May ०२, २०२४ १६:५९ Asia/Kolkata
  • प्यू पोल, अमेरिका की सोशल मीडिया पीढ़ी को फ़िलिस्तीनियों से सहानुभूति है/टेलीवीजन की तानाशाही पीढ़ी को इस्राईल से सहानुभूति है
    प्यू पोल, अमेरिका की सोशल मीडिया पीढ़ी को फ़िलिस्तीनियों से सहानुभूति है/टेलीवीजन की तानाशाही पीढ़ी को इस्राईल से सहानुभूति है

पार्सटुडे - अप्रैल में जारी होने वाले एक सर्वे के अनुसार, अमेरिकियों की नई पीढ़ी, अपनी पुरानी पीढ़ियों के ख़िलाफ़, इस्राईलियों की तुलना में फिलिस्तीनियों के बारे में अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण रखती है।

प्यू के हालिया सर्वेक्षण से पता चलता है कि अमेरिकी नौजवान, इस्राईलियों की तुलना में फिलिस्तीनी जनता से अधिक सहानुभूति रखते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, 30 वर्ष से कम उम्र के एक तिहाई अमेरिकियों का कहना है कि वे पूरी तरह या ज़्यादातर फ़िलिस्तीनियों से सहानुभूति रखते हैं जबकि 14 प्रतिशत अमरीकी नौजवान, इस्राईलियों से सहानुभूति रखते हैं।

प्यू रिसर्च सेंटर के एक सर्वे में पेश आंकड़े

इस सर्वेक्षण के अनुसार, अमेरिकी नौजवानों के पास इस्राईलियों की तुलना में फिलिस्तीनी जनता के बारे में अधिक पॉज़िटिव राय है। इस सर्वे के आधार पर, 30 वर्ष से कम आयु के दस अमेरिकी नौजवानों में से 6 का फ़िलीस्तीनियों के बारे में सकारात्मक नज़रिया है, जबकि 46 प्रतिशत का इस्राईलियों के बारे में सकारात्मक दृष्टिकोण है। हालिया वर्षों में अमेरिकी युवाओं के बीच इजरायलियों के लिए नज़रिए ख़राब हुए हैं।

प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वे में उपलब्ध आंकड़े

2019  के बाद से इस्राईलियों के प्रति अनुकूल दृष्टिकोण वाले 30 वर्ष से कम उम्र के वयस्कों की हिस्सेदारी में 17 प्रतिशत की गिरावट आई है जबकि इस अवधि में फिलिस्तीनियों के बारे में पाए जाने वाले विचारों में कोई बदलाव नहीं आया है।

इस सर्वे के मुताबिक अमेरिकियों की पुरानी पीढ़ियों की तुलना में उनका झुकाव इस्राईल की ओर ज़्यादा है। मौजूदा विश्लेषणों के मुताबिक इसकी एक वजह इन पीढ़ियों की जानकारी के स्रोत में पाया जाने वाला फ़र्क़ है।

पुरानी पीढ़ियां, उन टेलीविज़न और समाचार चैनलों पर निर्भर थीं जो  अमेरिकी सत्ता पक्षों के नियंत्रण में थे जबकि नई पीढ़ी को इसकी जानकारी सीधे और मध्यस्थों के बिना सोशल नेटवर्क से मिलती है जो स्वाभाविक रूप से अधिक स्वतंत्रता होते हैं और समाचार संपादकों के प्रबंधन की ज़ंजीरों से आज़ाद होते हैं।

यह सर्वे पिछले महीने और ग़ज़ा में फिलिस्तीनी जनता पर इस्राईल के बड़े पैमाने पर हमले के मद्देनजर किया गया था।

7  अक्टूबर 2024 से, कई पश्चिमी देशों के पूर्ण समर्थन से, इस्राईल ने ग़ज़ा पट्टी और जॉर्डन नदी के पश्चिमी तट में फिलिस्तीनियों के ख़िलाफ बड़े पैमाने पर नरसंहार शुरू किया है।

ताज़ा रिपोर्टों के अनुसार, ग़ज़ा पर ज़ायोनी शासन के हमलों में 34000 से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं और 77000 से अधिक घायल हुए हैं जबकि 10000 से अधिक फ़िलिस्तीनी लापता बताए जा रहे हैं।

ज़ायोनी शासन की स्थापना 1917 में ब्रिटिश साम्राज्य के षड्यंत्र और विभिन्न देशों ज्यादातर यूरोप से यहूदियों के फिलिस्तीन की भूमि पर पलायन के माध्यम से की गई थी और इसके अस्तित्व का एलान 1948 में किया गया था।

तब से लेकर आज तक फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार करने और उनकी पूरी ज़मीन पर कब्ज़ा करने के लिए सामूहिक हत्या की विभिन्न योजनाएं अपानाई गयी हैं।

इस्लामी गणतंत्र ईरान सहित दुनिया के कई देश ज़ायोनी शासन के विघटन और यहूदियों की उनके मूल देशों में वापसी को इस समस्या का समाधान मानते हैं।

इस्लामी गणतंत्र ईरान का मानना ​​है कि फ़िलिस्तीनियों को इस बारे में ख़ुद की फ़ैसला करने का हक़ है और जनमत संग्रह के माध्यम से वे बताएं कि वे इन यहूदी पलायनकर्ताओं को स्वीकार करना चाहते हैं या नहीं।

स्रोतः

Younger Americans stand out in their views of the Israel-Hamas war. 2024. Pew Research Center

कीवर्ड: फ़िलिस्तीनियों से सहानुभूति, इस्राईल से नफ़रत, ग़ज़ा में इस्राईली अपराध, सोशल मीडिया, अमेरिका और यूरोप में फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शन, अमेरिका और इस्राईल

 

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