकता है कि लीबिया के विपरीत यमन में इसके भिन्न परिणाम सामने आएंगे।
पिछले एक वर्ष के दौरान यमन में दो सरकारें काम कर रही हैं, एक ओर मंसूर हादी की त्यागपत्र दे चुकी सरकार है जिसे उसके पश्चिमी और अरब समर्थक स्वीकार करते हैं और यह सरकार अपनी गतिविधियां यथावत जारी रखे हुए है और अपनी कुछ बैठकें सऊदी अरब की रजधानी रियाज़ तक में आयोजित करती है ताकि सिद्ध हो सके कि यह सरकार आले सऊद से संबधित सरकार है।
दूसरी ओर अंसारुल्लाह आंदोलन और अली अब्दुल्लाह सालेह के नेतृत्व में नेश्नल कांग्रेस की सरकार है जो जनवरी 2015 में दिखावटी रूप से मंसूर हादी के त्यागपत्र देने के बाद, यमन के उत्तरी क्षेत्रों का नियंत्रण संभाले हुए है। अगस्त 2016 में राजधानी सनआ में सर्वोच्च राष्ट्रीय परिषद और उसके बाद इसने नवंबर 2016 में राष्ट्रीय मुक्ति सरकार का गठन किया। यद्यपि अरब और पश्चिमी देशों ने यमन की राष्ट्रीय मुक्ति सरकार को औपचारिकता प्रदान नहीं की है किन्तु त्याग पत्र दे चुके मंसूर हादी की सरकार के विपरीत इसे जनता का व्यापक समर्थन प्राप्त है।
लीबिया से यमन इसलिए भी भिन्न है क्योंकि यमन के पास लीबिया से अधिक अनुभव है क्योंकि लीबिया के विपरीत यमन 90 के दशक से पहले तक दो भागों में बंटा हुआ था और 22 अप्रैल 1990 में एक हो गया। (AK)