May २३, २०२३ १३:१० Asia/Kolkata

विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्लूएचओ ने रोहिंग्या शर्णार्थियों को दी जाने वाली सहायता को कम कर दिया है। 

डब्लू एच ओ की ओर से सोमवार को घोषणा की गई है कि बांग्ला देश में रहने वाले रोहिंग्या शर्णार्थियों को इस संगठन की ओर से दी जाने वाली सहयता में कमी की जा रही है।  इस वैश्विक संगठन का कहना है कि आर्थिक कमियों के चलते पिछले तीन महीनों के दौरान दूसरी बार रोहिंग्या पलायनकर्ताओं के लिए भेजी जाने वाली खाद्य सामग्री की मात्रा को कम किया जा रहा है।  यह काम दस लाख रोहिंग्या पलायनकर्ताओं के साथ किया जा रहा है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि जून के आरंभ से इन शरणार्थियों के लिए विशेष किये गए 10 डालर प्रतिमाह को घटाकर अब 8 डालर प्रतिमाह किया जा रहा है।  डब्लू एच ओ के इस बयान पर फिलहाल बांग्ला देश की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। 

इससे पहले मार्च के महीने में जब रोहिंग्या शरणार्थियों को दी जाने वाली सहायता में कटौती की गई थी तो उसने इन पलायनकर्ताओं के दैनिक जीवन को बहुत प्रभावित किया था।  हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से दी जाने वाली सहायता से पहले ही शरणार्थी शिविरों में रहने वालों को कुपोषण की गंभीर समस्या का सामना रहा है।  रोहिंग्या मुसलमानों की सहायता करने वाले कुछ संगठनों का कहना है कि म्यांमार से भागकर बांग्ला देश में शरण लेने वाले लाखों रोहिंग्या मुसलमान, बांग्लादेश के कैंपों में बहुत ही दयनीय हालत में ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं। 

डब्लू एच ओ की ओर से रोहिंग्या शरणार्थियों को दी जाने वाली सहायता में कमी को एक रोहिंग्या नेता ने बहुत ही शर्मनाक बताया है।  ख़ीन माउंग का कहना है कि यह बहुत ही बुरी और घटिया बात है।  राष्ट्रसंघ की संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जहां पर रोहिंग्या पलायनकर्ताओं को दी जाने वाली सहायता को कम करने की घोषणा की है वहीं पर बांग्ला देश की सरकार से मांग की है कि वह रोहिंग्या शरणार्थियों को काक्स बाज़ार के निकटवर्ती क्षेत्रों में काम करने की अनुमति दे। 

रोहिंग्या मुसलमान, मूल रूप से म्यांमार के राख़ीन प्रांत के रहने वाले हैं।  वे अपनी ही मातृभूमि में दशकों से नागरिक अधिकारों से वंचित रहे हैं।  रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार में लंबे समय से भेदभाव और हिंसा का सामना रहा है।

दस लाख से अधिक रोहिंग्या मुसलमान, म्यंमार की सेना और वहां के अतिवादी बौद्धों की हिंसा से बचकर पड़ोसी देश बांग्लादेश में आ गए थे।  वर्तमान समय में वे दक्षिण पूर्वी बांग्ला देश में शिविरों में बहुत ही दयनीय स्थति में ज़िंदगी गुज़ारने पर विवश हैं।

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