दुनिया भर के देशों में चांद पर जाने की क्यों मची है होड़? क्या क़यामत की आहट को वैज्ञानिकों ने कर लिया है महसूस?
(last modified Mon, 14 Aug 2023 09:44:31 GMT )
Aug १४, २०२३ १५:१४ Asia/Kolkata
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दुनिया भर की स्पेस एजेंसियां आज के समय चांद पर फोकस कर रही हैं। भारत ने अपना चंद्रयान-3 लैंडर भेजा है। वहीं रूस ने लूना-25 मिशन लॉन्च किया है। दोनों मिशन चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेंगे। साथ ही दुनियाभर के देशों की चांद की प्रति बढ़ती दिलचस्पी इस बात का सबूत है कि कुछ तो वैज्ञानिकों ने ऐसा महसूस किया है कि जिसको अभी वह दुनिया के सामने नहीं लाना चाह रहे हैं।

दुनिया का शायद ही कोई इंसान होगा जो इस बात पर विश्वास नहीं रखता होगा कि इस पृथ्वी का एक न एक दिन अंत होना है। वहीं इंसान अब पृथ्वी को छोड़कर किसी अन्य सुरक्षित ग्रह की तलाश में है। इधर कुछ दशकों में नए ग्रह की तलाश में तेज़ी देखने को मिल रही है। जैसाकि हालिया वर्षों में देखा गया है कि दुनिया के कई देश चांद पर पहुंचने और वहां मौजूद संभावनाओं की खोज में दिन रात एक किए हुए हैं। यहां यह सवाल उठता है कि ऐसा क्या है, जिसके लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक जूझ रहे हैं? क्या वैज्ञानिक ने कोई ख़तरा महसूस कर लिया है? अमेरिका, चीन, रूस और भारत सहित दुनिया के कुछ अन्य देश पृथ्वी के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह में मौजूद तत्वों के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानना चाहते हैं। भारत ने चंद्रयान तीन मिशन भेजा है। वहीं नासा का लक्ष्य है कि आर्टेमिस प्रोग्राम के तहत इंसानों को एक बार फिर चांद पर भेजा जाए।

इस बीच रूस ने 47 साल बाद अपना पहला चंद्रमा लैंडिंग अंतरिक्ष यान लूना-25 लॉन्च किया। रूस ने कहा है कि वह आगे और भी चांद मिशन लॉन्च करेगा। इसके साथ ही रूस ने कहा है कि उसकी योजना चीन के साथ मिल कर इंसानों को चांद पर भेजने की है। नासा भी चांद पर जाकर इसकी माइनिंग से जुड़ी संभावनाओं को खोजना चाहता है। चांद और पृथ्वी के बीच की दूरी औसत 384,400 किमी है। पृथ्वी पर यह मौसम से जुड़ी घटनाओं के पीछे जिम्मेदार है। वर्तमान में माना जाता है कि करोड़ों साल पहले एक विशाल पिंड हमारी पृथ्वी से टकरा गया। इसके मलबे से चंद्रमा का निर्माण हुआ। चांद का एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है। जब चांद पर दिन होता है तो यहां तापमान 127 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। वहीं पूरी तरह छाया में यहां तापमान माइनस 173 डिग्री तक होता है। चांद पर पानी है, जिसके हाइड्रोक्सिल अणुओं के बारे में 2008 में भारत के चंद्रयान ने पता लगाया था।

पानी जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इसके अलावा स्पेस एजेंसियां अंतरिक्ष में लंबी यात्रा करना चाहती हैं। पानी से हाइड्रोजन और ऑक्सीज़न को अलग करके रॉकेट फ्यूल भी बनाया जा सकता है। मंगल पर इंसानों को भेजने को लेकर जो थ्योरी दी जाती है, उसके मुताबिक़ चांद एक लॉन्च पैड होगा। पृथ्वी से पहले रॉकेट चांद पर जाएंगे। इसमें फ्यूल भरा जाएगा और यहां से मंगल पर जाएंगे। इसके अलावा हीलियम-3 चांद पर है, जो पृथ्वी पर बेहद दुर्लभ है। नासा का कहना है कि 30 लाख टन हीलियम-3 चांद पर मौजूद है। यूरोपीय स्पेस एजेंसी के अनुसार हीलियम तीन का इस्तेमाल परमाणु ऊर्जा में किया जा सकता है। लेकिन इसकी विशेषता यह है कि यह रेडियोएक्टिव नहीं होता, जिससे यह ख़तरा पैदा नहीं करता। इसके अलावा स्मार्टफोन, कंप्यूटर, एडवांस टेक्नोलॉजी से जुड़े खनिज चांद पर मौजूद हैं।

 चांद पर खनन कैसे होगा इसकी कोई सही जानकारी नहीं है। लेकिन फिर भी माना जाता है कि इसके लिए किसी तरह की बस्तियां बसानी पड़ेंगी। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय नियमों में भी कमी है। वहीं इन सबके बीच एक सवाल जो सबसे ज़्यादा आम लोगों के मन में उठ रहा है वह यह है कि अचानक वैज्ञानिकों की बढ़ी गतिविधियों का क्या कारण हो सकता है? क्या क़यामत नज़दीक है और वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर मचने वाली तबाही को महसूस कर लिया है? अगर ऐसा है तो वैज्ञानिक क्यों नहीं दुनिया के सामने इस राज़ पर से पर्दा उठा रहे हैं। क्या वह पहले किसी सुरक्षित स्थान को तलाश लेना चाहते हैं। बहरहाल क़यामत का आना तो तय है और इसमें किसी को कोई संदेह नहीं है पर इन सवालों के जवाब के लिए हमे अभी इंतेज़ार करना पड़ेगा। (RZ)

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