क्या जर्मनी, अमरीका और रूस के टकराव का मैदान बनता जा रहा है?
(last modified 2024-07-22T13:52:30+00:00 )
Jul २२, २०२४ १९:२२ Asia/Kolkata
  • क्या जर्मनी, अमरीका और रूस के टकराव का मैदान बनता जा रहा है?

जर्मन विदेश मंत्री ने रूस से मुक़ाबले के बहाने, अपने देश में अमरीकी मिसाइल डिफ़ेंस सिस्टम की तैनाती का स्वागत किया है।

अमरीका ने नाटो के हालिया शिखर सम्मेलन में एलान किया था कि वह जर्मनी में लम्बी दूरी तक मार करने वाले हथियार तैनात करना चाहता है।

पार्सटुडे की रिपरोर्ट के मुताबिक़, अमरीका की इस घोषणा का कई जर्मन पार्टियों और नेताओं ने विरोध किया था। लेकिन जर्मन सरकार ने इसका स्वागत किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि देश में अमरीकी हथियारों की तैनाती का मतलब, वाशिंगटन के सामने बर्लिन का आत्मसमर्पण करना है।

जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बायरबॉक का कहना है कि पुतिन के राष्ट्रपतिकाल के दौरान, रूस ने अपने हथियारों का ज़ख़ीरा बढ़ाया है, इसलिए वह जर्मनी में लम्बी दूरी तक मार करने वाले मिसाइलों की तैनाती का समर्थन करती हैं।

हालांकि, संसद में जर्मनी की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख रॉल्फ़ मोत्सेनिश ने अमरीका के साथ इस तरह के किसी भी समझौते को चिंताजनक बताते हुए चेतावनी दी है कि इन अमेरिकी हथियारों को तैनात करने के ख़तरों को नज़रअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

इस बीच, रूस के उप विदेश मंत्री सर्गेई रयाबकोव ने अमरीका द्वारा जर्मनी में 2026 तक लंबी दूरी के मिसाइलों की तैनाती की घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि मास्को इसके जवाब में परमाणु मिसाइलों को तैनात कर सकता है।

अंग्रेज़ी अख़बार फ़ाइनेंशियल टाइम्स ने अमरीका में आगामी राष्ट्रपति चुनाव और डोनल्ड ट्रम्प के दोबारा चुने जाने की संभावना का ज़िक्र करते हुए, बर्लिन के नेताओं के लिए ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल को डरावना बताया है।

अख़बार ने लिखा हैः बर्लिन में नीति निर्माताओं की चिंताओं में से एक यह है कि फ्रांस की तरह अमरीका में राजनीतिक रुझान, जर्मनी में अराजक राजनीतिक माहौल को बढ़ावा देगा।

रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में जर्मनी की आलोचना करते हुए कहा था कि वाशिंगटन की मांगों के सामने झुकना दर असल, जर्मन राष्ट्र का अपमान है।

रूसी मामलों के विशेषज्ञ रुहुल्लाह मदब्बिर का कहना है कि जर्मनी, अमरीका के दबाव वाला देश है। हाइपरसोनिक मिसाइलों और 8 लाख नाटो सैनिकों की तैनाती से पता चलता है कि जर्मनी पर अमरीका ने किस तरह से पंजे गाड़ रखे हैं और वह रूस विरोधी गतिविधियों का अड्डा बन गया है। msm

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