बहुत हो गया अब तो अफ़्रीक़ा का पीछा छोड़ दो, पोप
मंगलवार को कांगो की राजधानी किंशाज़ा की अपनी यात्रा के पहले दिन, कैथोलिकों ईसाईयों के धार्मिक नेता पोप फ्रांसिस ने अफ्रीक़ा और इस देश के आर्थिक उपनिवेशीकरण की कड़ी निंदा की।
किंशाज़ा स्थित राष्ट्रपति भवन में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के अधिकारियों को संबोधित करते हुए पोप ने कहाः कांगो और अफ्रीक़ा का दोहन अब बंद करना होगा। अफ्रीक़ा का दम घोटना बंद करना होगा। यहां अब कोई ऐसी खदान नहीं है, जिसका दोहन न किया गया हो और ऐसा कोई देश नहीं है, जिसे लूटा नहीं गया हो।
पोप फ्रांसिस ने पिछली कई शताब्दियों से पश्चिमी उपनिवेशवादियों द्वारा अफ्रीक़ा के व्यापक औपनिवेशीकरण का उल्लेख किया, जिसके विनाशकारी परिणाम स्वतंत्रता प्राप्त करने के दशकों के बाद भी स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। यूरोपीय देशों, विशेष रूप से ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम इटली और जर्मनी ने कई शताब्दियों तक अफ्रीक़ी देशों पर क़ब्ज़ा जमाए रखा और वहां के लोगों की हत्याएं कीं और उनका शोषण किया। यूरोपीय लोगों ने स्थानीय लोगों के साथ क्रूर व्यवहार किया, उनका व्यापक दमन किया और उन्हें ग़ुलाम बनाकर दुनिया भर के बाज़ारों में बेचा। उपनिवेशवादियों ने खनिजों और संसाधनों को लूटा और अमानवीय अपराध किए।
करोड़ों अफ्रीक़ी मूल निवासियों को अमरीका, लैटिन अमरीका और यूरोपीय देशों में दास बनाकर बहुत ही कठिन परिस्थितियों में रखा गया और उन पर अत्याचार किए गए। उनकी ख़ून पसीने की मेहनत से यूरोपीय उपनिवेशवादियों ने अरबों डॉलर कमाए। अफ्रीक़ी धन को यूरोप स्थानांतरित किया गया।
हालांकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अफ्रीकी देश स्वतंत्र हो गए, लेकिन पश्चिमी देशों ने इन देशों की राजनीतिक, आर्थिक और यहां तक कि सैन्य संरचनाओं को प्रभावित करके इस महाद्वीप में अपने राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव को बनाए रखने का प्रयास किया है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस संदर्भ में कहते हैं: हम देख रहे हैं कि कुछ पश्चिमी देश अफ्रीक़ी सरकारों के पर दबाव बनाते हैं, उन्हें धमकी देते हैं और ब्लैकमेल करते हैं। इस तरह से वे अपने पिछले उपनिवेशों पर अपना प्रभाव और प्रभुत्व क़ायम रखने की कोशिश कर रहे हैं।
हालांकि, हाल के वर्षों में, दुनिया में होने वाले मूलभूत परिवर्तन और उभरती हुई आर्थिक शक्तियों के उदय के साथ, अफ्रीक़ी देशों के साथ व्यापार बाज़ार में पश्चिमी देशों की हिस्सेदारी कम हुई है, और इस नई परिस्थितियों में, दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं जैसे चीन, भारत और ब्राज़ील की भागीदारी बढ़ी है। अफ्रीक़ी देश व्यावसायिक हो गए हैं। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव कहते हैं: अमरीका और यूरोपीय देश, जो अफ्रीक़ी देशों के साथ रूस के सहयोग की समाप्ति की मांग कर रहे हैं, वास्तव में अफ्रीक़ा पर पश्चिमी देशों की औपनिवेशिक निर्भरता को बहाल करने की मांग कर रहे हैं। वर्तमान स्थिति में अफ्रीक़ा धीरे-धीरे वैश्विक समीकरणों में अपनी भूमिका बढ़ा रहा है। पश्चिमी और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं ने इस कॉन्टिनेंट में अपनी उपस्थिति और प्रभाव बढ़ाने के लिए अपनी प्रतिस्पर्धा तेज़ कर दी है।