भारत की सेक्यूलर छवि को नुक़सान पहुंचाती फिल्म, द केरल स्टोरी
वर्तमान समय में भारत में सरकारी स्तर पर कुछ एसे काम हो रहे हैं जो इस देश की वैश्विक छवि के लिए हानिकार हैं।
पार्स टुडे के अनुसार भारत में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने दिखा दिया है कि वह अपने अतिवादी संदेशों को फैलाने के लिए द केरल स्टोरी जैसी फिल्म का सहारा ले रही है।
यह संदेश हालांकि कुछ लोगों के लिए फाएदेमंद हो सकते हैं लेकिन दूसरे हिसाब से वे भारतीय समाज की शक्ति को कमज़ोर करने वाले भी हैं। भारत जैसे देश में विभिन्न धर्मों के बीच मतभेद, उस देश की राष्ट्रीय पहचान को कमज़ोर करने के अर्थ में हैं जिसको विश्व पटल पर एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति के रूप में देखा जा रहा है। भारत जैसे देश का राजनीतिक दृष्टि से कमज़ोर होने का परिणाम उसका आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर होना है। यह उन देशों के लिए बहुत अच्छा है जिन देशों ने भारत का लंबे समय तक दोहन किया है।
बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्घ से पश्चिम का यह दावा रहा है कि वह स्वतंत्रता और लोकतंत्र का पालना है। उनका यह भी दावा है कि वे विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों की विविधता को समायोजित करने में सक्षम हैं। पश्चिम का यह प्रयास रहा है कि वह पूरी दुनिया को यह समझाए कि हम ही सांस्कृतिक विविधताओं को सहन कर सकते हैं। स्वभाविक सी बात है कि एसे में अपने मुक़ाबले में किसी एसे देश को देखना जो एशिया जैसे प्राचीन महाद्वीप का देश हो, उसके लिए असहनीय है। अगर भाजपा केवल इसी बिंदु पर थोड़ा विचार कर ले तो फिर वह कभी भी इस बात की अनुमति नहीं देगी कि उन संदिग्ध अतिवादियों को सक्रिय रहने दिया जाए जो भारत की सामाजिक एकता को नुक़सान पहुंचाने के लिए लोगों के दिमाग़ों में सांप्रदायिकता का ज़हर घोलते हों।
द केरल स्टोरी नामक फिल्म, एक एसी हिंदु महिला के बारे में काल्पनिक कहानी पर आधारित है जो अतिवादी मुसलमान बन जाती है। यह फिल्म वास्तव में भारतीय मुसलमानों की छवि को ख़राब करने वाली है। यह इस्लाम जैसे शांतिप्रिय धर्म को हिंसक और अमानवीय दिखाने की कोशिश करती है। भारत की जनसंख्या के मात्र 14 प्रतिशत लोगों ने इसे देखा जिसको साल की दूसरी सबसे अधिक बिकने वाली फिल्म का शीर्षक मिल गया। एक पत्रकार एवं लेखक निलांजन मोकोपाध्याय के अनुसार भारतीय लोगों में सिनेमा को विशेष महत्व हासिल है इसीलिए जनता तक पहुंचने का यह अनूठा माध्यम है।
द केरल स्टोरी को उस काल में रिलीज़ किया गया था जब पिछली मई में कर्नाटका में विधानसभा के चुनाव होने वाले थे। इन चुनाव में भाजपा ने भी भाग लिया था। अपने चुनावी प्रचार के दौरान नरेन्द्र मोदी ने इस फ़िल्म का समर्थन किया था। इसी के साथ उन्होंने विपक्ष पर आतंकवाद की ओर झुकाव का आरोप लगाया था। भाजपा के सदस्यों ने इस फ़िल्म को मुफ्त में दिखाने का प्रबंध किया था।
उस समय की भाजपा सरकार ने लोगों को इस फ़िल्म को देखने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से टेक्स माफ कर दिया था। द केरल स्टोरी जैसी फ़िल्म के संदर्भ में एक अन्य फ़िल्म, कश्मीर फाइल्स का भी उल्लेख किया जा सकता है। इसमें भारत नियंत्रित कश्मीर में सन 1989 से 1990 के बीच की हिंसक घटनाओं को दिखाया गया है। एसी ही एक अन्य फ़िल्म गोधरा है जिसमें 2002 के गुजरात दंगों को दिखाया गया है। इसमें गोधरा ट्रेन कांड भी शामिल है।
भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं के साथ इस्राईल की बढ़ती नज़दीकियां और भारत के भीतर अमरीका और फ्रासं का खेल, इस संदेह को गहरा करता है कि एक ग़ैर भारतीय खिलाड़ी, भारतीय समाज के भीतर सांप्रदायिकता का ज़हर घोलने में लगा हुआ है। यह वह काम है जो भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब को नुक़सान पहुंचा रहा है जिसके परिणाम स्वरूप पश्चिम की प्रतिस्पर्धा में भारत पिछड़ जाएगा।
इस बात को समझना चाहिए कि जातीय एवं धार्मिक मतभेद, जो वास्वत में विश्व के देशों को कमज़ोर करने की औपनिवेशिक देशों की रणनीति रही है, उसको भाजपा के माध्यम से लागू करवाया जा रहा है। इस धोख में आकर भारत और वहां के सत्ताधारी दल को राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा की दृष्टि से भारी नुक़सान उठाना पड़ेगा।
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