यूरोप की सीमा पर नरक से बुरी परिस्थितियों में हैं शरणार्थी
संचार माध्यमों में पलायनकर्ताओं की दर्दनाक स्थिति को नहीं बल्कि यूरोपीय संघ और बेलारूस के बीच राजनीतिक टकराव को ही प्राथमिकता दी जा रही है
दो हज़ार से अधिक पलायनकर्ता, कई हफ्तों से यूरोप में नरक जैसी परिस्थितियों में हैं, जिनमें बच्चे और महिलाएं भी हैं। जंगल में खाने और पानी के बिना यह लोग कड़ाके की ठंड में रह रहे हैं। मानवाधिकार संगठनों के अनुसार इनमें से 8 लोग कड़ाके की ठंड और भूख के कारण मर चुके हैं ....... हम कई दिनों से सीमा पर हैं। मौसम बहुत ठंडा है। बारिश भी हो रही है हम आग भी नहीं जला सकते। मेरे बच्चे छोटे हैं और मेरी बीवी बीमार है। हन हालात में निश्चित रूप में मर जाएंगे। हमे मदद की ज़रूरत है। हम पोलैण्ड जाना चाहते हैं। वे कहते हैं कि अगर सरहद को पार करोगे तो हम तुमको मारेंगे तुमक सबकी हत्या कर देंगे .......पलायन कर्ताओं की नरक की परिस्थितियों की ख़बरें पिछले कई दिनों से यूरोपीय संचार माध्यमों की पहली खुर्ख़िया बनी हुई हैं लेकिन उनकी मुख्य सुर्ख़ी, पलायनकर्ताओं की दर्दनाक स्थिति नहीं है बल्कि यूरोपी संघ और बेलारूस के बीच राजनीति टकराव को प्राथमिकता मिल रही है। बेलारूस के दो पड़ोसियों पोलैंड और यूक्रेन की इस मानवीय संकट पर प्रतिक्रिया, सीमाओं पर केवल बाड़ लगाने और सैनिकों को भेजने तक ही सीमित है ......... यूक्रेन की राष्ट्रीय सुरक्षा की बैठक में हमने बेलारूस और पोलैंड की सीमा पर उत्पन्न संकट के बारे में चर्चा की और इसी प्रकार जर्मनी द्वारा कुछ पलायनकर्ताओं को स्वीकार करने के बारे में यूक्रेन के माध्यम से बात की। जर्मन के सत्ताधारी दल को मैं प्रस्ताव देता हूं कि उनमे से हरएक कुछ पलायनकर्ताओं को अपने घर ले जाएं। इस बारे में जर्मनी का प्रस्ताव बड़ा विचित्र है कि वे कहते हैं कि इस बारे में वे क्या करें? जब जर्मनवासी उन पलायनकर्ताओं से डर रहे हैं तो फिर हम उनको क्यों स्वीकार करें?.....इनमे से अधिकांश पलायनकर्ता फ़्रांस और जर्मनी जाना चाहते हैं। वे एसे कट्टर मेज़बानों के पास जाना चाहते हैं जो उनको अतिक्रमणकारी कहते हैं और इस बात को वरीयता देते हैं कि वे ठंड और भूख से वहीं मर जाएं ताकि यूरोप में प्रविष्ट होने की अनुमति हासिल न कर सकें ....यहां पर फंसे हुए शरणार्थियों में बहुत से एसे हैं जिनके देश वर्षों से नैटो की कार्यवाहियों से प्रभावित रहे हैं। मानवाधिकार संगठनों के अनुसार यूरोपीय संघ द्वारा इस संबन्ध में फैसला न लेने की स्थिति में आधे पलायनकर्ता ठंड और भूख से मर जाएंगे। कीफ से आईआरआईबी के लिए एहसान रेफ़ाही।