जी-20 में मतभेद खुलकर सामने आ गए
नई दिल्ली में जी-20 देशों के विदेश मंत्रियों के सम्मेल में यूक्रेन युद्ध को लेकर मतभेद खुलकर सामने आ गए, जिसके परिणाम स्वरूप यह सम्मेलन बिना किसी परिणाम के समाप्त हो गया।
जी-20 की इस बैठक में रूस के विदेश मंत्री सरगेई लारोव ने कहा कि कभी भी जी-20 ने वैश्विक लड़ाईयों पर बहस नहीं की है, बल्कि मुख्य रूप से इस गुट की नीति आर्थिक मामलों पर ध्यान केन्द्रित करना रही है। लेकिन पिछले कई वर्षों से लगातार चेतावनी के बाद अब जब रूस ने अपनी रक्षा शुरू की है तो यह गुट सिर्फ़ और सिर्फ़ यूक्रेन संकट को मुद्दा बनाना चाहता है और सिर्फ़ इस विषय में अपनी दिलचस्पी दिखा रहा है।
रूस के विदेश मंत्री ने पश्चिमी देशों पर ब्लैकमेल करने और धमकियां देने का आरोप लगाया।
रूस के विदेश मंत्री लावरोफ़ का कहना था कि हम शिष्टाचार की बात करते हैं, लेकिन अफ़सोस की बात है कि हमारे पश्चिमी साथी इस मामले में बहुत ख़राब बर्ताव कर रहे हैं। अब वे कूटनीति के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोच रहे हैं। अब वे बाक़ी दुनिया के साथ केवल ब्लैकमेल और धमकियों की ज़ुबान में बातें करते हैं।
यूक्रेन-रूस युद्ध और जी-20 के देशों का दो फाड़ में बंटे होने का असर नई दिल्ली में आयोजित हुए विदेश मंत्रियों की बैठक में साफ़ देखा जा सकता था। इस मुद्दे पर अमरीका और रूस के अधिकारियों के बीच बयानबाज़ी भी हुई। इसी वजह से मेज़बान देश भारत को घोषणा करनी पड़ी कि सदस्य देशों के बीच मतभेदों के कारण कोई संयुक्त बयान जारी नहीं किया जाएगा।
दर असल, अमरीका पहले ही घोषणा कर चुका था कि जी-20 की बैठक के बाद जारी होने वाले संयुक्त बयान में रूस की निंदा ज़रूरी है। अमरीका के इसी अड़ियल रवैये के चलते जी-20 देशों के बीच संयुक्त बयान पर सहमति नहीं बन सकी और मतभेद खुलकर सामने आ गए।
हालांकि मास्को का आरोप है कि यूक्रेन-रूस को लंबा खींचने में अमरीका और उसके कुछ पश्चिमी सहयोगियों की मुख्य भूमिका है। अमरीका और उसके सहयोगी देश, इस युद्ध में रूस को हराने के लिए जमकर कीव का समर्थन कर रहे हैं और उसे भारी मात्रा में हथियार दे रहे हैं।
जी-20 की बैठक में यूक्रेन युद्ध पर अमरीका और उसके सहयोगी देशों का हाय-तौबा ऐसी स्थिति में है कि जब इस गुट ने इससे पहले इराक़, सीरिया, अफ़ग़ानिस्तान और लीबिया में अमरीका के अपराधों पर आंखें मूंद रखी थीं।
इस संदर्भ में रूस के विदेश मंत्री का कहना था कि मैं उन लोगों से जिन्होंने इस गुट का नेतृत्व किया है, यह पूछना चाहता हूं कि क्या पिछले दशकों के दौरान, इस गुट के संयुक्त बयानों में इराक़, लीबिया, अफ़ग़ानिस्तान और यूगोस्लाविया का कभी मुद्दा उठाया गया था। अगर नहीं तो फिर अब यह दोहरा रवैया और पाखंड क्यों किया जा रहा है।